उल्का पिंड को लेकर अकसर वैज्ञानिक नये से नये खुलासे करते रहते हैं। जिनमें से कुछ खुलासों में वो चेतावनी देते हुए भी दिखते हैं कि, पृथ्वी से अगर ये उल्का पिंड टकरा गया तो धरती को तबाह कर देगा। इन सभी जानकारियों के सामने आने से लोगों के मन में काफी सवाल भी उठते रहते हैं। आपके इन्हीं सवालों का जवाब आज हम आपके लिये लेकर आये हैं।ऐस्टरॉइड्स वे चट्टानें होती हैं जो किसी ग्रह की तरह ही सूरज के चक्कर काटती हैं लेकिन ये आकार में ग्रहों से काफी छोटी होती हैं। हमारे सोलर सिस्टम में ज्यादातर ऐस्टरॉइड्स मंगल ग्रह और बृहस्पति यानी मार्स और जूपिटर की कक्षा में ऐस्टरॉइड बेल्ट में पाए जाते हैं। इसके अलावा भी ये दूसरे ग्रहों की कक्षा में घूमते रहते हैं और ग्रह के साथ ही सूरज का चक्कर काटते हैं।
कैसे बने उल्का पिंड?
करीब 4.5 अरब साल पहले जब हमारा सोलर सिस्टम बना था, तब गैस और धूल के ऐसे बादल जो किसी ग्रह का आकार नहीं ले पाए और पीछे छूट गए, वही इन चट्टानों यानी ऐस्टरॉइड्स में तब्दील हो गए। यही वजह है कि इनका आकार भी ग्रहों की तरह गोल नहीं होता। कोई भी दो ऐस्टरॉइड एक जैसे नहीं होते हैं। आपने कई बार सुना होगा कि एवरेस्ट जितना बड़ा ऐस्टरॉइड धरती के पास से गुजरने वाला है तो कभी फुटबॉल के साइज का ऐस्टरॉइड आने वाला है।
क्या सच में धरती को तबाह कर सकते हैं उल्का पिंड?
पृथ्वी पर विनाश के लिए सिर्फ इनका आकार अहम नहीं होता। अगर किसी तेज रफ्तार चट्टान के धरती से करीब 46 लाख मील से करीब आने की संभावना होती है तो उसे स्पेस ऑर्गनाइजेशन्स खतरनाक मानते हैं।
नासा का सेनेटरी सिस्टम ऐसे खतरों पर पहले से ही नजर रखता है। इस सिस्टम के मुताबिक जिस ऐस्टरॉइड से धरती को वाकई खतरे की आशंका है वह है अभी 850 साल दूर है।
इसीलिए इतनी जल्दी कोई भी उल्का पिंड या एस्टोरॉयड पृथ्वी से नहीं टकराएगा। हालाकि वैज्ञानिकों की तरफ से लगातार दावे किये जाते हैं कि, करोड़ो साल पहले पृथ्वी पर उल्का पिंड गिरा था जिसकी वजह से डायनासोर का खात्मा हो गया था।
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इसी कारण वैज्ञानिकों की तरफ से अनुमान लगाया जाता है कि, ऐसा ही उल्का पिंड पृथ्वी पर दौबारा से गिर सकता है। यही कारण है कि, नासा की तरफ से इन उल्का पिंड पर लगातार नजर रहती है।