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बापू ने इन आंदोलनों के जरिए ब्रिटिश हुकूमत की हिला दी थी चूलें

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नई दिल्ली। देश की आजादी के आंदोलनों का नेतृत्व 1857 की क्रांति के बाद अंग्रेजों ने पूरी तरह से खत्म और कुचल दिया था। दक्षिण अफ्रीका से लौटकर भारत वापस आये महात्मा गांधी ने देश की स्थिति का अध्ययन किया इसके बाद उन्होने भारतीय जनमानस को खड़ा करने के लिए भारत भ्रमण करते हुए कई बड़े आंदोलनों को देश की आजादी के लिए खड़ा किया। जिसके बाद इन आंदोलनों में देश की जनता खड़ी हो गई और अंग्रेजी हुकूमत की चूलें हिल गईं।

असहयोग आंदोलन

1920 सितंबर से लेकर 1922 फरवरी तक इस आंदोलन को महात्मा गांधी और भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस ने चलाया था। इस आंदोलन से भारतीय स्वतंत्रता आंदोलन को एक नई जागृति दी थी। गांधी जी को तत्काल चल रही घटनाओं को देखते हुए यह आभास हो गया था कि उन्हें ब्रिटिश हाथों से कोई भी न्याय मिलने की उम्मीद नहीं थी। जिसके बाद गांधी जी ने ब्रिटिश हाथों से राष्ट्र सहयोग वापिस लेने का मन बनाया था। जिसके बाद असहयोग आंदोलन शुरू हुआ था। इस आंदोलन का देश में प्रशाशनिक प्रभाव पड़ा था। महात्मा गांधी का भारतीय राजनीति में प्रवेश करने के बाद कांग्रेस की कमान उनके हाथों में आ गई थी।

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गांधी जी द्वारा असहयोग आंदोलन शुरू करने का मुख्य कारण अंग्रेजी शासन की अस्पष्ट नीतियां थी। साल 1919 को रोलेट एक्ट प्रस्तुत किया गया था जोकि भारतीय लोगों के नजरों में काफी खटका था। भारतीय लोगों की नजरों में यह एक काला कानून था। गांधी जी द्वारा चलाया गया यह आंदोलन काफी सफल रहा था। इस आंदोलन में काफी लोगों ने बढ़ चढ़ कर हिस्सा लिया था। जिससे ब्रिटिश पदाधिकारियों को हिला कर रख दिया था। असहयोग आंदोलन सफल रहने के बाद राजनैतिक गतिविधियों में काफी कमी आ गई थी। इस आंदोलन के शुरू होने से पहले महात्मा गांधी ने कैसर ए हिन्द पुरस्कार को लौटा दिया था। गांधी जी के साथ साथ अन्य लोगों ने भी अपने पदवियों-अपाधियों का त्याग कर दिया था। यहां तक की राय बहादुर की उपाधि से सम्मानित जमनालाल बजाज ने भी अपनी उपाधि को लौटा दिया था।

इस सब के बीच 5 फरवरी 1922 को देवरिया जिले में पुलिस ने जबरन एक जुलूस को रुकवा दिया था। लेकिन इसका भुगताल पुलिस को भुगतना पड़ा था। आक्रोशित हुए लोगों ने गुस्से में आकर थाने में आग लगा दी थी। इस दौरान कई पुलिसकर्मियों की जान भी चली गई थी। लेकिन इस घटना के बाद गांधी जी काफी आहत हुए थे। जिसके फलस्वरूप 12 फरवरी 1922 को बैठक के दौरान इस आंदोलन को समाप्त करने का निर्णय लिया गया था।

सविनय अवज्ञा आंदोलन

इस आंदोलन के बारे में बात की जाए तो यह उन आंदोलन में से एक था जो ब्रिटिश साम्राज्य के खिलाफ चलाया गया था। भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस द्वारा इस आंदोलन को चलाया गया था। 1929ई. तक भारत को ब्रिटेन के इरादों का पता लगने लग गया था जिसके बाद भारत को यह शक था कि वह औपनिवेशिक स्वराज्य प्रदान करने की अपनी घोषणा पर अमल करेगा या नहीं करेगा। इसको लेकर घोषणा कर दी गई थी कि लाहौर अधिवेशन में उसका लक्ष्य भारत के लिए पूर्ण स्वाधीनता प्राप्त करना था। इस आंदोलन के तहत नमक कानून का उल्लंघन कर खुद ही नमक बनाया गया।

Savinay Avagya 2 बापू ने इन आंदोलनों के जरिए ब्रिटिश हुकूमत की हिला दी थी चूलें

इस आंदोलन के तहत-कर अदायगी को रोका गया था। नमक कानून का उल्लंघन कर खुद नमक बनाया गया था। पूर्ण रूप से विदेशी वस्तुओं का बहिष्कार किया गया था साथ ही उन्हें जला दिया गया था। सरकारी सेवाओं, उपाधियों तथा शिक्षा केंद्रों का बहिष्कार किया गया था। वही आंदोलन के तहत कानून तोड़ने की नीति भी बनाई गई थी। कानून तोड़ना तब शुरू हुआ था जब महात्मा गांधी ने अपने चुने हुए साथियों के साथ साबरमती आश्रम तट पर डांडी नामक जगह तक कूच किया था। गांधी जी ने यहां पर लागू नमक कानून को तोड़ा था।

