लखनऊ: महाशिवरात्रि का पर्व हिंदुओं के लिए सबसे खास माना जाता है। शैव सम्प्रदाय बड़े ही धूमधाम से अपने आराध्य देव की पूजा करता है। इस बार 11 मार्च को महाशिवरात्रि का पर्व मनाया जाएगा। इस पर्व पर भगवान भोलेनाथ और माता पार्वती की पूजा की जाती है।
इस दिन बेल पत्र, जल, दूध आदि से भोलेबाबा की पूजा की जाती है। पूरे देश के कांवड़ियों में गजब का जोश देखा जा रहा है, जो अपने आराध्य की पूजा करने के लिए नंगे पांव ही गंगा जल लेकर निकल पड़े हैं। आइए आज जानते हैं कि यूपी के वो कौन-कौन से प्रमुख शिवालय हैं, जिनका पौराणिक और ऐतिहासिक महत्व है।
वाराणसी का काशी विश्वनाथ मंदिर
बनारस के काशी विश्वनाथ मंदिर का भारत में ही नहीं अपितु पूरे विश्व में बड़ा स्थान है। इस मंदिर में शिवजी के दर्शन करने के लिए पूरे विश्व से लोग आते हैं और भोलेबाबा का आशीर्वाद लेते हैं। काशी विश्वनाथ मंदिर बारह ज्योतिर्लिंगों में से एक है। ये मंदिर पिछले कई हजारों सालों से शहर में स्थित है। मान्यता है कि काशी विश्वनाथ मंदिर के दर्शन कर लेने और मां गंगा में पवित्र स्नान कर लेने से मोक्ष की प्राप्ति होती है। इस मंदिर में दर्शन के लिए बड़े-बड़े संतों का यहां आगमन हुआ है। इसमें आदि शंकराचार्च, संत एकनाथ, रामकृष्ण परमहंस, स्वामी विवेकानंद, महर्षि दयानंद, गोस्वामी तुलसीदास प्रमुख हैं। भौगोलिक रूप से बात करें तो ये मंदिर भारत की सबसे पवित्र नदी गंगा के पश्चिमी तट पर स्थित है, मंदिर के मुख्य देवता विश्वनाथ हैं, इसी वजह से ये मंदिर काशी विश्वनाथ कहलाता है।
नाथों की नगरी बरेली
बरेली को नाथों की नगरी कहा जाता है। जिले के चारों दिशाओं में शिवजी के सात दरबार होने के कारण इस शहर को सप्तनाथ नगरी भी कहा जाता है। भगवान शिव के ये सात मंदिर पौराणिक महत्व के हैं। यहां के हर मंदिर के पीछे पुरातन कहानी जुड़ी हुई है। सैकड़ों सालों से इन मंदिरों में शिवभक्तों की आस्था कम नहीं हुई है। सावन के महीने में हरिद्वार और कछला से गंगा जल ले जाकर इन शिव मंदिरों में भगवान शिव को अर्पित किया जाता है। आइए जानते हैं बरेली के प्रमुख शिवालयों के बारे में:
- बनखंडीनाथ मंदिर: सबसे पहले बात करेंगे बनखंडीनाथ मंदिर की। कहा जाता है महारानी द्रौपदी ने पूर्व दिशा में गुरू के आदेश पर शिवलिंग को स्थापित करके कठोर तप किया था। उस समय जोगीनवादा क्षेत्र में बेहद घना जंगल होता था, इसलिए इस मंदिर का नाम बनखंडीनाथ पड़ गया।
- मढ़ीनाथ मंदिर: जिले के पश्चिम दिशा में स्थित इस शिवालय के बारे में भी एक अनोखी कहानी छिपी है। बताया जाता है कि एक तपस्वी ने यहां से गुजरने वाले राहगीरों की प्याज बुझाने के लिए एक कुआं खोदा था। कुएं को खोदने के दौरान ये शिवलिंग यहां प्रकट हुआ था। इस शिवलिंग पर मढ़ीधारी सर्प लिपटा था, इसके बाद यहां एक मंदिर क स्थापनी की गई और इसका नाम मढ़ीनाथ मंदिर रखा गया। वर्तमान में इस मंदिर के आसपास के क्षेत्र को मढ़ीनाथ मोहल्ला कहते हैं।
