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जानिए कैसे हुआ था देशी रियासतों का विलय, और रोचक तथ्य

कैसे हुआ देशी रियासतों का विलय जानिए कैसे हुआ था देशी रियासतों का विलय, और रोचक तथ्य

नई दिल्ली: सन् 1947 में स्वतंत्र होने के बाद भारत स्वतंत्र रियासतों में बंटा हुआ था। 15 अगस्त 1947 की तारीख लार्ड लुई माउण्टबैटन ने जानबूझ कर तय की थी क्योंकि ये द्वितीय विश्व युद्ध में जापान द्वारा समर्पण करने की दूसरी वर्षगांठ थी। 15 अगस्त 1945 को जापान आत्म समर्पण कर दिया था, तब माउण्टबैटन सेना के साथ बर्मा के जंगलों में थे। इसी वर्षगांठ को यादगार बनाने के लिए माउण्टबैटन ने 15 अगस्त 1947 को भारत की आजादी के लिए तय किया था। किन्तु भोपाल के लोगों को भारत संघ का हिस्सा बनने के लिए बाद में दो साल और इंतजार करना पड़ा था। तब सरदार पटेल ने कोई 562 देशी रियासतों को भारत में मिलाकर भारत को एक सूत्र में बांधा और भारत को मौजूदा स्वरूप दिया। एक कुशल प्रशासक होने के कारण कृतज्ञ राष्ट्र उन्हें ’लौह पुरुष‘ के रूप में भी याद करता है।

कैसे हुआ देशी रियासतों का विलय जानिए कैसे हुआ था देशी रियासतों का विलय, और रोचक तथ्य

शामिल होने की स्वीकृति

आजादी प्राप्ति के दौरान भारत में करीब 562 देशी रियासतें थीं। सरदार पटेल तब अंतरिम सरकार में उपप्रधानमंत्री के साथ देश के गृहमंत्री थे। जूनागढ, हैदराबाद और कश्मीर को छोडक़र 562 रियासतों ने स्वेच्छा से भारतीय परिसंघ में शामिल होने की स्वीकृति दी थी। वास्तव में, माउण्टबैटन ने जो प्रस्ताव भारत की आजादी को लेकर जवाहरलाल नेहरू के सामने रखा था उसमें ये प्रावधान था कि भारत के 565 रजवाड़े भारत या पाकिस्तान में किसी एक में विलय को चुनेंगे और वे चाहें तो दोनों के साथ न जाकर अपने को स्वतंत्र भी रख सकेंगे। इन 565 रजवाड़ों जिनमें से अधिकांश प्रिंसली स्टेट (ब्रिटिश भारतीय साम्राज्य का हिस्सा) थे भारत के हिस्से में आए रजवाड़ों ने एक-एक करके विलय पत्र पर हस्ताक्षर कर दिए, या यूँ कह सकते हैं कि सरदार वल्लभ भाई पटेल तथा वीपी मेनन ने हस्ताक्षर करवा लिए।

मात्र बचे रह गए थे तो हैदराबाद, जूनागढ़, कश्मीर और भोपाल। इनमें से भोपाल का विलय सबसे अंत में भारत में हुआ। भारत संघ में शामिल होने वाली अंतिम रियासत भोपाल इसलिए थी क्योंकि पटेल और मेनन को पता था कि भोपाल को अंतत: मिलना ही होगा। जूनागढ़ पाकिस्तान में मिलने की घोषणा कर चुका था तो काश्मीर स्वतंत्र बने रहने की। जूनागढ़, कश्मीर तथा हैदराबाद तीनों राज्यों को सेना की मदद से विलय करवाया गया किन्तु भोपाल में इसकी आवश्यकता नहीं पड़ी।

भोपाल जहां नवाब हमीदुल्लाह खान उस रियासत के नवाब थे जो भोपाल, सीहोर और रायसेन तक फैली हुई थी। उन्होंने 1947 में चांसलर पद से त्यागपत्र दे दिया था, क्योंकि वे रजवाड़ों की स्वतंत्रता के पक्षधर थे। नवाब हमीदुल्लाह 14 अगस्त 1947 तक ऊहापोह में थे कि वो क्या निर्णय लें। जिन्ना उन्हें पाकिस्तान में सेक्रेटरी जनरल का पद देकर वहाँ आने की पेशकश दे चुके थे और इधर रियासत का मोह था। 13 अगस्त को उन्होंने अपनी बेटी आबिदा को भोपाल रियासत का शासक बन जाने को कहा ताकि वे पाकिस्तान जाकर सेक्रेटरी जनरल का पद सभाल सकें, किन्तु आबिदा ने इससे इनकार कर दिया।

