उत्तराखंड

पुस्तकालयों को ‘सूचना कोष’ के रूप में पुनर्स्थापित करने की जरूरतः राज्यपाल

libraray पुस्तकालयों को ‘सूचना कोष’ के रूप में पुनर्स्थापित करने की जरूरतः राज्यपाल

देहरादून। उत्तराखण्ड के राज्यपाल डाॅ0 कृष्ण कांत पाल ने कहा कि सूचना एवं संचार प्रौद्यौगिकी के क्षेत्र में हुई प्रगति से पुस्तकालय विज्ञान के क्षेत्र में भी बहुत बड़ा परिवर्तन आया है। वर्तमान इन्फाॅर्मेशन सोसाइटी पुस्तकालयों और पुस्तकालय व्यवसाइयों के लिए एक बहुत बड़ी चुनौती है जिसका सामना करने के लिए पुस्तकालयों को ‘सूचना कोष’ के रूप में पुनर्स्थापित करने की जरूरत है। राज्यपाल मंगलवार को इंदिरा गाँधी राष्ट्रीय वन अकादमी, देहरादून में आयोजित तीन दिवसीय राष्ट्रीय संगोष्ठी को बतौर मुख्य अतिथि सम्बोधित कर रहे थे।

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हर पल बदलती पहचान के इस दौर में खुद को बचाये रखने के लिए वर्तमान पीढ़ी तथा सूचना उपयोगकर्ता को संतुष्ट करना जरूरी है। आज के समय में बच्चे और युवा पीढ़ी पुस्तकों से दूर होते जा रहे हंै जो पुस्तकालयों के समक्ष एक बड़ी चुनौती है। ऐसे में यह सुनिश्चित करना जरूरी है कि लोग पुस्तक पढ़ने की महत्ता को समझ कर पुस्तकें पढ़ना न छोड़ें। वास्तविक पुस्तकों को पढ़ने में जो आनन्द है वह डिजीटल पुस्तकों में नहीं मिलता।

राज्यपाल ने कहा कि डिजीटल दस्तावेजों और डिजीटल प्रौद्यौगिकी की प्रगति के साथ पुस्तकालयाध्यक्षों की भूमिका भी विस्तृत हो गई है क्योंकि पुस्तकालयों के अस्तित्व के लिए व्यापक चुनौतियाँ मौजूद हैं किन्तु इसके साथ ही वर्तमान तकनीकी परिवेश में उपयोगकर्ताओं की बदलती जरूरतों को पूरा करने के लिए पुस्तकालय पेशे से जुड़े लोगों हेतु एक उचित रणनीति तैयार करने के भी अनेक अवसर उपलब्ध हैं।

उन्होंने कहा कि भारत को ज्ञान आधारित समाज में तब्दील करने के लिए शैक्षणिक पुस्तकालयों को अपना स्वरूप बदलकर नई चुनौतियों का सामना करते हुए अपेक्षाओं को पूरा करना होगा। डिजीटल संसाधनों का भरपूर प्रयोग, शिक्षा का बदलता हुआ स्वरूप और सूचना-संचार प्रौद्यौगिकी की भूमिका, शैक्षणिक लाइब्रेरी के समक्ष आज सबसे बड़ी चुनौती है। डिजीटल जानकारी तथा संसाधनों के प्रभावी प्रबन्धन पर बोलते हुए राज्यपाल ने कहा कि शिक्षा तथा अनुसंधान के क्षेत्र, शैक्षणिक संस्थानों, संकाय, विद्यार्थियों तथा स्काॅलर्स की माँग की पूर्ति के लिए डिजीटल टैक्नालाॅजी का प्रभावी तरीके से प्रयोग किया जाना चाहिए।

राज्यपाल ने कहा कि मोबाइल टैक्नालाॅजी के उद्भव, उसकी लोकप्रियता और समाज के लिए उसकी बहुपयोगिता ने शैक्षिक पुस्तकालयों के लिए नये मार्ग प्रशस्त कर दिए हैं। साथ ही बड़े पैमाने पर खुले आॅनलाइन पाठ्यक्रम, आॅनलाइन शिक्षा की शुरूआत शैक्षिक पुस्तकालय के लिए चुनौती भरा आयाम है। ओपन सोर्स साॅफ्टवेयर के अधिकतम और प्रभावी उपयोग पर बल देते हुए राज्यपाल ने कहा कि ओपन सोर्स वर्तमान में महत्वपूर्ण भूमिका निभा रहे हैं और भविष्य में और अधिक अहम भूमिका अदा कर सकते हैं।

उन्होंने कहा कि भारत के सभी लाइब्रेरी स्कूलों को उभरती प्रौद्यौगिकी की चुनौतियों का सामना करने के लिए अपने शैक्षिक पाठ्यक्रम विकसित करने होंगे। राष्ट्रीय ज्ञान आयोग ने शैक्षिक पुस्तकालयों के महत्व को पहचाना है।उन्होंने कहा, सभी को सार्वजनिक रूप से ज्ञान उपलब्ध कराने में पुस्तकालयों की भूमिका से सभी परिचित हैं। सूचना और सीखने की दृष्टि से उनकी सेवायें राष्ट्रीय और वैश्विक ज्ञान का स्थानीय द्वार हैं। इसी के दृष्टिगत 2007 में भारत सरकार द्वारा, नेशनल नाॅलेज कमीशन के अधीन, लाइब्रेरीज के पुनरोद्धार हेतु रूपरेखा तैयार करने हेतु पुस्तकालयों का कार्य समूह गठित किया गया।

संगोष्ठी के आयोजन को महत्वपूर्ण बताते हुए राज्यपाल ने कहा कि इस क्षेत्र के पेशेवर लोग अपने ज्ञान से उन्हें लाभान्वित कर सकते हैं जो नई और उभरती तकनीकी प्रणालियों के अभ्यस्त नहीं हो पाए है।

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