- संवाददाता, भारत खबर
नई दिल्ली। मलयाला मनोरमा सम्मेलन का आयोजन किया गया जिसमें देश के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने संबोधित करते हुए कहा कि मुझे बेहद खुशी हो रही है। मैं केरल की पवित्र मिट्टी और उसकी अनोखी संस्कृति को प्रणाम करता हूँ। यह अध्यात्म और सामाजिक ज्ञानोदय की धरती है जिसने भारत को आदि शंकर, महात्मा आय्यन कली, नारायण गुरु, छतंबी स्वामीगल पंडित करुप्पन, संत कुरियाकोस एलियास छावरा, संत एलफोन्स और अन्य महान विभूतियां दी। केरल व्यक्तिगत तौर पर मेरे लिए विशेष स्थान है, मुझे केरल की यात्रा करने के अनेक अवसर मिले। देश की जनता द्वारा मुझे एक बार फिर बड़ी जिम्मेदारी सौंपने के बाद मैंने पहला काम गुरुवयूर श्रीकृष्ण मंदिर की यात्रा करने का किया।
आमतौर से ऐसा माना जाता है कि सार्वजनिक हस्तियों की प्राथमिकता ऐसे मंचों पर जाने की होती है जहां उनकी सोच किसी अन्य व्यक्ति की दुनिया से मिलती हो। क्योंकि इस तरह के लोगों के बीच जाने में काफी आराम रहता है। निश्चित रूप से मैं भी ऐसे माहौल में जाकर आनंद उठाता हूँ। साथ ही मेरा मानना है कि व्यक्ति और संगठनों के बीच निरंतर बातचीत जारी रहनी चाहिए चाहे व्यक्ति की चिंतन प्रक्रिया किसी भी प्रकार की हो।
यह जरूरी नहीं है कि हम हर बात पर सहमत हो लेकिन विभिन्न क्षेत्रों के सार्वजनिक जीवन में इतनी शिष्टता होनी चाहिए कि हम एक-दूसरे के विचारों को सोच सकें। यहाँ मैं ऐसे मंच पर हूं जहां हो सकता है कि ऐसे बहुत कम लोग मेरी तरह सोचते होंगे। लेकिन ऐसे बहुत से लोग हैं जिनकी रचनात्मक आलोचना का मैं स्वागत करता हूँ।
मुझे जानकारी है कि मलयाला मनोरमा एक शताब्दी से भी अधिक समय से मलयाली दिलो दिमाग का हिस्सा रहा है। इसने अपनी खबरों के जरिए केरल के लोगों को अधिक जागरूक बनाया है। इसने भारत की आजादी के आंदोलन का समर्थन करने में एक भूमिका निभाई है। अनेक युवा खासतौर से जो प्रतियोगी परीक्षाओं में बैठते हैं उन्होंने आपकी वार्षिक पुस्तक अवश्य पढ़ी होंगी ! अतः आप कई पीढ़ियों के बीच मशहूर हैं। मैं उन सभी संपादकों, रिपोर्टरों और कर्मचारियों का अभिवादन करता हूं जो इस महान यात्रा का हिस्सा रहे हैं।
इस सम्मेलन के आयोजकों ने बेहद दिलचस्प विषय-वस्तु – न्यू इंडिया चुनी है। आलोचक आपसे सवाल कर सकते हैं – क्या आप भी अब मोदी जी की भाषा बोलने लगे हैं ? मुझे उम्मीद है आपने उसका जवाब तैयार कर रखा होगा ! लेकिन चूंकि आपने एक विषय वस्तु चुनी है जो मेरे दिल के काफी करीब है, इसलिए मैं आपके साथ इस अवसर को बांटना चाहता हूँ। नए भारत की भावना के बारे में मैं क्या सोचता हूँ।
