लखनऊ: कलाकार और मशहूर रंगमंच कर्मी उर्मिल कुमार थपलियाल अब हमारे बीच नहीं रहे। उर्मिल कुमार थपलियाल प्रसिद्ध रंगमंच कर्मीं, नाटक लेखक, नाटक निर्देशक, व्यंगकार, साहित्यकार के साथ-साथ बोलियों के रंगमंच के पीएचडी थे। उनकी नौटंकी के आधुनिक शैली शहरी लोगों को भी भा रही थी।
उर्मिल थपलियाल के निधन पर सीएम ने जताया दुख
अपनी प्रतिभा से कला जगत को समृद्ध करने वाले सुप्रसिद्ध रंगकर्मी एवं साहित्यकार श्री उर्मिल कुमार थपलियाल जी का निधन अत्यंत दुःखद है।
प्रभु श्री राम से प्रार्थना है कि दिवंगत आत्मा को अपने परम धाम में स्थान व शोक संतप्त परिजनों को यह दुःख सहने की शक्ति प्रदान करें।
ॐ शांति!
— Yogi Adityanath (@myogiadityanath) July 21, 2021
उर्मिल थपलियाल का काम पूरा भारत में मशहूर था। आज उनकी मृत्यु से कला के क्षेत्र में शोक की लहर है। यूपी के मुख्यमंत्री सीएम योगी आदित्याथ ने भी उर्मिल कुमार थपलियाल की मृत्यु पर गहरा शोक व्यक्त किया है।
सीएम ने ट्विट कर दुख जताया
सीएम योगी ने उर्मिल कुमार थपलियाल की मृत्यु पर ट्विट कर कहा अपनी प्रतिभा से कला जगत को समृद्ध करने वाले प्रसिद्ध रंगकर्मीं और साहित्यकार के निधन पर अत्यंत दुखद है। सीएम योगी ने श्रीराम से प्रार्थना करते हुए थपलिया जी की आत्मा की शांति के लिए प्रार्थना की। साथ ही सीएम योगी ने थपलिायल जी के परिवार को इस दुख को सहन करने की प्रार्थना ईश्वर से की।
गढ़वाल से की थी शुरुआत
आपकों बता दें मशहूर रंगकर्मीं उर्मिल थपलियाल का जन्म 16 जुलाई 1943 को गढ़वाल में हुआ था। उर्मिल कुमार थपलियाल को रंगमंच के गुर अपने बाबा से मिले। इसके साथ ही गढवाल के अन्य नाटककारों से सेभी उन्होने बहुत कुछ सीखा। उर्मिल कुमार थपलियाल ने जय विजय और भक्त प्रहलाद जैसे नाटक 1911-13 में ही लिखे दिए थे। थपलियाल जी ने बचपन में रामलीला में सीता का किरदार अदा करते करते अभिनय को आत्मसाथ कर लिया।
1965 में लखनऊ आ गए थे
सन 1965 में उर्मिल कुमार थपलियाल लखनऊ आ गये और आकाशवाणी लखनऊ में काम किया। सोहन लाल थपलियाल के नाम से आकाशवाणी में प्रादेशिक समाचार पढ़ते पढ़ते आकाशवाणी के लिए एक दो मिनट के फिलर के लिए आधुनिक विषयों को नौटकीं के व्याकरण से जोड़ने लगे। इसी से उन्हें विचार आया कि पूरी रात की नौटंकी एक बूँद में भी समायी जा सकती है।
समाचार के साथ शुरू की थी नौटंकी
इस विचार को आगे बढ़ाते हुए शहरी जनता के लिए नागरी नौटंकी का प्रयोग करने लगे। उन्होंने नौटंकी का ग्रामर लिया और कंटेंट नए, समसामयिक और प्रासंगिक, इससे जो शैली विकसित हुई उसे नौटकीं की थपलियाल शैली कहना ग़लत ना होगा।
