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जानें पहली महिला जज के बारे में, मुख्य न्यायाधीश बनने की दावेदार

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मंगलवार की सुबह 10.30 बजे सुप्रीम कोर्ट में आयोजित एक सामान्य समारोह में देश के मुख्य न्यायाधीश एनवी रमन्ना ने 9 न्यायाधीशों को पद और गोपनीयता की शपथ दिलाई। देश के इतिहास में यह पहली दफा है, जब सर्वोच्च न्यायालय में एक साथ 9 जजों ने शपथ ग्रहण की। शपथ लेने वाले 9 जजों में जस्टिस अभय श्रीनिवास ओक, जस्टिस विक्रम नाथ, जस्टिस जितेंद्र कुमार माहेश्वरी, जस्टिस हिमा कोहली, जस्टिस बी.वी. नागरत्न, जस्टिस चुडालायिल थेवन रविकुमार, जस्टिस एमएम सुंदरेश, जस्टिस बीएम त्रिवेदी और जस्टिस पीएस नरसिम्हा सम्मिलित हैं। सर्वोच्च न्यायालय के कॉलेजियम ने 17 अगस्त, 2021 को इन न्यायाधीशों की नियुक्ति की सिफ़ारिश की थी। उसके बाद, 6 अगस्त, 2021 को राष्ट्रपति ने इन नामों पर अपनी मुहर लगाई थी।

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पहली बार तीन महिला जजों ने ली शपथ

इन 9 जजों में जस्टिस हिमा कोहली, जस्टिस बीवी नागरत्न और जस्टिस बीएम त्रिवेदी, ये तीन महिला जज हैं। जस्टिस कोहली जहाँ तेलंगाना उच्च न्यायालय की चीफ़ जस्टिस थीं। वहीं जस्टिस नागरत्न कर्नाटक उच्च न्यायालय, तो जस्टिस त्रिवेदी गुजरात उच्च न्यायालय की जस्टिस रहीं हैं।

कौन हैं जस्टिस बी वी नागरत्न?

जस्टिस बी वी नागरत्न देश के पूर्व चीफ़ जस्टिस ईएस वेंकटरमैया की बेटी हैं। सब कुछ ठीक रहने पर इनके 2027 में उच्च न्यायालय की पहली महिला चीफ़ जस्टिस बनने की संभावना है। अगर ऐसा हुआ तो देश के इतिहास में मुख्य न्यायाधीश बनने वाली पिता-पुत्री की यह पहली जोड़ी होगी। जस्टिस नागरत्न की बेंगलुरु में 10वीं तक की पढ़ाई हुई थी। उसके बाद आगे की पूरी पढ़ाई इन्होंने ​नई दिल्ली से की। भारतीय विद्याभवन के मेहता विद्यालय से 12वीं करने के बाद इन्होंने स्नातक के लिए दिल्ली विश्वविद्यालय के जीसस एंड मेरी कॉलेज (इतिहास ऑनर्स) में दाख़िला लिया। इन्होंने दिल्ली विश्वविद्यालय से ही क़ानून में स्नातक किया है। जस्टिस नागरत्न का विवाह बीएन गोपाल कृष्ण से हुई और इनकी दो ​बेटियाँ हैं।

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वकील के तौर पर

इनका करियर 1987 में एक लॉ फ़र्म से प्रारंभ हुआ था। उस फ़र्म से वो 21 वर्ष तक तब तक जुड़ी रहीं, जब तक कि वो उच्च न्यायालय में न्यायाधीश नहीं बन गईं। उस फ़र्म में कभी उनके पिता जस्टिस ईएस वेंकटरमैया भी कभी कार्य कर चुके थे। उनके अलावा, उस लॉ फ़र्म के एक और वकील देश के चीफ़ जस्टिस बनने में सफल हुए थे और वो जस्टिस राजेंद्र बाबू थे।

वकील के रूप में उनका कार्य काफ़ी विविध क्षेत्रों से जुड़ा रहा है। उन्होंने भूमि अधिग्रहण, सेवा, पारिवारिक, प्रशासनिक, संवैधानिक और व्यावसायिक मामलों के लिए सर्वोच्च न्यायालय, कई उच्च न्यायालय और ट्रायल कोर्ट में भी बहस की है। जस्टिस नागरत्न कर्नाटक राज्य क़ानूनी सेवा प्राधिकरण (KSLSA) का भी प्रतिनिधित्व कर चुकी हैं। वे बहुत सारे मामलों जैसे बेंगलुरु शहर में झीलों के कायाकल्प करने वाले मुकदमे में ‘एमिकस क्यूरी’ भी रह चुकी हैं।

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जज का करियर

वो फरवरी 2008 में कर्नाटक उच्च न्यायालय में एडिशनल जज बनाई गई थीं।उसके बाद, फरवरी 2010 में वो स्थायी जज के तौर पर बहाल की गईं। अब लगभग 11 वर्ष बाद इन्हें सर्वोच्च न्यायालय का न्यायाधीश बनाया गया है। बतौर उच्च न्यायालय, जज जस्टिस नागरत्न कई संस्थाओं की प्रमुख थीं। वो कर्नाटक न्यायिक अकादमी, वाणिज्यिक न्यायालयों की देखरेख करने वाली समिति, किशोर न्याय समिति और पोक्सो क़ानून के कार्यान्वयन की देखरेख करने वाली समिति की अध्यक्ष थीं। इसके अलावा, वो सिटी सिविल न्यायालय बेंगलुरु की प्रशासनिक न्यायाधीश भी थीं। न्यायिक अकादमी के अध्यक्ष के तौर पर इन्होंने ट्रायल जजों के लिए जेंडर और क़ानून, बाल और क़ानून, और पर्यावरण क़ानून पर पहली बार न्यायिक अकादमी प्रशिक्षण मॉड्यूल की आरंभ करवाई।

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