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रक्षाबंधनः इस बार पूरे दिन मनाये राखी का त्योहार, जानिए क्या होगा शुभ मुहूर्त

रक्षाबंधनः इस बार पूरे दिन मनाये राखी का त्योहार, जानिए क्या होगा शुभ मुहूर्त

लखनऊः इस बार श्रावणी पूर्णिमा व्रत 21अगस्त 2021, शनिवार को करना प्रशस्त होगा, क्योंकि यह व्रत प्रदोष व्यापिनी पूर्णिमा को किया जाता है। पंचाग के अनुसार 22 अगस्त 2021, रविवार को श्रावण शुक्ल पूर्णिमा सांय 5:32 तक ही विधमान है, जोकि प्रदोष से पहले ही समाप्त हो रही है। 21 अगस्त 2021, शनिवार को यह पूर्णिमा प्रदोष के काफी भाग को व्याप्त कर रही है।

अतः शास्त्रसम्मत व्रत की पूर्णिमा 21 अगस्त 2021, शनिवार को ही होगी, क्योंकि इस दिन प्रदोष काल लगभग सांय 7:00 बजे से रात्रि 9:12 बजे तक रहेगा। 22 अगस्त 2021, रविवार को स्नान दान की पूर्णिमा में रक्षाबंधन पर्व मनाया जाएगा। यह पूर्णिमा 22 अगस्त 2021 को सांय 5:32 बजे समाप्त होगा।

शास्त्रों के अनुसार श्रावणी पूर्णिमा/रक्षाबंधन पर अधिकतर भद्रा का साया देखा गया है। ऐसी मान्यता है कि भद्रा का जन्म भगवान शिव के शरीर से हुआ। अतः भद्रा का दोष शान्त करने के लिए भगवान शंकर की पूजा उपयुक्त उपाय है। भगवान शिव और पार्वती की उपासना से भद्रा शुभ होती है। अतः रक्षाबंधन पर भद्रा का प्रकोप सूर्योदय से प्रातः 6:14 बजे तक रहेगा, यही समय भगवान शिव की पूजा/आराधना का श्रेष्ठ समय रहेगा।

भद्र होता है फलदायी

श्रावण मास की पूर्णिमा के दिन त्रिमुहूर्त व्यापनी भद्रा रहित काल में रक्षा बन्धन का पर्व मनाया जाता है। इस बार रक्षाबन्धन का पर्व 22 अगस्त 2021, रविवार को पड़ रहा है। शास्त्रीय मान्यता अनुसार भद्रा में राखी बांधना निषेध होता है, क्योंकि श्रावणी राजा को क्षति करती है। परन्तु शास्त्र के अनुसार भद्रा का निवास तीनों लोकों में होता है, जिस समय भद्रा जहां निवास करती है फल भी वहीं का देती है। भद्रा निवास विचार के अनुसार चन्द्र राशि के अनुसार मेष, वृष, मिथुन (अश्वनि नक्षत्र से पुनर्वसु के तृतीय चरण तक) तथा वृश्चिक (विशाखा के चौथे चरण से ज्येष्ठा नक्षत्र के अन्त तक) के चन्द्रमा में होने पर भद्रा का निवास स्वर्ग लोग में रहता है। इस बार भद्रा सूर्य उदय से प्रातः काल 6:14 बजे तक ही रहेगी। अत: प्रातः काल 6:14 बजे के बाद पूरे दिन त्योहार मनाया जा सकेगा। इस बार पंचाग के मुताबिक पूर्णिमा पूरे दिन रहकर रात्रि 9:29 बजे समाप्त होगी। इस दिन धनिष्ठा नक्षत्र सांय 7:39 बजे तक रहेगा। इस दिन शोभन योग प्रातः 10:38 बजे तक रहेगा तत्पश्चात अतिग योग आरम्भ होगा। ज्योतिष शास्त्र में यह उत्तम योग माना जाता है।