- त्रिबटीनाथ मंदिर: इस मंदिर का निर्माण 1474 में हुआ था। बताया जाता है कि जब ये मंदिर बना उस वक्त उस इलाके में वन क्षेत्र था। यहां से गुजर रहा एक चरवाह यहां के वट वृश्रों के नीचे आराम कर रहा था, तभी स्वप्न में उसे शिवजी ने दर्शन दिए और उस स्थान को खोदने को कहा। त्रिवट के नीचे खोदाई हुई तो वहां शिवलिंग प्रकट हुआ। तीन पेड़ों के नीचे शिवलिंग मिलने से इस शिवालय का नाम त्रिवटीनाथ पड़ गया।
- तपेश्परनाथ मंदिर: बरेली जिले के दक्षिण दिशा में मौजूद यह मंदिर ऋषियों की तपस्थली रहा है। यहां के ऋषियों ने यहां कठोर तप किया और इस देवालय को सिद्ध किया जिससे इस मंदिर का नाम तपेश्वरनाथ मंदिर पड़ गया।
- धोपेश्वरनाथ मंदिर: बरेली का धोपेश्वरनाथ मंदिर अद्भुत और अलौकिक शक्ति का केंद्र है। इसका इतिहास करीब 5000 साल पुराना है। मतलब जिस कालखंड में कौरव, पांडव और भगवान श्रीकृष्ण थे, ये उस समय का मंदिर है। पांडवों के गुरू धूम ऋषि ने यहां तपस्या की थी और यहीं पर अपने प्राण त्यागे थे, तत्पश्चात उस समय के लोगों ने वहां उनकी समाधि बना दी थी और इसी समाधि के ऊपर एक शिवलिंग की स्थापना कर दी थी। तब के समय में इसका नाम धोमेश्वरनाथ था जो बाद में धोपेश्वरनाथ के नाम से प्रसिद्ध हो गया।
लखनऊ का मनकामेश्वर मंदिर
लखनऊ के मनकामेश्वर मंदिर का जिक्र पुराणों में भी मिलता है। ये मंदिर अत्यंत ही प्राचीन है। शहर के डालीगंज इलाके के गोमती नदी के बाएं तट पर ये मंदिर स्थापित है। जैसा कि नाम से ही जाहिर है, इस मंदिर में आने वाले भक्तों की सभी मनोकामनाएं पूर्ण होती हैं। कहा जाता है कि माता सीता को वन में छोड़कर आने के बाद लक्ष्मण जी ने यहीं पर शिवलिंग बनाकर भगवान शिव की आराधना की थी। इससे लक्ष्मण जी को बड़ी शांति मिली थी। कालांतर में इसी स्थान पर मनकामेश्वर मंदिर की स्थापना कर दी गई। आपको जानकर सुखद आश्चर्य होगा कि ये मंदिर रामायणकाल का है, इसीलिए इसका शिवभक्तों में विशेष महत्व है।
बाराबंकी का लोधेश्वर महादेव मंदिर
बम-बम भोले का जयघोष करते कांवड़ियों की गूंज आपने लखनऊ से बाराबंकी जाते राष्ट्रीय राजमार्ग पर अवश्य सुनी होगी। शिवभक्त ये कांवड़िये हर महाशिवरात्रि को हाथों में कांवड़ लेकर उसमें गंगा जल भरकर नंगे पांव ही निकल पड़ते हैं। इस शिव मंदिर की इतनी प्रसिद्धि है कि यूपी के कई जिलों से कांवड़ में जल भरकर कांवड़िये यहां आते हैं और भोलेनाथ को गंगाजल अर्पित करते हैं। यहां आने वाले भक्तों की सारी कामनाएं पूर्ण होती हैं। ये मंदिर महाभारत कालीन है। यहां पर पांडवों ने शिवलिंग स्थापित कर उनकी पूजा की थी।
गोरखपुर का बाबा गोरखनाथ मंदिर
गोरखपुर का गोरखनाथ मंदिर विश्व प्रसिद्ध है। इस मंदिर में दर्शन के लिए दूर-दूर से श्रद्धालु आते हैं। बाबा गोरखनाथ के नाम से ही जिले का नाम पड़ा है। इस मंदिर के वर्तमान महंत योगी आदित्यनाथ हैं, जो वर्तमान में उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री भी हैं। मकर संक्रांति पर मंदिर में लगने वाला खिचड़ी मेला पूरे भारत में विख्यात है। गोरखनाथ मंदिर बेहद भव्य है और मंदिर के भीतरी कक्ष में मुख्य वेदी पर शिवावतार अमरकाय योगी बाबा गोरखनाथ जी की सफेद संगमरमर की दिव्य मूर्ति है। इस मूर्ति का दर्शन मनमोहक और चित्त को शांत करने वाला है। श्री गुरू गोरखनाथ जी की यहां चरण पादुकाएं भी हैं, जिसकी विधिवत् पूजा-अर्चना की जाती है। परिक्रमा मार्ग में भगवान भोलेनाथ की भव्य मांगलिक मूर्ति, गणेश जी की मूर्ति है तो वहीं, पश्चिमोत्तर भाग में काली माता, उत्तर में काल भैरव और उत्तर से थोड़ा सा हटकर शीतला माता का मंदिर है। इस मंदिर के पास ही भैरव जी और इसी से सटा हुई भगवान शिव का मनोहारी और दिव्य शिवलिंग मंदिर है।
