महारानी लक्ष्मीबाई का नाम जुबां पर आते ही ना जाने कैसी एक अजीब सी साहस और ऊर्जा की अनुभूति होती है। नारी शक्ति का ऐसा प्रतिरूप शायद ही अब कभी देखने को मिले। महारानी लक्ष्मीबाई ने जिस प्रकार अपने पराक्रम, साहस और ऊर्जा से अंग्रेजों को धूल चटाई वह सच में ही सराहनीय है।
कहने को तो हमने कभी महारानी लक्ष्मीबाई को नहीं देखा। लेकिन बचपन से पढ़ते आ रहे ‘सुभद्रा कुमारी चौहान’ की कविता ‘झांसी की रानी’ का हर एक शब्द प्रत्यक्ष रूप से मन में महारानी लक्ष्मी बाई की छवि बना देता है। कि आखिर वह उस समय में कैसे अंग्रेजों से लड़ाई होगी और उन्हें कैसे अंग्रेजों को धूल चटाई।
“चमक उठी सन 57 में,
वह तलवार पुरानी थी,
बुंदेले हरबोलों के मुख,
हमने सुनी कहानी थी,
खूब लड़ी मर्दानी वह तो,
झांसी वाली रानी थी।।”
झांसी की रानी लक्ष्मीबाई का जन्म 19 नवंबर 1828 को काशी के अस्सी घाट वाराणसी के एक ब्राह्मण परिवार में हुआ था। इसलिए हर साल 19 नवंबर को रानी लक्ष्मीबाई की जयंती मनाई जाती है। लक्ष्मीबाई के पिता का नाम तांबे और उनकी माता का नाम भागीरथी बाई का। लक्ष्मीबाई को बचपन में मणिकर्णिका के नाम से पुकारा जाता था। जिसका अर्थ होता है। मणियों से जड़ा हुआ कान में पहनने का गहना। जब लक्ष्मीबाई केवल 4 साल की थी उस समय उनकी माता का निधन हो गया था। इसके बाद उनके पिता नहीं इनका पालन पोषण किया था। पिता लक्ष्मीबाई को पालने के लिए विट्ठल जिले के पेशावा बाजीराव द्वितीय के लिए काम करते थे। लक्ष्मीबाई बचपन से ही पढ़ाई लिखाई के अलावा विभिन्न कलाओं में माहिर थी। लक्ष्मीबाई को शूटिंग, तलवारबाजी और घुड़सवारी बेहद दिलचस्पी थी। इनके तीन पसंदीदा घोड़े थे सारंगी बादल और पवन।
रानी लक्ष्मीबाई ने मई 1851 में वैवाहिक जीवन में प्रवेश किया था । लक्ष्मीबाई का विवाह झांसी के राजा से किया गया था। इस कारण इन्हें झांसी की रानी के नाम से पहचाना जाने लगा था। इसके बाद 1952 में लक्ष्मी बाई को एक पुत्र की प्राप्ति। लेकिन केवल 4 माह में ही पुत्र की मृत्यु हो गई। इसके बाद महाराजा और लक्ष्मीबाई ने गंगाधर राव के चचेरे भाई को गोद लिया था। बाद में जिसका नाम बदलकर दामोदर राव रखा गया था। लेकिन बच्चा गोद लेने के लिए विभिन्न प्रक्रियाओ से गुजरना पड़ा था। उस समय ब्रिटिश शासन के अनुसार कुछ जरूरी शर्तो के साथ बच्चे को गोद दिया गया था। साथ ही मगराज को ब्रिटिश अधिकारी को एक पत्र भी देना पड़ा था। इस पत्र में बच्चे के पालन पोषण से जुड़े सभी कानूनों को बताया गया था। इसके बाद झांसी को हमेशा के लिए लक्ष्मीबाई को दे दिया गया था।
लक्ष्मी बाई को 17 जून 1858 को वीरगति मिली
1853 में में झांसी के महाराजा की मृत्यु हो गई थी। इसके बाद झांसी में कुछ बदलाव। जिसका प्रभाव झांसी में देखा गया। ईस्ट इंडियन कंपनी ने गवर्नर-जनरल लॉर्ड डलहौजी ने डॉक्ट्रिन ऑफ लैप्स सिद्धांत को लागू किया। जिस कारण दामोदर राव को झांसी के गद्दी से रद्द कर दिया गया था। दामोदर राव को झांसी के महाराजा और लक्ष्मीबाई के दत्तक बच्चे के रूप में जाना जाता था। इसके बाद झांसी का सिंहासन की जिम्मेदारी लक्ष्मीबाई ने ली थी। रानी लक्ष्मीबाई बनाए रखने के लिए कड़ी मेहनत थी।लक्ष्मीबाई को 17 जून 1858 को ग्वालियर के पास लड़ते-लड़ते वीरगति मिली थी।