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जानिए क्यों हो रहा है आर्टिकल 35A विरोध, क्या अधिकार देता है आर्टिकल 35A ?

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नई दिल्ली: जम्मू-कश्मीर को विशेष दर्जा देने वाले अनुच्छेद 35ए को समाप्त करने के प्रस्ताव के खिलाफ जहां एक तरफ अलगाववादियों की आहूत हड़ताल को लेकर श्रीनगर के भीतरी इलाकों में कर्फ्यू जैसे प्रतिबंध लगाए गए हैं। वहीं सुप्रीम कोर्ट ने इस मामले पर आज सुनवाई टाल दी है।

क्या अधिकार देता है आर्टिकल 35A ?
क्या अधिकार देता है आर्टिकल 35A ?

अलगाववादियों ने बुलाया कश्मीर बंद

वहीं अब इस मामले में अगली सुनवाई 27 अगस्त को होगी। सैयद अली शाह गिलानी, मिरवाइज मौलवी उमर फारूक और मोहम्मद यासीन मलिक के नेतृत्व में संयुक्त प्रतिरोध नेतृत्व (जेआरएल) ने रविवार और सोमवार को दो दिवसीय बंद का आह्वान किया है।

अनुच्छेद 35ए के खिलाफ कई याचिकाएं

जम्मू कश्मीर की विधानसभा को राज्य के ‘स्थायी निवासी’ को तय करने का अधिकार देने वाले अनुच्छेद 35ए को चुनौती देते हुए कई रिट याचिकाएं दाखिल गई थीं। यह अनुच्छेद राज्य के स्थायी निवासियों को विशेष अधिकार और सुविधाएं देता है।

क्या है आर्टिकल 35A

अनुच्छेद 35A को 1954 में राष्ट्रपति के आदेश से संविधान में जोड़ा गया था।

यह कानून जम्मू-कश्मीर के बाहर के किसी व्यक्ति को राज्य में संपत्ति खरीदने से रोकता है।

जम्मू-कश्मीर के अंदर भारत के राष्ट्रध्वज या राष्ट्रीय प्रतीकों का अपमान अपराध नहीं होता है।

जम्मू-कश्मीर का राष्ट्रध्वज अलग होता है।

राज्य की विधानसभा का कार्यकाल 6 वर्षों का होता है जबकी भारत के अन्य राज्यों की विधानसभाओं का कार्यकाल 5 वर्ष का होता है।

क्यों हो रहा है विरोध

अनुच्छेद 35ए को लेकर राज्य में लंबे समय से विरोध है। इस अनुच्छेद के जरिये वहां की सरकार और लोगों को विशेष अधिकार प्राप्त है कि वहां का स्थायी निवासी कैसे तय होगा। वहीं जम्मू-कश्मीर में कोई बाहरी व्यक्ति राज्य सरकार की योजनाओं का फायदा भी नहीं उठा सकता है और न ही वहां सरकारी नौकरी पा सकता है।

यह अधिकार भी देता है 35 ए

इतना ही नहीं अगर प्रदेश की कोई लड़की किसी अन्य राज्य के नागरिक से शादी कर लेती है तो उसे राज्य में संपत्ति के अधिकार से वंचित किया जाता है। हालांकि अगर कोई पाकिस्तानी कश्मीरी युवती से शादी कर ले तो उसे भारत की नागरिकता मिल जाती है। वहीं अनुच्छेद 35ए को लेकर कई याचिकाएं दायर की गई हैं जिसमें कहा गया है कि अनुच्छेद 35ए को ‘असंवैधानकि’ करार दिया जाना चाहिए क्योंकि राष्ट्रपति अपने 1954 के आदेश से ‘संविधान में संशोधन’ नहीं करा सके थे। जबकि जम्मू-कश्मीर सरकार इसका शुरू से ही विरोध करती आई है। इसी को लेकर एक बार फिर से विवाद खड़ा हो गया है।

ANKIT TRIPATHI

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