भोपाल का विलीनीकरण सबसे अंत में हुआ तो उसके पीछे एक कारण ये भी था कि नवाब हमीदुल्लाह जो चेम्बर ऑफ प्रिंसेस के चांसलर थे उनका देश की आंतरिक राजनीति में बहुत दखल था, वे नेहरू और जिन्ना दोनों के घनिष्ठ मित्र थे। मार्च 1948 में नवाब हमीदुल्लाह ने भोपाल के स्वतंत्र रहने की घोषणा की। मई 1948 में नवाब ने भोपाल सरकार का एक मंत्रीमंडल घोषित कर दिया था जिसके प्रधानमंत्री चतुरनारायण मालवीय थे। इस समय तक आते-आते भोपाल रियासत में विलीनीकरण को लेकर विद्रोह पनपने लगा था। साथ ही विलीनीकरण की सूत्रधार पटेल-मेनन की जोड़ी भी दबाव बनाने लगी थी।

एक और समस्या ये सामने आ गई थी कि चतुर नारायण मालवीय भी विलीनीकरण के पक्ष में हो चुके थे। प्रजामंडल विलीनीकरण आंदोलन का प्रमुख दल बन चुका था। अक्टूबर 1948 में नवाब हज पर चले गये और दिसम्बर 1948 में भोपाल के इतिहास का जबरदस्त प्रदर्शन विलीनीकरण को लेकर हुआ, कई प्रदर्शनकारी गिरफ्तार किए गए जिनमें ठाकुर लाल सिंह, डॉ शंकर दयाल शर्मा, भैंरो प्रसाद और उद्धवदास मेहता जैसे नाम भी शामिल थे। पूरा भोपाल बंद था, राज्य की पुलिस आंदोलनकारियों पर पानी फेंक कर उन्हें नियंत्रित करने की कोशिश कर रही थी।

23 जनवरी 1949 को डॉ॰ शंकर दयाल शर्मा को आठ माह के लिए जेल भेज दिया गया। इन सबके बीच वीपी मेनन एक बार फिर से भोपाल आए मेनन ने नवाब को स्पष्ट शब्दों में कहा कि भोपाल स्वतंत्र नहीं रह सकता, भौगोलिक, नैतिक और सांस्कृतिक नजर से देखें तो भोपाल मालवा के ज्यादा करीब है इसलिए भोपाल को मध्यभारत का हिस्सा बनना ही होगा। आखिरकार 29 जनवरी 1949 को नवाब ने मंत्रिमंडल को बर्खास्त करते हुए सत्ता के सारे सूत्र एक बार फिर से अपने हाथ में ले लिए। पंडित चतुरनारायण मालवीय इक्कीस दिन के उपवास पर बैठ चुके थे।

लगतार दबाव बनाए हुए

वीपी मेनन पूरे घटनाक्रम को भोपाल में ही रहकर देख रहे थे, वे लाल कोठी (वर्तमान राजभवन) में रुके हुए थे तथा लगतार दबाव बनाए हुए थे नवाब पर। और अंतत: 30 अप्रैल 1949 को नवाब ने विलीनीकरण के पत्र पर हस्ताक्षर कर दिए। सरदार पटेल ने नवाब को लिखे पत्र में कहा -मेरे लिए ये एक बड़ी निराशाजनक और दुख की बात थी कि आपके अविवादित हुनर तथा क्षमताओं को आपने देश के उपयोग में उस समय नहीं आने दिया जब देश को उसकी जरूरत थी।

अंतत: 1 जून 1949 को भोपाल रियासत, भारत का हिस्सा बन गई, केंद्र द्वारा नियुक्त चीफ कमिश्नर श्री एनबी बैनर्जी ने कार्यभार संभाल लिया और नवाब को मिला 11 लाख सालाना का प्रिवीपर्स। भोपाल का विलीनीकरण हो चुका था। लगभग 225 साल पुराने (1724 से 1949) नवाबी शासन का प्रतीक रहा तिरंगा (काला, सफेद, हरा) लाल कोठी से उतारा जा रहा था और भारत संघ का तिरंगा (केसरिया, सफेद, हरा) चढ़ाया जा रहा था।

by ankit tripathi

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