इसमें मुसलमान तब्के के लोगों ने हिस्सा नहीं लिया था। लेकिन देश में अन्य तब्कों के लोगों ने इसमें भारी मात्रा में भाग लिया था। इस में देश में लाखों की संख्या में बच्चों, नर-नारी समेत कई लोगों ने कानून को तोड़ा था। कानून को तोड़ने के लिए सभी लोग सड़क पर उतर आए थे। इस के बाद यह आंदोलन और भी ज्यादा उग्र हो गया था।

इस आंदोलन के कारण ब्रिटिश सरकार में काफी उथल-पुथल की स्थिति आ गई थी। जिसके बाद सरकार द्वारा देश वासियों पर सख्त कदम उठाए गए थे। सरकार द्वारा कई लोगों को जेल में बंद कर दिया गया था। सरकार के सिपाहियों और आंदोलनकारियों में जगह जगह पर संघर्ष होने लग गया था। जिसके बाद कई जगहों पर दंगे भी भड़क गए थे। सरकार द्वारा गांधी जी को भी जेल में बंद कर दिया गया था। लेकिन बाद में गांधी जी तथा अन्य कांग्रेसी नेताओं रिहा कर दिया गया था। जिसके बाद गांधी जी तथा वाइसराय लॉर्ड इरविन के बीच सीधी बातचीत का प्रस्ताव लाया गया था। दोनों के बीच बाद में समझौता भी हुआ था। दोनों पक्षों के बीच आपसी सहमति बनने के बाद इस आंदोलन को वापस ले लिया गया था।

भारत छोड़ों आंदोलन

9 अगस्त 1942, यह तारीख भारत के इतिहास में भारत छोड़ों आंदोलन के शुरूआत की तारीख के नाम से कैद हो गई। जिसका लक्ष्य था भारत से ब्रितानी साम्राज्य को समाप्त करना। इस आंदोलन की शुरूआत महात्मा गांधी द्वारा किया गया था। राष्ट्रपिता महात्मा गांधी ने अखिल भारतीय कांग्रेस समिति ने मुंबई से किया था। साल 2017 में इस आंदोलन की 75वीं वर्षगांठ मनाई गई। इस आंदोलन के जरिए भारत की आजादी का रास्ता खुल गया था। इस आंदोलन में महात्मा गांधी ने करो या मरो का नारा दिया था।

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गांधी जी के आगाज के बाद यह आंदोलन पूरे देश भर में हुआ था। इस आंदोलन में काफी सारे लोगों को जेल भी जाना पड़ा था। कई लोगों का घर परिवार उनसे काफी दूर चला गया था। कई लोगों ने इस आंदोलन के चलते अपने देश के लिए कुर्बानियां दी थी। लोगों के प्रति देश के लिए इतना जजबा था कि वह देश के लिए अंग्रेजों से बगावत पर उतर गए थे। भारत आने के बाद गांधी जी ने भारतीय मानस को एक करने के बाद जनांदोलन बनाने का कार्यक्रम चलाया था। जिसे भारत छोड़ों आंदोलन के नाम से बुलाया गया था।

क्रिप्स मिशन की विफलता के बाद गांधी जी ने ब्रिटिश शासन के खिलाफ अपना तीसरा बड़ा आंदोलन करने का फैसला किया था। लेकिन इस आंदोलन की शुरूआत में उन्हें तुरंत ही गिरफ्तार कर लिया गया था। यह आंदोलन महात्मा गांधी की एक रणनीति का हिस्सा था। क्योंकि दूसरे विश्व युद्ध के दौरान इंग्लैंड कई प्रकास से उलझ गया था। जिसके बाद नेताजी ने आजाद हिंद फौज को दिल्ली चलो का नारा दिया था। जिसके चलते 19 अगस्त 1942 को लाल बहादुर शास्त्री जी को गिरफ्तार कर लिया गया था। देश के सबसे बड़े आंदोलन के पांच साल बाद 1947 देश को आजादी मिली थी।

ब्रिटिश सरकार पर इस आंदोलन का काफी गहरा असर पड़ा था। इतने बड़े आंदोलन को खत्म करने के लिए अंग्रेजों को पूरे एक साल का वक्त लगा था। अखिल भारतीय कांग्रेस कमेटी के कार्यकर्ताओं ने गांधी जी की गिरफ्तारी के बाद देश भर में हड़ताल पर चले गए थे। युवा कार्यकर्ताओं द्वारा जगह जगह तोड़फोड़ की जा रही थी। युवा कार्यकर्ताओं द्वारा इस आंदोलन को आगे बढ़ाया गया था। कांग्रेस में जयप्रकाश नारायण जैसे समाजवादी नेता भूमिगत प्रतिरोधियों में सबसे आगे और सबसे सक्रिय नजर आते थे। ऐसे में अंग्रेजों ने आंदोलन के प्रति काफी सख्त रवैया अपनाया था। भारत छोड़ों आंदोलन असल में जनांदोलन था जिसमें लाखों की संख्या में भारतीय लोगों ने अपनी भागीदारी दी थी। इस आंदोलन में युवा काफी आकर्षित हुए थे और इसमें युवाओं ने इस में काफी मात्रा में हिस्सा लिया था।

 

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