उत्तर प्रदेश चुनाव अब अपने आखिरी पड़ाव में है, शेष बचे छठे और सातवें चरण के चरण के चुनाव को लेकर सभी राजनीतिक पार्टियां लोगों को लुभाने के लिए कोई कोर कसर नहीं छोड़ना चाह रही है। प्रदेश में छठवें चरण का मतदान आगामी 4 मार्च और सातवें और अंतिम चरण का मतदान 8 मार्च को होना है। इन दोनों चरणों में प्रदेश का पूर्वांचल क्षेत्र आता है जहां की भौगोलिक, आर्थिक, शैक्षिक स्थिति अन्य जिलों और शहरो से एक दम अलग है। छठवें चरण में प्रदेश के सात जिलों के 49 सीटों और सातवें चरण में 7 जिलों के 40 सीटों पर मतदान होना है।
पूर्वांचल पर एक नजर- आगामी 4 और 8 मार्च को होने वाले मतदान में पूर्वांचल के कई क्षेत्र आते हैं। मुख्यरुप से जिन क्षेत्रों में अब चुनव होना है वह क्षेत्र ग्रामीणांचल है, कुछ एक शहरों को छोड़ दिया जाए तो विकास के नाम पर बस कागजी कार्यवाही ही आपको देखने को मिलेगी। पूर्वांचल का नाम सामने आते ही जिन शहरों की छवि सामने आती है वह है गोरखपुर और वाराणसी, बाकी के शहर अपनी अपनी समस्याओं के मारे हुए हैं। ऐसा नहीं है कि इन शहरों के अलावा विकास के लिए कहीं कुछ है नहीं पर असलियत यह है कि शिक्षा का स्तर अच्छा ना होने के कारण ना तो यहां की समस्याओं की कोई सुनवाई करने वाला है और ना ही कोई आवाज उठाने वाला। हर पांच साल पर नेताजी आकर लोगों को लोक लुभावने वादे करते हैं और चुनावी रोटियां सेंक कर अलग ही नजर आते हैं।
पूर्वांचल की समस्या- पूर्वांचल का क्षेत्र विकास की अपार संभावनाओं से भरा हुआ है, पर जमीनी तौर पर इस विकास को ना तो कोई खास उत्प्रेक मिला है और ना ही कुछ खास आपको देखने को मिलेगा। जिन दो चरणों में अब मतदान होना है वह क्षेत्र मुख्य रुप से ग्रामीण हैं जहां पर अधिकांश रुप से खेती-किसानी ही लोगों का प्रमुख रोजगार माना जाता है। क्षेत्र तराई है इसलिए गेहूं, धान और गन्ने की पैदावार अच्छी होती है, पर समस्या वही, किसानों को उनके मेहनत का फल मनमुताबिक नहीं मिल पाता। प्रधनमंत्री नरेंद्र मोदी ने हालांकि अब तक गोरखपुर, मऊ, बलिया और कई अन्य क्षेत्रों की अपनी रैलियों को किसानों पर केंद्रित जरुर किया है लेकिन इसका परिणाम क्या होता है वह आगामी 11 मार्च को ही स्पष्ट होगा।
क्षेत्र की प्रमुख समस्याओं में गन्ना किसानों के साथ हो रहे अत्याचार की समस्या प्रमुख है, किसानों को समय से गन्ने का भुगतान नहीं होता, पैसे कई कई वर्षों तक नहीं मिल पाते जिसका परिणाम यह है कि अब आपको क्षेत्र में दिन प्रतिदिन गन्ने की पैदावार गिरती नजर आएगी। कई सारे ऐसे चीनी मिले हैं जो सदियों से बंद पड़े हैं, जिसके चलते किसानें को अपने गन्नों को दूर भेजना पड़ता है। बंद पडी चीनी की मिलें राजनीति का बड़ा केंद्र हैं, लगभग हर चुनाव में इनपर रोटियां सेंकी जाती है और फिर सत्ता मिलते ही नेता इसे बुरे सपने की तरह भूल जाया करते हैं।
शिक्षा का बुरा हाल– पूर्वांचल क्षेत्र में शिक्षा का स्तर निम्न है, पढ़ाई के नाम पर प्रारंभिक शिक्षा का हाल बदहाल है, प्रदेश में सत्ता का परिवर्तन होता रहा पर शिक्षा का हाल तब भी वैसे था आज भी वैसा ही। उच्च स्तरीय शिक्षा के लिए अब भी यहां के लोगों कों अन्य प्रदेशों का सहारा लेना पड़ रहा है। सुदूर गांवों के लोगों को आज भी मैट्रिक पढ़ाई के लिए कई किलोमीटर का सफर करना पड़ता है। 21 वीं सदी मे आज भी अगर देखें तो गिनती की ही लड़कियां होंगी जिन्होंने बड़े नाम बनाए हों।
छठे और सातवें चरण का मतदान- 4 मार्च को होने वाले छठे चरण में महराजगंज, कुशीनगर, गोरखपुर, देवरिया, आजमगढ़, मऊ और बलिया में चुनाव होना है वहीं 8 मार्च को सातवें चरण में 8 मार्च को होने वाले मतदान में गाजीपुर, वाराणसी, चंदौली, मिर्जापुर, सोनभद्र, भदोही और जौनपुर में चुनाव होने है। दोनों चरणों में चुनाव का मुख्य केंद्र किसानों की समस्या, विकास और शिक्षा है। पार्टियें ने क्षेत्र की समस्याओं पर ध्यान केंद्रित करते हुए चुनावी घोषणा जरुर किए है पर यह वादे असलियत में कितने जमीनी होते हैं यह भविष्य की गोद में है।