पटना। रांची में देवघर कोषागार के केस में शनिवार को सीबीआई कोर्ट के लालू यादव को जेल भेजने के फैसले से बिहार की सियासी राजनीति पर दूरगामी प्रभाव पड़ने के आसार हैं। लालू के लंबे समय तक जेल में रहने और आने वाले दिनों में कोर्ट-कचहरी का चक्कर बढ़ने से राजद के विधायकों का एकजुट रहना सबसे कठिन चुनौती है। लालू की अनुपस्थिति में उनके छोटे बेटे तेजस्वी प्रसाद यादव ने राजनीतिक विरासत संभाल ली है और जमानत के लिए हाईकोर्ट में याचिका दायर करने का फैसला कर लिया है जहाँ से जमानत संभावित है।
साथ ही राजनीतिक हलकों में इस बात की चर्चा हो रही है कि बदली परिस्थिति में पार्टी में अब बड़े-बुजुर्ग नेताओं की पूछ बढ़ेगी। पार्टी ने पटना में राबड़ी देवी के आवास पर पूरे दिन चली राज्यस्तरीय बैठक में विभिन्न ज्वलंत जन समस्याओं को लेकर आंदोलन करने की ठानी है। भविष्य के लिए पार्टी और कार्यकर्ताओं की आक्रामकता बनाए रखने की रणनीति पर चलने का निर्णय हुआ है।
वहीं उल्लेखनीय है कि चार वर्षों के बाद चारा घोटाला के देवघर कोषागार मामले में शनिवार को राजद अध्यक्ष लालू प्रसाद को साढ़े तीन वर्षों का कारावास और पांच लाख जुर्माना की सजा मिली है। जुर्माना नहीं देने पर अतिरिक्त छह माह जेल में रहना होगा। शनिवार के इस फैसले के कारण लालू को अब जमानत के लिए झारखंड हाईकोर्ट की शरण में जाना होगा, अगर सजा तीन साल की होती तो जमानत आसानी से मिल सकती थी।
बता दें कि लालू को चार साल पहले एक मामले में पांच वर्षों की जेल और 25 लाख रुपये जुर्माना की सजा होने के बाद लालू प्रसाद को लोकसभा की सदस्यता भी गंवानी पड़ी थी। तब लालू छपरा लोकसभा सीट से सदस्य थे। चुनाव लड़ने में भी वह वंचित हो गये थे। उस समय वे जमानत मिलने पर दो महीने बाद जेल से छूटे थे। चारा घोटाला से संबंधित सीबीआई की निचली अदालतों और चार मामले में फैसला आना है। ज्ञात हो कि रेलवे के दो होटल का ठेका देने के मामले में सीबीआई ने तत्कालीन रेल मंत्री लालू प्रसाद के खिलाफ पिछले वर्ष नया मुकदमा दर्ज किया था। इस मामले में भी उन्हें जमानत लेनी होगी। इसी मामले में आयकर और इडी की भी लालू परिवार के खिलाफ कार्रवाई चल रही है।