श्री रामचरितमानस में गोस्वामी तुलसीदास कहते हैं कि,
तरपन होम करैं विधि नाना। विप्र जेवांइ देहिं बहु दाना।।
यहां आपको बतायेंगे कि श्राद्ध करने का सही समय क्या है और श्राद्ध का तात्पर्य क्या है?
- अध्यात्म डेस्क || भारत खबर
2 सितंबर से पितृपक्ष की शुरुआत हो चुकी है और ऐसे में श्राद्ध पक्ष की महत्ता और उसके बारे में आपको हम यहां पर विस्तृत जानकारी देंगे। श्राद्ध पक्ष में क्या करना चाहिए, क्या नहीं करना चाहिए, इस पर भी आपको विस्तार से बताएंगे-
श्राद्ध का विशेष अर्थ होता है डिवोशन या श्रद्धा और ऐसा माना जाता है कि माता पार्वती और शिव को ‘श्रद्धा विश्वास रूपिणौ’ कहा जाता है। पितृपक्ष पितरों के तर्पण के लिए आता है, हिंदू मान्यता के अनुसार मानव शरीर में सबसे ऊपर दृश्य मानदेय स्थूल शरीर होता है, इसके अंदर सूक्ष्म में शरीर होता है जिसमें पांच कर्मेंद्रियां होती हैं और फिर आत्मा होती है जो अजर अमर है।
मान्यता के अनुसार देव, पितृ आदि सभी भोग योनि में होते हैं कर्म योनी में नहीं। उनमें आशीर्वाद या वरदान देने की असीमित क्षमता होती है लेकिन खुद की तृप्ति के लिए वह दूसरों पर निर्भर रहते हैं यानी स्थूल शरीर धारियों के अर्पण पर निर्भर करते हैं।
पितृ अपने वंशजों के हित की देखभाल करते हैं और हमेशा उनकी भलाई के लिए सोचते हैं। अतः पितृपक्ष में पितृ तर्पण का विशेष योगदान है और हमें इसे पूरी सावधानी और चेष्टा के साथ करना चाहिए।
श्री रामचरितमानस में गोस्वामी तुलसीदास कहते हैं :
तरपन होम करैं विधि नाना। विप्र जेवांइ देहिं बहु दाना।।
श्राद्ध का अर्थ श्रद्धा से है, जो धर्म का आधार है। कहा गया है :
‘श्रद्धा बिना धर्म नहिं होई। बिनु महि गंध कि पावहि कोई।।’
‘वराह पुराण’ के अध्याय 190 के अनुसार, चारों वर्णों के लोग श्राद्ध के अधिकारी हैं। माना जाता है कि जलाशय में जाकर एक बूंद जल भी पितरों को श्रद्धा से अर्पित कर दें, तो वे तृप्त होकर आशीर्वाद दे देते हैं। वराह पुराण कहता है यदि व्यक्ति साधनहीन है और कहीं वन प्रदेश में है, तो दोनों हाथ उठाकर पितरों को अपनी स्थिति बताकर श्रद्धा समर्पण कर दे, तब भी वे प्रसन्न होकर आशीष दे देते हैं।
वशिष्ठ सूत्र और नारद पुराण के अनुसार, गया में श्राद्ध का बहुत महत्व है। स्कंद पुराणानुसार बदरिकाश्रम की ‘गरुड़ शिला’ पर किया गया पिंडदान गया के ही बराबर माना जाता है। श्राद्ध में श्रद्धा का सर्वाधिक महत्व है। यदि इसे पूरी श्रद्धा के साथ नहीं किया जाता तो इसे करना निरर्थक है।
किस समय श्राद्ध अर्पण करना सबसे उचित होता है
श्राद्ध अर्पण करते समय सबसे महत्वपूर्ण बात होती है समय की किस समय अर्पण करना चाहिए और किस तरह पर करना चाहिए यह दोनों चीजें बेहद मायने रखती है क्योंकि कोरना का समय चल रहा है तो ऐसे में हमें खुद ही यह काम करना है हो सकता है कि आपके यहां आस-पास इस कर्म को संपन्न कराने के लिए कोई पंडित ना मिल सके। पुराणों के अनुसार, श्राद्ध करने का सबसे उत्तम समय है कुतप काल। इस समय में श्राद्ध करने से पूरा फल प्राप्त होता है।
आइए जानते हैं कि क्या है कुतप काल
ये दिन का आठवां प्रहर होता है। घड़ी के मुताबिक, दोपहर करीबन 11:30 बजे से 12:30 बजे के बीच का समय कुतप काल कहलाता है। इस समय में तर्पण, पिंडदान, दान आदि करना चाहिए।
17 सितंबर तक चलेगा पितृपक्ष
श्राद्ध पक्ष 2 सितंबर से 17 सितंबर तक चलेगा और श्राद्ध में तर्पण से पूर्वजों की आत्मा को संपन्नता और दृष्टि मिलती है। इन दिनों दूध चावल शहद आदि मिलाकर पिंड बनाए जाते हैं और उन्हें किसी पक्षी गाय या किसी कुत्ते को खिलाया जाता है। माना जाता है कि इससे पितरों की आत्मा को शांति मिलती है, इसके अलावा श्राद्ध के दिन ब्राह्मणों को भोजन कराना व उन्हें नाना प्रकार की वस्तुयें देना फलदायी माना जाता है।