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जाने राम नवमी को क्या करें और क्या नहीं, नौ दिन तक क्यों मनाया जाता है पर्व

राम नवमी जाने राम नवमी को क्या करें और क्या नहीं, नौ दिन तक क्यों मनाया जाता है पर्व

नई दिल्ली। श्री विष्णु के सातवें अवतार श्रीराम के जन्म प्रीत्यर्थ श्री रामनवमी मनाते हैं । चैत्र शुक्ल नवमी को रामनवमी कहते हैं। अनेक राममंदिरों में चैत्र शुक्ल प्रतिपदा से लेकर नौ दिन तक यह उत्सव मनाया जाता है । रामायण के पारायण, कथाकीर्तन तथा राममूर्ति को विविध शृंगार कर, यह उत्सव मनाया जाता है । इस दिन प्रभु श्रीराम का व्रत करने से सर्व व्रतों का फल प्राप्त होता है तथा सर्व पापों का क्षालन होकर अंत में उत्तम लोक की प्राप्ति होती है ।नवमी की दोपहर को रामजन्म का कीर्तन होता है । मध्यान्हकाल में, कुंची (छोटे बच्चे के सिर पर बांधा जाने वाला एक वस्त्र ।

वहीं यह वस्त्र पीठतक होता है ।) धारण किया हुआ एक नारियल पालने में रखकर उस पालने को हिलाते हैं व भक्तगण उसपर गुलाल तथा फूलों का वर्षाव करते हैं । कुछ स्थानों पर पालने में नारियल की अपेक्षा श्रीराम की मूर्ति रखी जाती है । इस प्रसंग पर श्री रामजन्म के गीत गाए जाते हैं । उसके उपरांत प्रभु श्रीराम के मूर्ति की पूजा करते हैं व प्रसाद के रूप में सोंठ देते हैं । कुछ स्थानों पर महाप्रसाद भी देते हैं । इस दिन प्रभु श्रीराम का व्रत करने से सर्व व्रतों का फल प्राप्त होता है तथा सर्व पापों का क्षालन होकर अंत में उत्तम लोक की प्राप्ति होती है।

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श्रीरामनवमी का आध्यात्मिक महत्त्व

किसी भी देवता एवं अवतारों की जयंती पर उनका तत्त्व पृथ्वी पर अधिक मात्रा में कार्यरत होता है । श्रीरामनवमी को श्रीरामतत्त्व अन्य दिनों की अपेक्षा १००० गुना अधिक कार्यरत होता है। श्रीराम नवमी पर ‘श्रीराम जय राम जय जय राम ।’ नामजप एवं श्रीराम की भावपूर्ण उपासना से श्रीरामतत्त्व का अधिकाधिक लाभ होता है ।

श्रीराम का पूजन कैसे करें ?

प्रभु श्रीराम की प्रतिमा को अनामिका से (छोटी उंगलीके पासवाली उंगलीसे) गंध (चंदन) लगाएं । चार अथवा चार की मात्रा में चंपा, चमेली अथवा जाही के फूल चढाएं । चमेली, जाही व अंबर में से किसी एक गंध की अगरबत्ती से आरती उतारें । श्रीराम को तीन अथवा तीन की संख्या में परिक्रमा लगाएं ।

श्रीराम की कालानुसार आवश्यक उपासना करें !

नाटक, प्रवचन, पुस्तक आदि के माध्यम से हो रहा देवताओं का अनादर, धर्मश्रद्धा पर आघात अर्थात धर्महानि है । धर्महानि रोकना समष्टि स्तर की उपासना है ।

धर्म की सर्व मर्यादाओं का पालन करनेवाले ‘मर्यादापुरुषोत्तम’, आदर्श पुत्र, आदर्श बंधु, आदर्श पति, आदर्श मित्र, आदर्श राजा, आदर्श शत्रु, सभी प्रकार से आदर्श कौन हैं ?, ऐसा प्रश्न करते ही आंखों के सामने जो छवि उभरती है, वह है प्रभु ‘श्रीराम’की !

