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शरद पूर्णिमा की रात में भगवान कृष्ण के महारास का जाने रहस्य

sharad poornima 6 शरद पूर्णिमा की रात में भगवान कृष्ण के महारास का जाने रहस्य

नई दिल्ली। वातावरण में मादक और मोहक खूशबू छाई हुई है। चारों और वर्षा ऋतु की समाप्ति के बाद अब चारों ओर हरियाली फैली हुई है। वातावरण में भीनी-भीनी ठंड आ रही है। इसके साथ ही पर्वों और त्यौहारों को लेकर शुरूआत हो गई है। कहते हैं पितृपक्ष के बाद से ही पर्वों और त्यौहारों की श्रृंखला आरम्भ हो जाती है। भारत विविधताओं का देश है, पर्व और त्यौहार यहां की साझा संस्कृति की झलक दिखाते हैं। इन्ही पर्वों और त्यौहारों के बीच हमारी संस्कृति का छाप सर्वत्र फैलती दिखाई देती है।

sharad poornima 6 शरद पूर्णिमा की रात में भगवान कृष्ण के महारास का जाने रहस्य

नवरात्रि और विजयादशमी के बाद आने वाला पर्व होता है शरद पूर्णिमा का कहा जाता है इस दिन चंद्रमा अपनी सोलह कलाओं से परिपूर्ण हो कर आसमान में अपनी किरणों की ज्योत्सना को बिखेरता हुआ उदय होता है। कहा जाता है कि इन दिन चंद्रमा की ये किरणें औषधिए गुणों से परिपूर्ण होती है। इन किरणों की ज्योत्सना से निकली हुई ओज को ग्रहण करने से शरीर में कई रोग दूर होते हैं। इसके साथ ही इन शरीर को नई ऊर्जा मिलती है। कहा जाता है कि इस दिन रात्रि में चंद्रमा से निकलने वाली किरणों की ओज को ग्रहण करने के लिए लोग खीर बनाकर खुले आसमान के नीचे रखते हैं। जिसके भोर में प्रसाद और औषधि के तौर पर ग्रहण करते हैं।

कहा जाता है कि ये रात्रि प्रेम के लिए भी जानी जाती है। जब बात प्रेम की हो तो बांके बिहारी नटवर लाल माखनचोर कन्हा का जिक्र आ जाता है। बांके बिहारी की नगरी मथुरा और वृंदावन के लिए ये त्यौहार विशेष होता है। क्योंकि इसी दिन बांके बिहारी ने यमुना के तट के पास गोपियों और राधारानी के साथ महा रास खेला था। प्रेम की अद्धभुत परिभाषा को इसी पर्व पर इसी नक्षत्र में बांके बिहारी ने गढ़ा था। कहा जाता है कि ये गोपियां प्राचीनकाल के ऋषि महार्षि थे। जिन्होने सैकड़ों साल तक तपस्या की थी। इसके परिणाम स्वरूप भगवान ने इनका अपने प्रेम का रसपान करने का वचन दिया था। इसके लिए उन्होने इन सभी के साथ महारास करने का निश्चय किया। जिसके बाद शरद पूर्णिमा की पावन रात में चंद्रमा की ज्योत्सना के रस से सराबोर होकर रात भर महारास कर इन्हे अपने दिव्य स्वरूप का दर्शन दिया।

कहा जाता है आज की रात भी भगवान श्री कृष्ण व्रज की धरती पर आते हैं। इसके साथ ही उनकी बंशी की धुन पर सारी गोपिया प्रकट होती हैं। फिर श्रृष्टि के अनुपम लीला महारास का उदय होता है।

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