ललिता पंचमी व्रत। आश्विन शुक्ल पंचमी यानि शारदीय नवरात्रि की पंचमी को ललिता पंचमी पर्व मनाया जाता है। ललिता पंचमी का व्रत बहुत ही फलदायी होता है। इस दिन देवी की पूजा जो व्यक्ति पूर्ण भक्तिभाव से करता है, उसे देवी की विशेष कृपा प्राप्त होती है। इस व्रत के बारे में स्वंय भगवान श्रीकृष्ण ने कहा है कि यह व्रत सुख, संपत्ति, योग, संतान प्रदान करने वाला व्रत है। संतान के सुख एंव उसकी लंबी आयु की कामना के लिए इस व्रत को किया जाता है। इस वर्ष ललिता पंचमी/उपांग ललिता व्रत 21 अक्टूबर बुधवार को मनाया जाएगा।
ललिता देवी को त्रिपुर सुंदरी के नाम से भी जाना जाता है। पुराणों के अनुसार माता सती अपने पिता दक्ष द्वारा भगवान शिव का अपमान किए जाने पर यज्ञ अग्नि में अपने प्राण त्याग देती हैं। जिसके बाद भगवान शिव उनके शरीर को उठाए हुए घूमते हैं। ऐसे में पूरी धरती पर हाहाकार मच जाता है। जब विष्णु भगवान अपने सुदर्शन चक्र से माता सती की देह को विभाजित कर देते हैं। तब भगवान शंकर को ह्दय में धारण करने पर इन्हें ललिता के नाम से पुकारा जाने लगा।
ललिता व्रत पूजा विधि-
- इस दिन सबसे पहले प्रातःकाल उठकर स्नान आदि से निवृत्त होकर स्वच्छ वस्त्र धारण करें।
- घर के ईशान कोण में, पूर्व या उत्तर दिशा की ओर बैठे और मातारानी का पूजन करें।
- सबसे पहले शालिग्राम जी का विग्रह, कार्तिकेय जी का चित्र, माता गौरी और भगवान शिव की मूर्तियों समेत सभी पूजन सामग्री को एक जगह एकत्रित कर लें।
- पूजन सामग्रीः तांबे का लोटा, नारियल, कुमकुम, अक्षत, हत्दी, चंदन, अबीर, गुलाल, दीपक, घी, इत्र, पुष्प, दूध, जल, फल, मेवा, मौली, आसन इत्यादि है।
- पूजा के दौरान माता के मंत्रों का जाप करें, अंत में जो भी आपकी मनोकामना हो उसकी प्राथना करें।
- इस दिन मां ललिता के साथ-साथ स्कंद माता और भोलेनाथ की पूजा की जाती है।