मैंने हमेशा कहा है – हम आगे बढ़ें या न बढ़ें, हम बदलाव चाहते हों या न चाहते हों, भारत तेजी से बदल रहा है और यह बदलाव बेहतरी के लिए हो रहा है। नए भारत की भावना के मर्म में अलग-अलग व्यक्तियों की आकांक्षाएं, सामूहिक प्रयास और राष्ट्रीय प्रगति के स्वामित्व के अधिकार की भावना है। नया भारत सहभागी लोकतंत्र, नागरिकों की सरकार और अति सक्रिय नागरिकों का नया भारत उत्तरदायी लोगों और उत्तरदायी सरकार का युग है।
अनेक वर्षों से एक ऐसी संस्कृति आगे बढ़ रही थी जिसमें आकांक्षा बुरा शब्द था। दरवाजों का खुलना आपके संपर्कों पर निर्भर करता था। सफलता इस बात पर निर्भर करती थी की क्या आप धन और सत्ता रखने वाले किसी समूह से ताल्लुक रखते हैं। बड़े शहर, चुने हुए बड़े संस्थान और बड़े परिवार – यही सब मायने रखता था। लाइसेंस राज और परमिट राज की आर्थिक संस्कृति व्यक्तियों की महत्वकांक्षाओं के बीच फंस गई। लेकिन आज चीजें बेहतरी के लिए बदल रही है। हम जोशीली स्टार्ट-अप पारिस्थितिकी प्रणाली में नए भारत की भावना देख रहे हैं। हजारों प्रतिभाशाली युवा शानदार मंच तैयार कर रहे हैं, उद्यम के प्रति अपने जोश का प्रदर्शन कर रहे हैं। हमने खेलों के क्षेत्रों में भी यह उत्साह देखा है।
भारत अब नए कार्य क्षेत्रों में भी उत्कृष्टता हासिल कर रहा है जहाँ हम पहले शायद ही कहीं दिखाई देते थे। चाहे स्टार्ट-अप हो या खेल, इस जोश को कौन ऊर्जा प्रदान कर रहा है ? यह छोटे कस्बो और गांवों के साहसी युवा हैं जिनके बारे में अधिकांश लोगों ने सुना भी नहीं होगा। उनका प्रतिष्ठित परिवारों से ताल्लुक नहीं है अथवा न ही उनके पास बड़ा बैंक बैंलेंस है। उनके पास बहुत बड़ी मात्रा में समर्पण और आकांक्षा है। वे अपनी आकांक्षा को उत्कृष्टता में बदल रहे हैं और भारत को गौरवान्वित कर रहे हैं। मेरे लिए यह नए भारत का जोश है। यह एक ऐसा भारत है जहाँ युवक के उपनाम का कोई महत्व नहीं है, महत्व है तो केवल अपना नाम कमाने के लिए उनकी क्षमता। यह एक ऐसा भारत है जहाँ भ्रष्टाचार कभी भी एक विकल्प नहीं है, चाहे कोई भी व्यक्ति हो। केवल योग्यता ही एक प्रतिमान है।
नया भारत कुछ चुने हुए लोगों की आवाज नहीं है। यह 130 करोड़ भारतीयों में से प्रत्येक भारतीय की आवाज का भारत है और मीडिया मंचों के लिए यह जरूरी है कि वह लोगों की इस आवाज को सुनें। प्रत्येक नागरिक या तो कुछ योगदान देना चाहता है अथवा देश के लिए कुछ छोड़ना चाहता है। उदाहरण के लिए निपटान नहीं होने योग्य प्लास्टिक के इस्तेमाल को कम करने के लिए उठाया गया हाल का कदम है। यह न केवल नरेन्द्र मोदी का विचार अथवा प्रयास है। भारत के लोगों ने स्वयं गांधी जी की 150वीं जयंती के अवसर पर भारत को निपटान नहीं होने योग्य प्लास्टिक से मुक्त करने का बीड़ा उठाया है। यह अनोखा समय है और ऐसे किसी अवसर को नहीं होना चाहिए जिससे हमारे देश में बदलाव आता हो।