उत्तर प्रदेश के गाजियाबाद में 11 वर्षीय मासूम के साथ मदरसे में रेप केस में नया खुलासा हुआ है। जिसमें लोकल पुलिस की लापरवाही साफ नजर आ रही है। सूत्रों के मुताबिक गाजीपुर थाने द्वारा मामले में पकड़े गए नाबालिग आरोपी के बालिग होे के संकेत मिले हैं। यह खुलासा क्राइम ब्रांच की जांच में सामने आया है। जबकि स्थानिय पुलिस द्वारा उसे नाबालिग मानकर बाल सुधार गृह भेज दिया गया था।
सूत्रों के मुताबिक, क्राइम ब्रांच को नाबालिग आरोपी की बोन ओसिफिकेशन टेस्ट रिपोर्ट मिली है। इससे जाहिर हो रहा है कि आरोपी नाबालिग ना होकर बालिग है। पुलिस आरोपी की इस रिपोर्ट को जुवेनाइल जस्टिस बोर्ड में पेश करेगी। इस रिपोर्ट से साफ जाहिर होता है कि इस मामले में लोकल पुलिस द्वारा लापरवाही बरती गई है।
बता दें कि पीड़िता ने बताया था कि 17 साल के उस नाबालिग लड़के और मदरसे के मौलवी ने उसका यौन शोषण करते थे और कमरे में कैद कर देते थे। उसने बताया कि मदद के लिए चिल्लाने पर भी उसकी आवाज कोई नहीं सुनता था क्योंकि जिस कमरे में वो कैद थी उस कमरे के बगल में क्लास चलता था जिसके चलते बच्चों की आवाज में उसकी चीखें दब जाती थीं। मीडिया रिपोर्ट्स की मानें तो पीड़िता ने बताया है कि मदरसे में कुछ अन्य लोगों ने भी उसे गलत तरह से छुआ। उनकी पहचानने की कोशिशें भी जारी हैं। जब पीड़िता को मदरसे से छुड़ाने के लिए पुलिस वहां पहुंची थी तो वह एक कपड़ा लपेटे फर्श पर बिछी चटाई पर लेटी हुई थी।
पुलिस से प्राप्त जानकारी के मुताबिक जिस कमरे में बच्ची को कैद कर रखा गया था उस कमरे में मौलवी क्लास के बीच-बीच में आराम करने के लिए पहुंचता था। पुलिस ने बताया कि पिछले साल ही मौलवी को नियुक्त किया गया था।
गौरतलब है कि देश में कठुआ और उन्नाव गैंगरेप जैसे मामलों को गंभीरता से लेते हुए केंद्र सरकार ने पॉक्सो एक्ट में संशोधन कर दिया है। जिसके तहत 0-12 साल के बच्चों के साथ दुष्कर्म करने वालों को फांसी की सजा का प्रवधान है। इस के बावजूद देश में ऐसी घटनाओं के कम होने के बजाय ऐसे मामले बढ़ रहे हैं।