लखनऊ। इस साल महाशिवरात्रि का पर्व 11 मार्च को मनाया जाएगा। ज्योतिषाचार्यों के अनुसार इस बार शिवरात्रि के मौके पर कई शुभ योग बन रहे हैं। महादेव के पूजन से लोगों की सभी मनोकामनाएं पूरी होंगी।
हिंदू पंचांग के अनुसार, महाशिवरात्रि पर्व माघ माह के कृष्ण पक्ष की चतुर्थी को मनाया जाता है। दक्षिण भारतीय पंचांग (अमावस्यान्त पंचांग) के अनुसार, माघ माह के कृष्ण पक्ष के चतुर्दशी को महाशिवरात्रि का पर्व होता है। यह दोनों तिथियां हमेशा एक ही दिन पड़ती हैं। ऐसा माना जाता है कि इस दिन भगवान शिव का व्रत रखने और पूजन करने से इंसान के सभी मनोरथ पूरे होते हैं। पूजन करने वालों को यश, धन, वैभव, संतान और सौभाग्य की प्राप्ति होती है।
वैष्णवी ज्योषित केन्द्र के आचार्य राजेन्द्र तिवारी ने बताया कि महाशिवरात्रि पर शिव योग के साथ घनिष्ठा नक्षत्र होगा और चंद्रमा मकर राशि में विराजमान रहेंगे। इस योग में भगवान शिव और मां पार्वती की आराधना भक्तों के लिए विशेष फलदाई होगी।
इन मुहुर्तों पर करें भगवान शिव का पूजन
महाशिवरात्रि निशीथ काल: 11 मार्च (रात 12:06 से लेकर 12:55 तक)
महाशिवरात्रि प्रथम प्रहर: 11 मार्च (शाम 06:27 से लेकर 09:29 तक)
महाशिवरात्रि दूसरा प्रहर: 11 मार्च (रात 09:29 से लेकर 12:31 तक)
महाशिवरात्रि तीसरा प्रहर: 11 मार्च (रात 12:31 से लेकर 03:32 तक)
महाशिवरात्रि चौथा प्रहर: 12 मार्च (सुबह 03:32 से लेकर 06:34 तक)
महाशिवरात्रि अंतिम प्रहर: 12 मार्च (सुबह 06:34 से लेकर शाम 03:02 तक)
शिवरात्रि व्रत की पूजा-विधि
मिट्टी के लोटे में पानी या दूध भरकर, ऊपर से बेलपत्र, आक-धतूरे के फूल, चावल, तिलआदि डालकर ‘शिवलिंग’ पर चढ़ाना चाहिए। तांबे के लोटे से भगवान को जल तो अर्पित कर सकते हैं मगर दूध अर्पित नहीं करना चाहिए।
जल चढ़ाते वक्त ऊं नम: शिवाय मंत्र का जाप करते रहें। महामृत्युंजय मंत्र का जाप भी कर सकते हैं। भगवान भाव के भूखे होते हैं। पूजा के वक्त आपका भाव साफ हो और मन में प्रभु के प्रति प्रेम हो तो वो जल्दी प्रसन्न होते हैं।
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आचार्य बताते हैं कि चतुर्दशी तिथि के स्वामी भगवान भोलेनाथ यानी खुद भगवान शंकर ही हैं। इसलिए प्रत्येक माह के कृष्ण पक्ष की चतुर्दशी को मास शिवरात्रि के तौर पर मनाया जाता है। ज्योतिष शास्त्रों में इस तिथि को अत्यंत शुभ बताया गया है। महाशिवरात्रि के मौके पर सूर्य उत्तरायण हो चुके होते हैं और ऋतु-परिवर्तन की शुरुआत हो चुकी होती है। चतुर्दशी तिथि को भगवान चंद्रमा अपनी कमज़ोर स्थिति में आ जाते हैं। चन्द्रमा को शिव जी ने मस्तक पर धारण किया हुआ है। अतः शिवजी के पूजन से व्यक्ति का चंद्र सबल होता है। चंद्रमा इंसान के मन का कारक है। इस प्रकार शिव की आराधना इच्छा-शक्ति को मज़बूत करती है और भक्त के अंदर साहस का संचार करती है।
जानिए शिवरात्रि की पौराणिक कथा
शिवरात्रि को लेकर बहुत सारी कथाएं कही जाती हैं। मां पार्वती ने शिव को पति के रूप में पाने के लिए कठोर तपस्या की थी। इसके फलस्वरूप फाल्गुन कृष्ण चतुर्दशी को भगवान शिव और माता पार्वती का विवाह हुआ था। मां और प्रभु के विवाह का दिन होने के कारण यह दिवस अत्यंत शुभ है। जिन कन्याओं के विवाह में देरी हो रही है। वो अच्छे पति की प्राप्ति की मनोकामना लेकर भगवान शंकर का सच्चे ह्दय से पूजन करें तो उनकी विवाह बाधाएं दूर हो जाती हैं।
वहीं, गरुड़ पुराण की एक कथा के अनुसार इस दिन एक निषादराज अपने स्वान के साथ शिकार पर गया। किन्तु जंगल में उसे कोई शिकार नहीं मिला। भटकते-भटकते वह भूख-प्यास से परेशान होकर एक तालाब के किनारे गया। तालाब के पास एक बिल्व का पेड़ था, जिसके नीचे शिवलिंग था। भूख मिटाने के लिए उसने बिल्व-पत्र तोड़े, जो शिवलिंग पर भी गिर गए। अपने पैरों को साफ़ करने के लिए उसने उनपर तालाब का जल छिड़का। जिसकी कुछ बून्दें शिवलिंग पर भी जा गिरीं। ऐसा करते समय उसका एक तीर नीचे गिर गया। जिसे उठाने के लिए वह शिव लिंग के सामने नीचे को झुका। इस प्रकार उसने शिवरात्रि के दिन अंजाने में भगवान शंकर की पूजा सम्पन्न कर ली। भगवान उसकी पूजा से प्रसन्न हुए और उसे मनचाहा वरदान दिया।
आसपास कोई मंदिर न हो तो घर में ही करें शिव का पूजन
अगर घर के आसपास कोई मंदिर न हो तो घर में ही भगवान शिव का पूजन करें। घर में मिट्टी का शिवलिंग बनाकर भगवान की पूजा करना बेहतर होता है। पूजन अर्चन के बाद शिवलिंग को साफ जल में प्रवाहित कर दें। शिवरात्रि के दिन भजन-पूजन और रात्रि जागरण भी कर सकते हैं।