धार्मिक मान्यता

रक्षाबन्धन का पर्व रक्षा और स्नेह का प्रतीक होता है, जो व्यक्ति रक्षा सूत्र बंधवाता है, वह यह प्रण लेता है कि बांधने वाले की वह सदैव रक्षा करेगा। पुरानी मान्यताओं में भविष्य पुराण के अनुसार रक्षा बन्धन का त्यौहार बृहस्पति के निर्देश में इंद्राणी द्वारा तैयार किये गये रक्षा सूत्र को ब्राह्मणों द्वारा इन्द्र की कलाई में बांधने के उपलक्ष्य में मनाया जाता है। ऐसा माना जाता है कि बारह वर्ष तक चले देवासुर संग्राम में इन्द्र की भीषण पराजय के बाद इन्द्र को इन्द्र लोक छोड़कर जाना पड़ा, तब देवगुरू बृहस्पति ने इन्द्र को श्रावण शुक्ल पूर्णिमा को रक्षा विधान करने का परामर्श दिया। इस पर इन्द्राणी ने एक रक्षा सूत्र तैयार किया और उसे ब्राह्मणों द्वारा इन्द्र की कलाई पर बंधवा दिया। इस रक्षा सूत्र के कारण इन्द्र की सेवासुर संग्राम में अनन्त: विजय हुई।

रक्षाबंधन का अर्थ

“रक्षाबन्धन” शब्द दो शब्दों से मिलकर बना है – “रक्षा” और “बन्धन” अर्थात् ऐसा बन्धन जो रक्षा के उद्देश्य से किया जाये। द्वापर युग में भी द्रोपदी ने भगवान श्रीकृष्ण की कलाई में अपनी साड़ी का पल्लू बांधा था। इसे रक्षा सूत्र मानकर भगवान श्री कृष्ण ने कौरवों की सभा में द्रोपदी की लाज बचाकर उसकी रक्षा की थी। इस पर्व पर वृक्षारोपण भी किया जाता है जिसका विशेष फल प्राप्त होता है वृक्ष परोपकार के प्रतीक है, जो बिना माँगे फल, लकड़ी, छाया और औषधि प्रदान करने के साथ जीवनदायी प्राणवायु देते है। वृक्षो से वर्षा होती है और प्रदूषण नियंत्रित होता है। वृक्षारोपण जैसा पुण्य कार्य एवं वृक्षपूजन इस पर्व की विशेषता है। इन प्रेरणाओ के साथ श्रावणी पर्व मनाना अति श्रेष्ठ रहता है।

व्रत-पूजा-विधान

इस दिन व्रती को चाहिए कि सविधि स्नान करके देवता पितर और ऋषियों का तर्पण करें। दोपहर को सूती वस्त्र लेकर उसमें सरसो, केसर, चन्दन, अक्षत एवं दूर्वा रखकर बांधे, फिर कलश स्थापन कर उस पर रक्षा सूत्र रखकर उसका यथाविधि पूजन करें। उसके पश्चात् किसी ब्राह्मण से रक्षा सूत्र को दाहिनें हाथ में बंधवाना चाहिए। रक्षा सूत्र बांधते समय ब्राह्मण को यह निम्नलिखित मंत्र पढऩा चाहिए:-

येन बद्धो बली राजा दानवेन्द्रो महाबल:।

तेन त्वामनुबध्नाभि रक्षे मा चल मा चल।।

इस दिन प्रात: काल स्नान आदि के पश्चात् सूर्य देव को जल चढ़ाकर, शिव जी की अराधना कर शिवलिंग पर जल चढ़ायें। लाल व केसरिया धागे को गंगाजल, चंदन, हल्दी व केसर से पवित्र कर गायत्री मंत्र का जाप करते हुये अपने घर के मुख्य द्वार पर बांधे फिर बहन-भाईयों आदि को राखी बांधे। घर के मुख्य द्वार पर बंधा यह धागा घर को हर बुरी नजऱ से बचाता है एवं घर के वातावरण पंचमहाभूत-जल, वायु, पृथ्वी, आकाश व अग्नि को संतुलित रखता है।

राखी बांधने का मुहूर्त

प्रातः 6:14 बजे के बाद पूरे दिन रहेगा राखी बांधने का मुहूर्त,प्रातः 6:14 बजे के बाद नहीं होगा भद्रा का साया

प्रातःकाल: 7:29 से 10:46 बजे तक

अपराह्न: 1:45 से सायं 3:35 बजे तक

सांयः 6:49 से रात्रि 8:12 बजे तक

भद्रा काल:- सूर्योदय से प्रातः 6:14 बजे तक।भगवान शिव की पूजा का श्रेष्ठ समय

प्रातःकालः 7:29 से 10:58 बजे तक अमृत के चौघड़िया मुहूर्त में

राहुकाल:- सांय काल 4:25 से 6:05 बजे तक

 

ज्योतिषाचार्य पं राजीव शर्मा।

बालाजी ज्योतिष संस्थान,बरेली।

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