नई दिल्ली। अगर हिंदू रिति रिवाज और सभ्यता की बात करें तो जब भी कोई पूजा पाठ या शुभ संस्कार होते हैं तो शंख जरुर बजाया जाता है।जब शंख बजाया जाता है उस वक्त हर कोई हाथ जोड़कर खड़े हो जाते हैं और भगवान को याद करते हैं।क्या आपके मन में कभी ये सवाल नहीं आया कि शंख आखिर बजाते क्यों हैं।
समुद्र मंथन के दौरान 14 रत्नों में से एक दिव्य शंख की प्राप्ति हुई थी इसलिए उसकी ध्वनि शुभदायी मानी जाती है।ऐसा कहा जाता है कि शंख, चंद्रमा और सूर्य के समान पूज्य है, क्योंकि इसके मध्य में वरुण, पृष्ठ भाग में ब्रह्मा और अग्र भाग में देवी गंगा और वाग्देवी सरस्वती का प्रतिष्ठित हैं।
शंख बजाने से ऊँ की मूलध्वनि का उच्चारण होता है।भगवान ने सृष्टि की रचना के बाद सबसे पहले ऊँ शब्द का ही ब्रह्मानाद किया था इसलिए हर शुभ अवसर और नवीन कार्य पर शंख बजाया जाता है।भगवान श्रीकृष्ण ने महाभारत युद्ध से पहले पाञ्चजन्य शंख बजाया था जो एक महान परिवर्तन के लिए था इसलिए शंख को बुराई पर अच्छाई की विजय का प्रतीक भी माना जाता है।
शंख बजाने का एक वैज्ञानिक कारण यह बताया जाता है कि शंख की ऊर्जामयी ध्वनि से जो तरंग निकलती है, वह नकारात्मक उर्जा का हनन कर देती है। ऐतिहासिक और सांस्कृतिक विकास से जुड़ा एक कारण यह भी दिया जाता है कि पहले लोग गांवों में रहते थे, जहां एक मन्दिर होता था। जब पूजा और आरती होती थी तो समय शंख की ध्वनि पूरे गांव में सुनाई दे जाती थी और लोगों को पूजा व आरती के बारे में पता चल जाता था और यह संदेश मिल जाता था कि वे कुछ समय के लिए अपना काम छोड़ कर प्रभु को याद कर लें।