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जन्माष्टमी विशेष: ईश्वर से प्रार्थना करते वक्त ध्यान रखें ये बात

जन्माष्टमी विशेष: ईश्वर से प्रार्थना करते वक्त ध्यान रखें ये बात

लखनऊः अक्सर हम लोग हवेली में या मंदिर में दर्शन करने जाते हैं। दर्शन करने के बाद बाहर आकर मंदिर की पैड़ी पर या ओटले पर थोड़ी देर बैठते हैं। इस परंपरा का कारण क्या है? दरअसल, अभी तो लोग वहां बैठकर अपने घर की, व्यापार की, राजनीति की चर्चा करते हैं। परंतु यह परंपरा एक विशेष उद्देश्य के लिए बनाई गई है।

वास्तव में वहां मंदिर की पैड़ी पर बैठ कर एक श्लोक बोलना चाहिए। यह श्लोक हम भूल गए हैं। इस श्लोक को सुने और याद करें आने वाली पीढ़ी को भी इसे बता कर जाएं।

श्लोक इस प्रकार है

अनायासेन मरणम, बिना दैन्येन  जीवनम।

देहान्ते  तव सानिध्यम, देहिमे  परमेश्वरम।।

जब हम मंदिर में दर्शन करने जाएं तो खुली आंखों से ठाकुर जी का दर्शन करें। कुछ लोग वहां नेत्र बंद करके खड़े रहते हैं। आंखें बंद क्यों करना। हम तो दर्शन करने आए हैं। ठाकुर जी के स्वरूप का, श्री चरणों, का मुखारविंद का, श्रंगार का संपूर्ण आनंद लें। आंखों में भर लें इस स्वरूप को। दर्शन करें और दर्शन करने के बाद जब बाहर आकर बैठें तब नेत्र बंद करके, जो दर्शन किए हैं, उस स्वरूप का ध्यान करें। मंदिर में नैत्र नहीं बंद करना, बाहर आने के बाद पैड़ी पर बैठकर जब ठाकुर जी का ध्यान करें तब नेत्र बंद करें, और अगर ठाकुर जी का स्वरूप ध्यान में नहीं आए तो दोबारा मंदिर में जाएं।

यह प्रार्थना है याचना नहीं है। याचना सांसारिक पदार्थों के लिए होती है, घर, व्यापार, नौकरी, पुत्र पुत्री, दुकान, सांसारिक सुख या अन्य बातों के लिए जो मांग की जाती है, वह याचना है। वह भीख है।

हम प्रार्थना करते हैं। प्रार्थना का विशेष अर्थ है।

प्र अर्थात विशिष्ट, श्रेष्ठ, प्रार्थना अर्थात निवेदन। ठाकुर जी से प्रार्थना करें, और प्रार्थना क्या करना है, यह श्लोक बोलना है..

श्लोक का अर्थ

”अनायासेना मरण” अर्थात बिना तकलीफ के हमारी मृत्यु हो, बीमार होकर बिस्तर पर पड़े पड़े, कष्ट उठाकर मृत्यु नहीं चाहिए। चलते चलते ही श्री जी शरण हो जाएं।

”बिना दैन्येन जीवनम” अर्थात परवशता का जीवन न हो। किसी के सहारे न रहना पड़े, जैसे लकवा हो जाता है, और व्यक्ति पर आश्रित हो जाता है। वैसे परवश, बेबस न हों। ठाकुर जी की कृपा से बिना भीख मांगे जीवन बसर हो सके।

”देहान्ते तव सानिध्यम” अर्थात जब मृत्यु हो तब ठाकुर जी सन्मुख खड़े हो। जब प्राण तन से निकले, आप सामने खड़े हों। जैसे भीष्म पितामह की मृत्यु के समय स्वयं ठाकुर जी उनके सम्मुख जाकर खड़े हो गए। उनके दर्शन करते हुए प्राण निकले।

यह प्रार्थना करें.. गाड़ी, लाड़ी, लड़का, लड़की पति, पत्नी, घर, धन यह मांगना नहीं। यह तो ठाकुर जी आपकी पात्रता के हिसाब से खुद आपको दे देते हैं। तो दर्शन करने के बाद बाहर बैठकर यह प्रार्थना अवश्य पढ़ें।

जय श्री कृष्ण…

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