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लखनऊ की पौराणिक मान्यताओं के साथ छेड़छाड से आहत थे लालजी टंडन

रामजन्मभूमि मामले में मध्यस्थ की भूमिका में थे टंडन

लखनऊ । लालजी टंडन लखनऊ की पौराणिक मान्यताओं के साथ छेड़छाड़ किये जाने से काफी आहत थे। टंडन ने अपनी पुस्तक अनकहा लखनऊ में इसका जिक्र करते हुए लिखा है कि लखनऊ की संस्कृति के साथ छेड़छाड़ की गयी। उन्होंने लिखा था कि लखनऊ के पौराणिक महत्व को नकार कर शहर को नवाबी कल्चर में ढ़ालने का प्रयास किया गया। उस पुस्तक में यह भी जिक्र किया था कि आज जहां पर टीले वाली मस्जिद है वह लक्ष्मण टीला है। लक्ष्मण टीले में शेष गुफा थी। यहां पर मेला लगता था।

रामजन्मभूमि मामले में मध्यस्थ की भूमिका में थे टंडन
लालजी टंडन जब उत्तर प्रदेश सरकार में मंत्री थे तब सरकार की ओर से वह श्रीराम जन्मभूमि मसले पर मध्यस्थ की भूमिका का निर्वहन वह करते थे। उस समय प्रदेश सरकार की ओर से वह विश्व हिन्दू परिषद,संघ और केन्द्र सरकार को प्रदेश सरकार के पक्ष से निरन्तर अवगत कराते रहते थे। उन्होंने राम मंदिर मसले के निराकरण के लिए निरन्तर प्रयासरत रहे।

टंडन को भाऊराव देवरस और दीनदयाल उपाध्याय का मिला सानिध्य
राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आरएसएस) के वरिष्ठ प्रचारक रहे भाऊराव देवरस का लालजी टंडन के जीवन पर गहरा प्रभाव था। भाऊराव देवरस उत्तर प्रदेश में संघ कार्य के आधार थे। राजनीति में टंडन को आगे बढ़ाने का काम भाऊराव देवरस जी ने किया। भाऊराव देवरस के कहने पर ही लालजी टंडन ने 1970 के दशक में तरूण भारत समाचार पत्र का संपादन किया था। टंडन जी को भाऊराव देवरस,पंडित दीनदयाल उपाध्याय और भारत रत्न अटल बिहारी बाजपेई के सानिध्य में काम करने का अवसर मिला। अटल जी के साथ उनका करीब पांच दशक तक साथ रहा। यही वजह रही कि अटल की विरासत को लालजी टंडन ने ही संभाला और दो बार वह लखनऊ के सांसद रहे। इसके बाद बिहार और मध्य प्रदेश के राज्यपाल पद को भी लालजी टंडन ने सुशोभित किया।

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