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जानें कौन था 4 हजार करोड़ का घोटाला करने वाला हर्षद मेहता, जिनके जीवन पर बनी ‘स्कैम 1992’ वेब सीरीज़

हर्षद मेहता

वेब सीरीज़ ‘स्कैम 1992: द हर्षद मेहता सोनी लिव पर 9 अक्टूबर को रिलीज हुई हैं। इस वेब सीरिज का इंतजार काफी समय से किया जा रहा था। क्योकि यह वेब सीरीज़ शेयर मार्केट के किंग और एक बहुत फ्रॉड करने वाले हर्षद मेहता की असल जिंदगी पर आधारित हैं।

हर्षद मेहता का नाम लेने से डरते थे पत्रकार

यह कहानी 1980 और 90 के मुंबई की हैं। शुरुआत होती है 1992 में बॉम्बे के सेटअप से जहां एक पत्रकार ये बताने की कोशिश करता है कि बैंक से 4 हजार करोड़ का घोटाला हुआ हैं। हर्षद मेहता का नाम उन दिनों बड़ी हस्तियों में रहा। हर्षद मेहता एक ऐसा नाम था जिसे लेने से पत्रकार भी डरते थे। स्कैम 1992 एक स्टॉक ब्रोकर हर्षद मेहता की जिंदगी पर आधारित हैं, हर्षद मेहता एक ऐसा स्टॉक ब्रोकर था जिसमे अकेले अपने दम पर स्टॉक मार्केट को ऊंचाई दी और फिर बाहर बड़ी गिरावट भी।

गुजराती परिवार में लिया जन्म

हर्षद मेहता ने 1954 में गुजराती परिवार में जन्म लिया था और उन्होंने अपना ज्यादातर समय छत्तीसगढ़ के रायपुर में बिताया। रायपुर से स्कूल की पढ़ाई करने के बाद वो वापस मुंबई लौट आया और लाजपत राय कॉलेज से बीकॉम की पढ़ाई की। इसके बाद वो हॉजरी बेचने से लेकर डायमंड चुनने का काम करने लगा।

एश्योरेंस कंपनी में जॉब्स के साथ की स्टॉक मार्केट में एंट्री

स्टॉक मार्केट में हर्षद मेहता की एंट्री तब हुई जब उसने द न्यू इंडिया एश्योरेंस कंपनी में नौकरी करना शुरू किया। यहीं से हर्षद मेहता की स्टॉक मार्केट में दिलचस्पी बढ़ी और नौकरी छोड़कर उसने 1981 में ब्रोकरेज फर्म ज्वाइन की।

हर्षद मेहता ने 1984 में बनायीं अपनी कंपनी

हर्षद मेहता ने 1984 में ग्रो मोर रीसर्स एंड असेट मैनेजमेंट नाम की कंपनी की बनाई और बॉम्बे स्टॉक एक्सचेंज में बतौर ब्रोकर मेंबरशिप ली। 1990 तक, हर्षद मेहता इंडियन स्टॉक मार्केट का बड़ा नाम बन चुका था। कहा जाता था कि हर्षद मेहता जिस चीज को छू देता था, वो सोना बन जाता था। उसे ‘स्टॉक मार्केट का अमिताभ बच्चन’ और ‘बिग बुल’ भी कहा जाता था।

बैंकिंग सिस्टम की कमी का उठाया फायदा

बैंकिंग व्यवस्था की कमियों के चलते हर्षद मेहता ने इसका फायदा उठाया और बैंकिंग लेनदेन में गोलमाल किया। हर्षद मेहता रेडी फॉरवर्ड (आरएफ) डील के जरिए बैंकों से फंड उठाते थे। आरएफ डील का मतलब शॉर्ट टर्म लोन से होता हैं। बैंकों को जब शॉर्ट टर्म फंड की जरूरत पड़ती हैं तो वे इस तरह का लोन लेते है। इस तरह का लोन कम से कम 15 दिनों के लिए होता हैं।

बैंक के लेन-देन का लेता था सहारा

इस प्रक्रिया में एक बैंक सरकारी बॉन्ड गिरवी रखकर दूसरे बैंकों को उधार देता है। उधार वापस करने के बाद बैंक अपना बॉन्ड दोबारा खरीद सकते है। इस तरह के लेनदेन में बैंक असल में सरकारी बॉन्ड का लेनदेन नहीं करते हैं। बल्कि बैंक रसीद जारी करते थे। इसमें होता ये है कि जिस बैंक को कैश की जरूरत होती है वह बैंक रसीद जारी करता था। यह हुंडी की तरह होता था। इसके बदले में बैंक लोन देते है। दो बैंकों के बीच के इस लेनदेन को बिचौलियों के जरिए किया जाता।

पहचान का फायदा उठाकर किया हेरफेर

हर्षद मेहता को इस तरह के लेनदेन की बारीकियों की जानकारी थी। इसी के जरिये हर्षद मेहता ने अपनी पहचान का फायदा उठाते हुए हेरफेर करके पैसे लिए। और इसी पैसे को बाजार में लगाकर जबरदस्त मुनाफा कमाया।

हर्षद मेहता ने हेरफेर करके कमाया प्रॉफिट

उस दौरान शेयर बाजार भी हर दिन चढ़ रहा था। कुछ जानकारों का यह भी कहना है कि तब आंख बंद करके किसी भी शेयर में पैसा लगाने का मतलब प्रॉफिट ही होता था। शेयर बाजार की इस तेजी का फायदा उठाने के लिए ही हर्षद मेहता ने हेरफेर किया।

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स्टॉक्स में कहां से लगाते था पैसा?

हर्षद मेहता ज्यादा से ज्यादा मुनाफा कमाना चाहते थे। इसके लिए उन्होंने जाली बैंकिंग रसीद जारी करवाई। इसके लिए उन्होंने दो छोटे-छोटे बैंकों का सहारा लेकर उन्हें अपना शिकार बनाया। बैंक ऑफ कराड और मेट्रोपॉलिटन को-ऑपरेटिव बैंक में उनकी अच्छी जान पहचान थी। जिसका फायदा उठाकर हर्षद मेहता बैंक रसीद जारी करवाते थे। इन्हीं रसीद के बदले वह पैसा उठाते थे और उस पैसे को शेयर बाजार में लगाते थे। इससे वह प्रॉफिट कमाकर बैंकों को15 दिन में उनका पैसा लौटा देते थे। जब तक शेयर बाजार चढ़ता रहा, तब तक किसी को इसकी भनक नहीं पड़ी। लेकिन बाजार में गिरावट के बाद जब वह बैंकों का पैसा 15 दिन के भीतर नहीं लौटा पाए, तब उनकी पोल खुल गई। हर्षद मेहता के इस प्लान का खुलासा होने के बाद ही शेयर बाजार के लिए रेगुलेटर की कमी महसूस हुई। इसी के बाद मार्केट रेगुलेटर सेबी का गठन हुआ था।

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