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भारतीय ऋषि मुनियों द्वारा बनाई गई गोत्र प्रणाली को वैज्ञानिक तरीके से डिकोड करना सीखें

गोत्र

प्राचीन भारतीय संस्कृति और सभी पौराणिक ग्रंथों के अनुसार भारतीय रीति-रिवाजों (वंश वृद्धि, धार्मिक कृत्य, पिंड दान) को पूर्ण रूप से संपन्न करने के लिए गोत्र को आगे चलाने के लिए संतान में पुत्र का महत्व ही गोत्र की व्याख्या करता है | इनकी उत्पत्ति कैसे हुई इस सम्बंध में धार्मिक ग्रन्थों का आश्रय लेना पड़ेगा।

धार्मिक आधार- महाभारत के शान्ति पर्व (296 -17 , 18) में वर्णन है कि मूल चार गोत्र थे-

1-अंगिरा।
2- कश्यप।
3- वशिष्ठ
4- भृगु ।

रहस्य एवं महत्त्व …???

इन दिनों गोत्र शब्द की बहुत चर्चा है। यह कब से प्रचलन में है इसे ठीक से नहीं कहा जा सकता। संस्कृत में यह शब्द नहीं मिलता है। वहाँ गोष्ठ शब्द तो मिलता है जो कि गोत्र का समानार्थक है।
इसका कारण हमारे ऋषि मुनियो द्वारा वर्णित किया गया है व अनेक कथाओ में आता भी है | जिसे हमारा आधुनिक चिकित्सा विज्ञान भी मानता है||

आइए हम मानवीय जन्म की ईश्वर प्रदत्त प्रकिर्या को सूक्ष्म रूप से समझने की कोशिश करते हैं|
एक स्त्री में गुणसूत्र (Chromosomes) XX होते हैं…. और, पुरुष में XY होते हैं.

इसका यह अर्थ है कि…. अगर पुत्र हुआ (जिसमें XY गुणसूत्र है)… तो, उस पुत्र में Y गुणसूत्र पिता से ही आएगा क्योंकि माता में तो Y गुणसूत्र होता ही नहीं है।

और…. यदि पुत्री हुई तो उसमे (xx गुणसूत्र) तो यह गुणसूत्र पुत्री में माता व पिता दोनों से आते हैं।

XX गुणसूत्र अर्थात पुत्री

अब इस XX गुणसूत्र के जोड़े में एक X गुणसूत्र पिता से तथा दूसरा X गुणसूत्र माता से आता है।

तथा, इन दोनों गुणसूत्रों का संयोग एक गांठ सी रचना बना लेता है… जिसे, Crossover कहा जाता है.

जबकि… पुत्र में XY गुणसूत्र होता है.

अर्थात…. जैसा कि मैंने पहले ही बताया कि…. पुत्र में Y गुणसूत्र केवल पिता से ही आना संभव है क्योंकि माता में Y गुणसूत्र होता ही नहीं है.

और…. दोनों गुणसूत्र अ-समान होने के कारण…. इन दोनों गुणसूत्र का पूर्ण Crossover नहीं… बल्कि, केवल 5% तक ही Crossover होता है.

और, 95% Y गुणसूत्र ज्यों का त्यों (intact) ही बना रहता है.

तो, इस प्रक्रिया के द्वारा Y गुणसूत्र महत्त्वपूर्ण हुआ…. क्योंकि, Y गुणसूत्र के विषय में हम निश्चिंत हैं कि…. यह पुत्र में केवल पिता से ही आया है.

तो हम पाते है की ….. इसी Y गुणसूत्र का पता लगाना ही गोत्र प्रणाली का एकमात्र उदेश्य है जो हजारों/लाखों वर्षों पूर्व हमारे ऋषियों ने जान लिया था.

इस तरह ये बिल्कुल स्पष्ट है कि…. हमारी वैदिक गोत्र प्रणाली, गुणसूत्र पर आधारित है अथवा Y गुणसूत्र को समझने का एक माध्यम है.

