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भाषा संरक्षण और विकास को एक जन आन्दोलन का आकार लेना चाहिए

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नई दिल्ली। उपराष्ट्रपति एम. वेंकैया नायडू ने आज कहा कि भाषा संरक्षण और विकास केवल विकास का दायित्व नहीं हो सकता और यह भी कहा कि इसे जन आन्दोलन का रूप देना चाहिए। उन्होंने कहा कि ‘समुदाय की सहभागिता भाषा के संरक्षण और सुरक्षा के लिए अनिवार्य है।

वह आज नई दिल्ली में के. के. बिडला फाउंडेशन द्वारा आयोजित 28 वें सरस्वती सम्मान पुरस्कार समारोह में उपस्थित जन समूह को संबोधित कर रहे थे। उन्होंने सर्वाधिक योग्य व्यक्तियों को सम्मानित करने के लिये हमारे विशाल देश की विभिन्न भाषाओं के साहित्य में रचनात्मक योगदान का निर्धारण करने हेतु एक प्रारूप के सृजन करने पर के.के. बिडला फाउंडेशन की सराहना की। उन्होंने कहा कि भारतीय भाषाओं का संवर्धन एक ऐसा प्रयोजन है जो उनके हृदय के निकट है। उन्होंने कहा कि भाषा किसी भी संस्कृति की जीवन रेखा होती है। उन्होंने कहा कि ‘हमें भाषाओं को संरक्षित करने, बढ़ावा देने एवं प्रसारित करने का हर संभव प्रयास करना चाहिए। अगर कोई भाषा मृत हो जाती है तो उस भाषा के साथ जुड़ी सांस्कृतिक पहचान, परम्पराएं और रीति रिवाज भी समाप्त हो जाएंगी।’

यह देखते हुए कि भाषा संरक्षण और विकास के लिये एक बहुकोणीय दृष्टिकोण की आवश्यकता है, उन्होंने लोगों से हर समय अपनी मातृ भाषा में बोलने की आवश्यकता की वकालत की, जब तक की अन्य भाषा में संवाद करना आवश्यक न हो जाए।

क्षेत्रीय भाषाओं को बढ़ावा देने की संसद की पहल के बारे में जिक्र करते हुए उपराष्ट्रपति ने कहा कि राज्य सभा के सदस्य अब संसद में 22 अनुसूचित भाषाओं में से किसी में भी बोल सकते हैं और अपने विचार प्रस्तुत कर सकते हैं। उन्होंने यह भी कहा कि इसके साथ-साथ भी अनुवाद भी उपलब्ध कराया जाता है और सदस्य उन भाषाओं में से किसी में भी अपने विचारों को संप्रेषित कर सकते हैं।

नायडू ने सुझाव दिया कि हमारी भाषाओं और संस्कृति को संरक्षित करने और बढ़ावा देने के लिये प्रौद्योगिकी की ताकत का दोहन किया जाए। उन्होंने सभी भारतीय भाषाओं में अधिक से अधिक ऑन लाइन शब्दकोश, इनसाइक्लोपीडिया, ग्लोसरी, शोध लेख और खोज किए जाने वाले डाटा बेस का सृजन करने की भी अपील की। उन्होंने कहा कि ‘पुरानी पांडुलिपियों की सहजता से पुनःप्राप्ति के लिये इलेक्ट्रोनिक तरीके से उनका भण्डारण किया जाए।’

उपराष्ट्रपति का विचार था कि अच्छी कविता, साहित्य और लेखों को पढ़ने से न केवल नए विचार उत्पन्न होते है बल्कि वे हमें हास्य, प्रसन्नता और हृदय को जुड़ाने वाली भावनाएं भी प्रदान करती है। उन्होंने डॉ. के शिवा रेड्डी को बधाई दी जिन्होंने अपने तेलुगू काव्य संकलन ‘पक्काकी ओट्टीगिलाइट’ के लिये ‘सरस्वती सम्मान’ प्राप्त किया।

नायडू ने कहा कि के शिवा रेड्डी न केवल तेलुगू बल्कि भारतीय साहित्य के सबसे बड़े कवियों में से एक है और वह अपने विशद लेखन और सहजता से विषयों और रूपों के साथ प्रयोग करने वाले एक ट्रेन्ड सेटर बन गए हैं। उपराष्ट्रपति ने कहा कि डॉ. शिवा रेड्डी में काव्यात्मक अभिव्यक्ति की एक पूरी श्रृंखला थी जिसमें मार्क्सवाद से लेकर मानवतावाद तक की गूंज थी। उन्होंने कहा कि वह शोषित और दमित व्यक्तियों के समर्थक रहे हैं।

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