दर्पण की शुरुआत की
1971 में प्रोफ़ेसर सत्यमूर्ति (मास्साब) लखनऊ में आधुनिक रंगमंच के लिए दर्पण कानपुर की लखनऊ इकाई की स्थापना करना चाहते थे। थपलियाल उस समय के कुछ उत्साही और मास्साब के साथ काम कर चुके रंगकर्मियों के साथ आगे आये और उनके साथ मिल कर दर्पण लखनऊ की स्थापना की। दर्पण में अभिनय के अलावा उन्होंने दर्पण के लिए सबसे ज्यादा नाटकों का निर्देशन किया।
संगीत नाटकों से पाया बड़ा मुकाम
उनके संगीत प्रधान नाटक दर्पण में मील के पत्थर साबित हुए और पूरे भारतीय रंगमंच परिदृश्य में दर्पण को स्थापित करने वाले बने। जैसे-नई तर्ज की नौटंकी, अबू हसन, यहूदी की लड़की, वीर अभिमन्यु, हरिश्चन्नर की लड़ाई, हम फिदाए लखनऊ, कनुप्रिया, गुलाब बाई (औरत की जंग) इत्यादि. उनके निर्देशन के नाटक भारंगम में, आठवें थियेटर ओलम्पिक में तथा देश के कई प्रसिद्द रंग समारोहों और रंगस्थलों में हुए हैं।
संगीत नाटकों के साथ कई नाटक निर्देशित किए
संगीत प्रधान नाटकों के इतर भी, उनके द्वारा निर्देशित कई चर्चित नाटक रहे जिनमें प्रमुख हैं – किसी एक फूल का नाम लो, सूर्य की अंतिम किरण… , गुफायें, हनीमून, खूबसूरत बहू, कमला, कागजी है पैरहन, हे ब्रेख्त इत्यादि इत्यादि. थपलियाल जी ने दर्पण के लिए विशेष रूप से नाटक लिखे. वो दर्पण के मेंटोर हैं। दर्पण के निदेशक के तौर पर नाटकों के चयन में उनकी राय अंतिम होती है।
कई बड़ी उपलब्धियां अपने नाम की
उर्मिल कुमार थपलियाल की, उपलब्धियों और लेखन का अनन्त विस्तार है। यश भारती, .केन्द्रीय संगीत नाटक अकादमी अवार्ड, उत्तर प्रदेश संगीत नाटक अकादमी की रत्न सदस्यता और अकादमी पुरस्कार, उत्तर प्रदेश हिंदी संस्थान का कला भूषण-भारतेन्दु हरिश्चंद्र पुरस्कार जैसे अनेक पुरस्कारों से सम्मानित थपलियाल ने 27 साल तक लगातार स्वतंत्र भारत के लिए नट नटी के माध्यम से ‘आज की नौटंकी’ कालम लिखा. 200 से भी अधिक नाटकों का निर्देशन कर चुके हैं।
दस हजार से ज्यादा व्यंग की रचना की
अभी जनवरी में ही दर्पण के लिए ‘हे ब्रेख्त’ का लेखन एवं निर्देशन किया। उनके 10 से अधिक नाटक प्रकाशित हो चुके हैं। 10000 से भी अधिक उनकी व्यंग रचनायें हैं।
कई बड़े अवार्ड से भी नवाजे गए
पिछले 60 वर्षों से निरंतर रंगकर्म में सक्रिय थपलियाल, राष्ट्रिय नाट्य विद्दयालय, भारतेन्दु नाट्य अकादमी, श्रीराम सेंटर नई दिल्ली में अतिथि प्रवक्ता तथा उनकी चयन समितियों में विशेषज्ञ के रूप में अपनी सेवाएं दे रहे थे। थपलियाल फिल्म एंड टेलीविजन इंस्टिट्यूट, पुणे के भी विशेषज्ञ सदस्य भी रहे है।