अलीगढ़ का खेरेश्वर मंदिर
अलीगढ़ का खेरेश्वर मंदिर जिले के सबसे पवित्र मंदिरों में से एक है। ये संपूर्ण मंदिर भगवान शिव को समर्पित है। इस मंदिर की छत धातु से निर्मित है, वहीं मंदिर सुंदर वास्तुकला के लिए भी प्रसिद्ध है। इस मंदिर में शिवलिंगम के रूप में भगवान शिव के अलावा, मंदिर में दूसरे हिंदू देवी-देवताओं की पीतल की कई मूर्तियां हैं। मंदिर के आसपास एक छोटा सा तालाब और सुंदर क्षेत्र है। शिवजी का ये मंदिर खैर बाईपास सड़क पर स्थापित है। जो राज्य राजमार्ग 22 ए और नेशनल हाइवे 91 को जोड़ता है। शहर के केंद्र से पांच किलोमीटर की दूरी पर मौजूद ये मंदिर सार्वजनिक परिवहन के सभी तरीकों से आसानी से सर्वसुलभ है।
गाजियाबाद का दूधेश्वरनाथ मंदिर
गाजियाबाद के शिवमंदिरों में श्री दूधेश्वरनाथ महादेव मंदिर बहुत प्रसिद्ध है और शिवभक्तों की आस्था का केंद्र है। ये मंदिर पूरी तरीके से भगवान शिव को समर्पित है। ये मंदिर प्राचीन है और इसका इतिहास 5000 साल से भी ज्यादा पुराना है। पौराणिक कथाओं के अनुसार हरनंदी नदी के किनारे पुलस्त्य के पुत्र और रावण के पिता विश्वश्रवा ने घोर तपस्या की थी। इस मंदिर में रावण ने भी पूजा की थी। समय के साथ-साथ हरनंदी नदी का नाम गायब हो गया लेकिन ये प्राचीन शिवमंदिर आज भी यहां विराजमान है। कहावत है कि यहां के कैला गांव से जब गाएं एक टीले के पास घास चरने जाती थीं जैसे ही वो टीले के पास पहुंचती थी उनके थन से अपने आप ही दूध गिरने लगता था। इस घटना से आश्चर्यचकित होकर गांव के लोगों ने जब खोदाई की तो उन्हें यहां पर एक दिव्य शिवलिंग दिखा, जो मंदिर में स्थापित कर दिया गया। गायों के थन से दूध गिरने और शिवजी से जुड़ा होने के कारण इस मंदिर का नाम दुग्धेश्वर महादेव मंदिर पड़ गया। कहा जाता है कि यहां हर समय एक धूनी जलती रहती है जो कलयुग में शिवजी के प्रकट होने तक जलती रहेगी। वहीं, पास में एक कुंआ भी है, जिसका पानी कभी मीठा तो कभी दूध के स्वाद जैसा हो जाता है।
कानपुर का आनंदेश्वर मंदिर
औद्योगिक नगरी कानपुर शिवालयों से भरा पड़ा है, लेकिन यहां के सबसे प्रमुख शिवमंदिरों में आनंदेश्वर मंदिर प्रमुख है। इस मंदिर में आने वाले सभी भक्तों की मनोकामनाएं पूर्ण होती हैं। मंदिर के महंत बताते हैं कि यहां पर महाभारत के महाबलि कर्ण ने पूजा की थी। उन्होंने बताया कि कर्ण को ही ये पता था कि यहां शिवलिंग है। कर्ण गंगा में स्नान करने के बाद गुप्त तरीके से शिवजी की पूजा करते थे। इसके बाद अंतरध्यान हो जाते थे। बताते हैं कि कर्ण को पूजा करते हुए एक गाय ने देख लिया था। जहां कर्ण पूजा करते थे उस स्थान पर जाते ही गाय के थन से अपने आप ही दूध गिरने लगता था। जब वो गाय घर जाती तो उसके थन से दूध नहीं निकलता था, इसके बाद ग्वाले ने गाय पर नजर रखनी शुरू की तो देखा कि वो एक स्थान पर जाकर सारा दूध निकाल देती है। ग्वाले ने पूरे वाक्ये की जानकारी गांववालों को दी। गांववालों ने उस स्थान की खोदाई की तो वहां शिवलिंग निकला। इसके बाद भक्तों ने उस शिवलिंग को गंगा जल और दूध से स्नान करवाकर उसे गंगाजी के पास स्थापित कर दिया। कालांतर में वहां धीरे धीरे भव्य मंदिर बन गया जो आज भी विद्यमान है।