उदाहरण के लिए …. यदि किसी व्यक्ति का गोत्र वशिष्ठ है तो उस व्यक्ति में विद्यमान Y गुणसूत्र वशिष्ठ ऋषि से आया है…. या कहें कि वशिष्ठ ऋषि उस Y गुणसूत्र के मूल हैं.

अब चूँकि…. Y गुणसूत्र स्त्रियों में नहीं होता है इसीलिए विवाह के पश्चात स्त्रियों को उसके पति के गोत्र से जोड़ दिया जाता है.

वैदिक/ हिन्दू संस्कृति में एक ही गोत्र में विवाह वर्जित होने का मुख्य कारण यह है कि एक ही गोत्र से होने के कारण वह पुरुष व स्त्री भाई-बहन कहलाए क्योंकि उनका पूर्वज (ओरिजिन) एक ही है….. क्योंकि, एक ही गोत्र होने के कारण…
दोनों के गुणसूत्रों में समानता होती है ।

वर्तमान के आनुवंशिक विज्ञान के अनुसार भी….. यदि सामान गुणसूत्रों वाले दो व्यक्तियों में विवाह हो तो उनके संतान… आनुवंशिक विकारों के साथ उत्पन्न होगी क्योंकि…. ऐसे दंपत्तियों की संतान में एक सी विचारधारा, पसंद, व्यवहार आदि में कोई नयापन नहीं होता एवं ऐसे बच्चों में रचनात्मकता का अभाव होता है.

विज्ञान द्वारा भी इस संबंध में यही बात कही गई है कि एक ही गोत्र में शादी करने पर अधिकांश ऐसे दंपत्ति की संतानों में अनुवांशिक दोष अर्थात मानसिक विकलांगता, अपंगता, गंभीर रोग आदि जन्मजात ही पाए जाते हैं.

इसी कारण शास्त्रों के अनुसार एक ही गोत्र में विवाह वर्जित माना गया है| जैसा कि हम जानते हैं कि…. पुत्री में 50% गुणसूत्र माता का और 50% पिता से आता है.

फिर, यदि पुत्री की भी पुत्री हुई तो…. वह डीएनए 50% का 50% रह जायेगा… और फिर…. यदि उसके भी पुत्री हुई तो उस 25% का 50% डीएनए रह जायेगा.

इस तरह से सातवीं पीढ़ी में पुत्री जन्म में यह प्रतिशत घटकर 1% रह जायेगा.

अर्थात…. एक पति-पत्नी का ही डीएनए सातवीं पीढ़ी तक पुनः पुनः जन्म लेता रहता है….और, यही है “सात जन्मों के साथ का रहस्य”.

लेकिन….. यदि संतान पुत्र है तो …. पुत्र का गुणसूत्र पिता के गुणसूत्रों का 95% गुणों को अनुवांशिकी में ग्रहण करता है और माता का 5% (जो कि किन्हीं परिस्थितियों में एक % से कम भी हो सकता है) डीएनए ग्रहण करता है…
और, यही क्रम अनवरत चलता रहता है.

आश्चर्य की बात है कि…. हमारे पूर्वज ऋषि मुनि…. इंसानी शरीर में गुणसूत्र के विभक्तिकरण को समझ गए थे…. और, हमें गोत्र सिस्टम में बांध लिया था.

जिस प्रकार आधुनिक जीव विज्ञान में अंग प्रत्यारोपण व रक्तदान आदि में DNA को मिलाकर देखते है| यह भी इसी गोत्र प्रणाली का ही तो अंग है||

इन बातों से एक बार फिर ये स्थापित होता है कि…. हमारा सनातन हिन्दू धर्म पूर्णतः वैज्ञानिक है…. बस, हमें ही इस बात का भान नहीं है.

पं. अक्षय शर्मा———🌹 ✍🏻
9639611555

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