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जानिए रोशनी के त्योहार दीपावली पर देश में कौन-कौन सी प्रथाओं का है प्रचलन

diwali 6 1 जानिए रोशनी के त्योहार दीपावली पर देश में कौन-कौन सी प्रथाओं का है प्रचलन

diwali 6 1 जानिए रोशनी के त्योहार दीपावली पर देश में कौन-कौन सी प्रथाओं का है प्रचलन

नई दिल्ली।  दीपावली हिंदुओं का सबसे बड़ा त्योहार है। ये त्योहार कार्तिक मास की अमावस्या को मनाया जाता है। अमावस्या के दिन पड़ने से इस त्योहार पर दिओं को जलाया जाता है,जिनकी रोशनी से अंधेरे में डूबी आमावस्या की रात रोशनी से भर जाती है। दीपावली पांच दिन का त्योहार होता है। इसलिए इस दिन अलग-अलग परम्पराओं का पालन किया जाता है। दीपावली पर भारत के अलग-अलग हिस्सों में अलग-अलग परम्पराये निभाई जाती हैं। आईये जानते हैं दीपावली पर निभाई जाने वाली इन परम्पराओं के बारे में ।

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बही खातों को बदलने की परम्परा

दीपावली के दिन बनियों और साहुकारों के यहां एक प्रथा का प्रचलन है। दिवाली से दो दिन पहले ये लोग अपने महाजन के यहां रखें अपने हिसाब किताब या फिर बहिखातों को बदलने की परम्परा का पालन करते है। ऐसा नहीं है कि इस परम्परा को सिर्फ वैश्य समाज के लोग ही अपनाते हैं, बल्कि व्यापार से जुड़ा हर परिवार धनतेरस पर अपने बहीखातों को बदलता है। बहिखातों को बदलने को लेकर माना जाता है कि इससे व्यवसाय की नई शुरुआत होती है और माता लक्ष्मी प्रसन्न हो जाती है,जिससे घर में धन की वर्षा होती है। यहीं वजह है कि धनतेरस से एक दिन पहले बहिखाते खरीदने के लिए बनिया समाज की मार्केट में भीड़ लग जाती है। वैसे तो आज के जमाने मे हिसाब किताब को संजोने के लिए कम्पयूटर का इस्तेमाल होने लगा है,लेकिन वैश्य समाज के लोग आज भी अपने हिसाब के लिए बहिखाते बनाते हैं और हर साल धनतरेस के दिन उसे बदलते है।

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दीपावली पर अनाज और बर्तनो की पूजा

ऐसी मान्यता है कि धनतेरस के दिन धातु की कोई वस्तु खरीदनी चाहिए, क्योंकि वो धातु एक शुभ संकेत होता है। बताया जाता है कि जब समुद्र मंथन के दौरान मां लक्ष्मी का जन्म हुआ तो उनके हाथ में अमृत का कलश था, इसिलए इस दिन बर्तनों को खरीदना शुभ माना जाता है। धनतेरस के दिन कई लोग बर्तनों को खरीदकर उनकी पूजा करते हैं, ताकि जब वे बर्तन को घर में इस्तेमाल करें तो घर में सुख-समृद्धी का वास रहे। बर्तनों के अलावा धनतेरस पर चांदी खरीदना भी शुभ माना जाता है, लेकिन बर्तनों की पूजा करना एक परम्परा बन गई है। देश के कई हिस्सों में धनतेरस के दिन बर्तनों की पूजा करना शुभ माना जाता है।

दीपावली पर धान की खेती को काटा जाता है। इसिलए इस दिन धान का बहुत महत्व है। धान के रुप में जहां शहरों में पूजा के दौरान खील का उपयोग किया जाता है तो वहीं देश के गांवों में धान की कटाई होती है और रात के समय धान को मां लक्ष्मी को अर्पित किया जाता है जिसके बाद उसकी पूजा की जाती है। दिवाली के दिन सात तरह के अनाज मां लक्ष्मी को अर्पित करने की परंपरा है जिसमें गेहूं, चावल, मुंग, चना, जौ, उडद, मसूर शामिल हैं। इन सात अनाजों के साथ पूजा करने से मां लक्ष्मी की कृपा सदेव बनी रही है।

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घरौंदा और रंगौली बनाने की परम्परा

भारत देश में हर त्योहर का एक अपना ही महत्व है, लेकिन दीपावली का त्योहार भारतीय समाज में एक अलग ही महत्व होता है। इस दिन कई तरह की रश्मे निभाई जाती है, उन्ही में से एक है रंगौली और घरौंदा बनाने की परम्परा। दिवाली के दिन घर के आंगन में घरौंदा और रंगौली बनाने की परम्परा सदियों से चली आ रही है। कार्तिक मास के आगमन के साथ ही लोग घरों में साफ-सफाई शुरू कर देते है,जिसके बाद घर में घरौंदा बनाने की परम्परा शुरू हो जाती है।

घरौंदा घर शब्द से बना है, सामान्य तौर पर दीपावली के आगमन पर अविवाहित लड़कियां घरौंदें का निर्माण करती है। घरौंदा का निर्माण इसलिए किया जाता है ताकि उनका घर भरा-पूरा रहे।  सामान्य तौर पर घरौंदा बनाने का प्रचलन दीपावली के दिन होता है।  पौराणिक मान्यताओं के अनुसार जब भगवान श्रीराम चौदह वर्ष का वनवास काटकर अपनी नगरी अयोध्या लौटे थे तो उनके आने की खुशी में उनके महल को दीपों से सजाया गया था, इसी को देखते हुए घरौंदा बनाकर उसे सजाने का प्रचलन हुआ।

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दीपावली पर मुर्गो की लड़ाई

दीपावली पर हर राज्य और जाति में अपनी अलग-अलग परम्पराओं को निभाने का प्रचलन  हैं। लेकिन क्या आपको पता है कि छत्तीसगढ़ में दीपावाली के दिन क्या होता है। छत्तीसगढ़ के कोष्टा-कोष्टी समाज में दिवाली के दिन मुर्गों की लड़ाई की परम्परा है। दीपावली की सुबह जब-तक ये समाज मुर्गों की लड़ाई नहीं करवाता तब-तक इनकी दीपावली की शुरुआत ही नहीं होती है। इस परम्परा को लेकर यहां के लोगों का मानना है कि इस लड़ाई से समाज में समानता बनी रहती है। कोष्टा समाज के मुताबिक दीपावाली पर मुर्गों को लड़ाने की परम्परा लगभग 200 साल पुरानी है। बताया जाता है कि उस समय समाज में मध्यमवर्गीय परिवारों के लोग ही हुआ करते थे और सबसे घर मे मुर्गी और मुर्गे को पाला जाता था। इसी को देखते हुए उस समय के बुजुर्गो ने ये परम्परा बनाई की क्यों न दीपावली पर मुर्गों को लड़ाने की प्रतियोंगिता रखी जाए। ताकी त्योहार का मजा दोगुना हो सके, उस समय के बुजुर्गो के इस फैसले के बाद कोष्टी-कोष्टा समाज में दीपावली की सुबह मुर्गों की लड़ाई करवाने की  परम्परा शुरू हो गई।

 

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