रायबरेली का बालेश्वर मंदिर
रायबरेली के लालगंज क्षेत्र में स्थित प्रसिद्ध बालेश्वर मंदिर अतयंत ही प्राचीन है। बताया जाता है कि आज से 500 साल पहले मंदिर क्षेत्र के चारों ओर घना जंगल था। यहां के पास में रहने वाले चरवाहे यहां अपने मवेशियों को चराने जाते थे। पास के बल्हेमऊ गांव में एक तिवारी परिवार रहता था, जिसकी गाय को एक चरवाया जंगल में चराने के लिए लेकर जाता था। जब चरवाया तिवारी परिवार को गाय लौटाता था तो दूध दुहने पर उसके थन से दूध नहीं निकलता था। तिवारी परिवार को शक हुआ कि कहीं चरवाहा ही तो नहीं गाय का दूध निकाल लेता है, इसके बाद गाय का मालिक बिना बताये जंगल में छुपकर बैठ गया और जैसे ही चरवाहा आया उसने देखा कि उसकी गाय एक झाड़ी के पास स्वयं चली गई और वहां लेट गई। इसके बाद उसके थन से खुद ही दूध गिरने लगा और सारा दूध पास में बने एक छेद में जाने लगा। इसके बाद चुपचाप गाय का मालिक घर आ गया और सो गया। रात में शिवजी ने उसे दर्शन दिये और कहा कि मैं यहां हूं, तुम मूर्ति के पूजन के लिए मंदिर की स्थापना कराओ। इसके बाद सुबह उठकर गाय का मालिक गया और गांववालों की मदद से वहां खोदाई कराई तो उन्हें वहां उस स्थान पर दिव्य शिवलिंग प्राप्त हुआ। इसके बाद कालांतर में यहां भव्य शिवमंदिर बना दिया गया। इस मंदिर की खास बात ये है कि मंदिर में स्थापित त्रिशूल सूर्य की दिशा के हिसाब से घूमता रहता है। इस दिव्य दर्शन को देखने के लिए पूरे जिले से कोने-कोने से लोग यहां आते हैं।
उन्नाव का बोधेश्वर महादेव मंदिर
उन्नाव जिले का बोधेश्वर महादेव मंदिर अपने आप में खूबसूरती का अद्भुत नमूना है। ये मंदिर 15वीं शताब्दी की सुंदर कलाकृति के लिए मशहूर है। इस मंदिर में स्थापित शिवलिंग के पत्थर के बारे में कहा जाता है कि ये पत्थर दुर्लभ है और 400 साल पहले विलुप्त हो चुका है। शिवजी का ये प्रसिद्ध मंदिर उन्नाव के बांगरमऊ में मौजूद है। इस मंदिर के बारे में प्रचलित है कि इस मंदिर के दर्शन मात्र कर लेने से बड़े से बड़े रोग दूर हो जाते हैं। इतना ही नहीं इस मंदिर में पूरे उत्तर प्रदेश से लोग दर्शन करने दूर-दूर से आते हैं। मान्यता के अनुसार एक बार भगवान शिव ने नेवल के राजा को सपने में आकर पंचमुखी शिवलिंग, नंदी और नवग्रह स्थापित करने के आदेश दिए। भगवान का आदेश मिलते ही राजा ने इस काम को प्रारंभ किया। जब ये काम हो गया तो राजा इसे लेकर नगर में प्रवेश करने लगे, तभी अचानक रथ का पहिया जमीन में धंस गया और लाख कोशिशों के बाद भी निकाला नहीं जा सका। अंत में राजा ने उसी स्थान पर भव्य मंदिर का निर्माण करा दिया, जिसके बाद उसी स्थान पर पूजा-अर्चना होने लगी। यहां पर सांपों को लेकर मान्यता है कि यहां रात में अनगिनत सांप आते हैं और शिवलिंग का स्पर्श कर वापस लौट जाते हैं। गांववाले बताते हैं कि आज तक उन लोगों को एक भी सांप ने नहीं डसा है।