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पापों का नाश कर मोक्ष देगी जया एकादशी

lord krishna पापों का नाश कर मोक्ष देगी जया एकादशी

नई दिल्ली। सभी की मनोकामना पूरी करने वाले और ब्रह्महत्या नाशक जया एकादशी अपने में काफी विशेष है। हर महीने में 2 बार एकादशी आती है एक एकादशी कृष्ण पक्ष की और दूसरी शुक्ल पक्ष की। हालांकि दोनों ही एकादशी का महत्व होता है।

lord krishna पापों का नाश कर मोक्ष देगी जया एकादशी

माघ मास के शुक्लपक्ष की एकादशी को जया एकादशी कहा जाता है। ये एकादशी आपके समस्त पापों को हरने वाली और श्रेष्ठ कही गई है। ऐसा कहा जाता है कि पवित्र होने के कारण ये एकादशीव्रत रखने वाले जातक के सभी पापों को खात्मा करती है और प्रत्येक वर्ष व्रत करने से मनुष्यों को मोक्ष की प्राप्ति होती है। इस दिन भगवान कृष्ण का केशव के फूल , अक्षत, रोली और सुगंधित पदार्थों से पूजन किया जाता है। साथ ही आरती करके लोगों को प्रसाद बांटा जाता है।

पढ़िए जया एकादशी के व्रत की कथा…

ऐसा कहा जाता है कि प्राचीन काल में देवराज इंद्र का स्वर्ग में शासन था और बाकी सभी देवगण स्वर्ग में चैन से रहते थे। तभी एक समय नंदन वन में उत्सव चल रहा था और इंद्र अपनी इच्छानुसार नंदन वन में अप्सराओं के साथ विहार कर रहे थे। इस दौरान गंधर्वों में प्रसिद्ध पुष्पदंत और उसकी बेटी पुष्पवती , चित्रसेन और उसकी स्त्री मालिनी भी उपस्थित थे।

साथ ही मालिनी का पुत्र पुष्पवान और उसका पुत्र माल्यवान भी उपस्थित थे। उस समय गंधर्व अपना गायन कर रहे थे और गंधर्व कन्याएं नृत्य प्रस्तुत कर रही थीं। सभा में माल्यवान नामक एक गंधर्व और पुष्पवती नामक गंधर्व कन्या का नृत्य चल रहा था। इसी बीच पुष्यवती की नजर जैसे ही माल्यवान पर पड़ी वह उस पर मोहित हो गई और माल्यवान पर काम-बाण चलाने लगी।

पुष्यवती सभा की मर्यादा को भूलकर ऐसा नृत्य करने लगी कि माल्यवान उसकी ओर आकर्षित हो गया। माल्यवान गंधर्व कन्या की भाव-भंगिमा को देखकर सुध बुध खो बैठा और गायन की मर्यादा से भटककर जिससे उसका सुर ताल से साथ छूट गया। इस पर इंद्र देव को क्रोध आ गया और दोनों को श्राप दे दिया। कहा जाता है कि श्राप से तत्काल दोनों पिशाच बन गए और हिमालय पर्वत पर एक वृक्ष पर दोनों का निवास बन गया। यहां पिशाच योनि में इन्हें अत्यंत कष्ट भोगना पड़ रहा था। दैव्ययोग से तभी माघ मास में शुक्ल पक्ष की जया नामक एकादशी आई, माघ शुक्ल पक्ष की एकादशी के दिन दोनों काफी दुखी थे।

उस दिन उन्होंने केवल फलाहार पर रहकर दिन व्यतीत किया और शाम के समय पीपल के पेड़ के नीचे बैठ गए। ठंड के कारण दोनों की मृत्यु हो गयी और अनजाने में जया एकादशी का व्रत हो जाने से दोनों को पिशाच योनि से मुक्ति भी मिल गई।

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