कोरोना वायरस के चलते बीते डेढ़ साल से स्कूल बंद रहे। अब उन्हें धीरे-धीरे खोला जा रहा है। ऐसे में लोगों के दिमाग में कई तरह के सवाल उठ रहे हैं। जहां एक पक्ष स्कूल खोलने को अहमियत दे रहा है तो दूसरा पक्ष सवाल कर रहा है कि स्कूल खोलने की इतनी जल्दी क्या है। ऑफलाइ क्लास ते हो ही रही है। अब इस सब के बीच एक बहस ये शुरू हो गई है कि क्या बच्चों को कोरोना की वैक्सीन दी जानी चाहिए या नहीं। ये बहस सिर्फ भारत में ही नहीं बल्कि विदेशों में भी छिड़ी हुई है। ब्रिटेन की बात करें तो वहा सलह लेने वाली समीति ने 12 से 15 साल वाले स्वस्थ बच्चों को स्वास्थ के आधार पर वैक्सीन देने को लेकर सहमति जताई है।
बता दें कि डॉक्टरों का कहना है कि उन बच्चों को वैक्सीन दी जाए जिन्हें हार्ट, लंग या किडनी की गंभीर दिक्कत है। वहीं भारत में मेडिकल विषेशज्ञय इस मामले में बटे हुए हैं। नेशनल टेक्निकल एडवाइजरी ग्रुप ऑन इम्यूनाइजेशन इन इंडिया (NTAGI ) के प्रमुख डॉक्टर अरोड़ा का कहना है कि ज़ाइडस केडिला की ज़ायकोव-डी वैक्सीन 12 से 17 साल के बच्चों को दी जा सकती है। भारत में बच्चों के लिए ज़ाइडस केडिला की वैक्सीन को मंजूरी मिली है। ये निडिल फ्री वैक्सीन है। डॉक्टर एन के अरोड़ा कहते हैं कि इस वैक्सीन को लगाने में ज्यादा दर्द नहीं होगा।
इस बीच कुछ उम्मीद है कि 1-2 महीनों में 2 से 18 साल के बच्चों में ट्रायल के नतीजे भी सामने आ जाएंगे। वहीं दूसरी कंपनियां भी बच्चो में ट्रायल कर रही हैं। जिसके आंकड़े आ सकते हैं। बच्चों के वैक्सीनेशन ने जुड़ा एक अहम सवाल ये है कि क्या सभी बच्चों को वैक्सीन लगाई जानी चाहिए। इंडियन एसोसिएशन ऑफ प्रिवेंटिव एंड सोशल मेडिसिन (IAPSM) के राष्ट्रीय अध्यक्ष डॉक्टर सुनिला गर्ग का साफ तौर पर कहना है कि सभी बच्चों को वैक्सीन नहीं दी जानी चाहिए डॉक्टर सुनिला गर्ग कहती हैं कि कोविड वैक्सीन केवल उन बच्चों को दी जानी चाहिए जिन्हें को-मैबॉलटीज है। वह भारत में किए गए सीरो सर्वे 4 का जिक्र करते हुए कहती हैं कि लगभग 60 प्रतिशत सीरो सर्वे में पॉजिटिव पाए गए हैं। जबकि ना वह स्कूल गए और न ही घर से बाहर निकले।