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श्रीरामरक्षास्तोत्रका पाठ

जिस स्तोत्रका पाठ करने वालों का श्रीरामद्वारा रक्षण होता है, वह स्तोत्र है श्रीरामरक्षास्तोत्र । भगवान शंकरने बुधकौशिक ऋषिको स्वप्न में दर्शन देकर, उन्हें रामरक्षा सुनाई और प्रातःकाल उठने पर उन्होंने वह लिख ली । यह स्तोत्र संस्कृत भाषा में है । इस स्तोत्र के नित्य पाठसे घर की सर्व पीडा व भूतबाधा भी दूर होती है । जो इस स्तोत्रका पाठ करेगा वह दीर्घायु, सुखी, संततिवान, विजयी तथा विनयसंपन्न होगा’, ऐसी फलश्रुति इस स्तोत्र में बताई गई है ।

इसके अतिरिक्त इस स्तोत्र में श्री रामचंद्र का यथार्थ वर्णन, रामायण की रूपरेखा, रामवंदन, रामभक्त स्तुति, पूर्वजों को वंदन व उनकी स्तुति, रामनाम की महिमा इत्यादि विषय समाविष्ट हैं ।

आध्यात्मिक महत्त्व

किसी भी देवता व अवतारों की जयंती पर उनका तत्त्व पृथ्वी पर अधिक मात्रा में कार्यरत होता है । श्रीरामनवमी को श्रीरामतत्त्व अन्य दिनों की अपेक्षा १००० गुना कार्यरत होता है । श्रीराम नवमी पर ‘श्रीराम जय राम जय जय राम ।’ नामजप व श्रीराम की भावपूर्ण उपासना से श्रीरामतत्त्व का अधिकाधिक लाभ होता है ।

रामायण

‘समस्य अयनं रामायणम् ।’ अयन का अर्थ है जाना, गति, मार्ग इत्यादि । जो परब्रह्म परमात्मारूप श्रीराम की ओर ले जाती है, उसतक पहुंचने के लिए जो प्रोत्साहित करती है अर्थात् गति देती है, जीवन का सच्चा मार्ग दर्शाती है, वही ‘रामायण’ है ।

भावार्थ : श्रावण कुमार के दादा धौम्य ऋषि थे व उसके माता-पिता रत्नावली व रत्नऋषि थे । रत्नऋषि नंदिग्राम के राजा अश्‍वपति के राजपुरोहित थे। अश्‍वपति राजा की कन्याका नाम कैकेयी था। रत्नऋषि ने कैकेयी को सभी शास्त्र सिखाए और यह बताया कि यदि दशरथ की संतान हुई, तो वह संतान राजगद्दी पर नहीं बैठ पाएगी अथवा दशरथ की मृत्यु के पश्‍चात् यदि चौदह वर्ष के दौरान राजसिंहासन पर कोई संतान बैठ भी गई, तो रघुवंश नष्ट हो जाएगा। ऐसी होनी को टालने हेतु, आगे चलकर वसिष्ठ ऋषि ने कैकेयी को दशरथ से दो वर मांगने के लिए कहा। 

उनमें से एक वर से उन्होंने राम को चौदह वर्ष तक ही वनवास भेजा व दूसरे वर से भरत को राज्य देने के लिए कहा । उन्हें ज्ञात था कि राम के रहते भरत राजा बनना स्वीकार नहीं करेंगे यानी राजसिंहासन पर नहीं बैठेंगे । वसिष्ठ ऋषि के कहने पर ही भरत ने सिंहासन पर राम की प्रतिमा की अपेक्षा उनकी चरणपादु का स्थापित की। यदि प्रतिमा स्थापित की होती, तो शब्द, स्पर्श, रूप, रस व गंध एकत्रित होने के नियम से जो परिणाम राम के सिंहासन पर बैठने से होता, वही उनकी प्रतिमा स्थापित करने से भी होता ।

रामराज्य

ऐसा नहीं कि, केवल श्रीराम ही सात्त्विक थे, अपितु प्रजा भी सात्त्विक थी; इसीलिए रामराज्य में श्रीराम के दरबार में एक भी शिकायत नहीं आई । पंचज्ञानेंद्रिय, पंचकर्मेंद्रिय, मन, चित्त, बुद्धि व अहंकारपर रामका (आत्मारामका) राज्य होना ही खरा रामराज्य है ।

प्रभु श्रीराम का नाम लेते ही स्मरण होता है परमभक्त हनुमान जी का ।

‘हनुमान जी आत्मविश्वास से कहते हैं –

न मे समा रावणकोट्योऽधमाः । रामस्य दासोऽहम् अपारविक्रमः ।।

करोड़ों रावण भी पराक्रम में मेरी बराबरी नहीं कर सकते । वह इसलिए नहीं कि मैं बजरंगबली हूं, अपितु इसलिए कि प्रभु श्रीराम मेरे स्वामी हैं। मुझे उनसे अपरंपार शक्ति प्राप्त होती है ।’

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