- फिल्मी ड्रामे से कम नहीं है ये कहानी
- प्यार, धोखा और जिद की इस जंग में प्रेमिका ने हासिल किया अपना प्यार
मऊ। स्थान- यूपी के मऊ जिले का रैकवारडीह गांव। समय-शाम के चार बजने वाले हैं। गांव में एक युवक की बारात जाने की तैयारियां हो रहीं हैं। दूल्हा नहा धोकर मंद-मंद मुस्कुराहट के साथ कपड़े पहन रहा है। परछावन की तैयारी हो रही है। एक तरफ डीजे का शोर है तो दूसरी ओर बैंड पार्टी के धुन पर दोस्त-यार सगे संबंधी झूम रहे हैं। तैयार हो रहे दूल्हे के उपर महिलाएं चावल छिड़क रहीं हैं और मंगल गीत गा रहीं हैं।
दूल्हे के जीजा कपड़ा पहना रहे हैं। दूसरी ओर कुछ बच्चे बारात जाने वाली गाड़ियों में पहले से ही अपनी सीट पक्की कर चुके हैं तो वहीं कुछ अभी कपड़े पहन रहे हैं, बाल संवार रहे हैं। दूल्हे का भाई सबके उपर परफ्यूम छिड़क रहा है। परिवार और गांव के बुजुर्ग बारात को जल्दी ले जाने के लिए सबको अल्टीमेटम दे रहे हैं। लेकिन, महिलाएं अभी खुद डीजे और बैंड की धुन पर थिरकने की तैयारी कर रहीं हैं।
इसी बीच एक युवती अपने साथ कुछ लोगों को लेकर आती है। उसको देखते ही दूल्हे के चेहरे का रंग उतर जाता है। जो लोग पहले दूल्हे को निहार रहे होते हैं, कुछ ही मिनट में सब उस लड़की की ओर देखने लग जाते हैं। अचानक डीजे और बैंड बाजे को बंद करवा दिया जाता है। बारात जाने वाली गाड़ियों में बैठे लोगों को उतार दिया जाता है। आपको यह बातें किसी फिल्मी सीन की स्क्रिप्ट जैसी लग रहीं होंगी। लेकिन, यह पूरी हकीकत है। उसके बाद जो होता है तो वह किसी भी फिल्मी पर्दे की कहानी से ज्यादा रोचक है।
कहानी का प्लॉट समझने के लिए जाना होगा अतीत में
मऊ के रैकवारडीह गांवा निवासी अरविंद मौर्या दिल्ली में प्राइवेट जॉब करते हैं। उनके साथ उनकी भाभी और भाई भी रहते हैं। एकदिन अचानक उनकी भाभी की बहन स़ुमन मौर्या वहां रहने आती हैं। सुमन के मुताबिक उसके और अरविंद के बीच नजदीकियां बढ़ती हैं। दोनों साथ में जीने मरने की कसमें खाते हैं। इस बीच दोनों के रिश्ते से अनजान घरवाले अरविंद की शादी कहीं और तय कर देते हैं। घरवालों के दबाव और लोकलाज के डर से दोनों ही अलग होने का निर्णय ले लेते हैं। लेकिन, अलग होने का निर्णय लेने और उस पर पूरी तरह अडिग रह पाने में जमीन आसमान का अंतर होता है।
अरविंद की शादी तय
करीब छह महीने पहले एक लड़की से अरविंद की शादी तय हो जाती है। जिसके बाद अरविंद और सुमन एकदूसरे को भूलने की कोशिश करने लगते हैं। अरविंद की शादी की तारीख 22 मई तय की जाती है। जैसे-जैसे अरविंद की शादी नजदीक आती है वह तैयारियों में जुट जाता है। आखिरकार वह दिन भी आता है, जब उसकी बारात जानी होती है।
बारात निकलने के आधे घंटे पहले पूरी कहानी बदल जाती है
आपने अक्सर फिल्मों में देखा होगा कि प्रेमी-प्रेमिका अलग हो जाते हैं लेकिन किसी एक की शादी के दौरान नाटकीय रूप में बदलाव आता है और प्रेमी या प्रेमिका आकर सारी दुनिया को दरकिनार कर अपने प्यार को चुनने का निर्णय ले लेते हैं। फिर कहानी का सुखद अंत हो जाता है। लेकिन, यह कहानी पर्दे की नहीं बल्कि सच्ची कहानी है।
22 मई को अरविंद की शादी के दौरान बारात जाने की तैयारी हो रही होती है। इसी बीच उसकी प्रेमिका सुमन आती है कहती है कि अरविंद तुमको मुझसे शादी करना होगा। अन्यथा मैं अपनी जान दे दूंगी। सुमन की बात सुनकर सब अवाक रह जाते हैं। अरविंद से सुमन के रिश्ते के बारे में पूछा जाता है तो वह पहले इनकार करता है, लेकिन बाद में पुलिस के हस्तक्षेप के बाद स्वीकार कर लेता है। पुलिस मामले के बीच-बचाव में आती है। पहले जहां बारात जानी होती है उस लड़की के घरवालों को समझाया जाता है। दोनों पक्षों को बुलाकर आपसी सहमति से सुलह कराई जाती है। उसके बाद 27 मई को अरविंद की शादी सुमन से की जाती है।
गांव वाले बने बाराती-घराती, प्रधानपति अभिभावक
पूरे मामले के बाद गांव के ही एक मंदिर में दोनों की शादी कराने का निर्णय लिया जाता है। गांव के युवक ही बाराती और घराती बनते हैं। प्रधानपति संतराज यादव अभिभावक के रूप में पूरे गांव वालों को मिठाई खिलाते हैं। पूरे विधि-विधान और धूमधाम से अरविंद और सुमन की शादी करवाते हैं।
प्रधानपति संतराज यादव कहते हैं कि मैंने अपने जीवनकाल में अभी तक ऐसा वाकया नहीं देखा। लेकिन, समाज बदल रहा है, अब लोग अपनी पसंद से शादियां कर रहे हैं। यह घटना वाकई में एकदम अलग है। अभी तक तो फिल्मों में ही देखा लेकिन अब हकीकत में भी देख रहे हैं।
वह कहते हैं कि समाज को अब युवाओं की सोच के साथ ढलना होगा। इसी में सबकी भलाई है। उन्होंने कहा कि गांव का एक जिम्मेदार प्रतिनिधि होने के नाते मैं परिवार और दोनों युगल के निर्णय के साथ हूं।