वाराणसी: काशी भगवान शंकर की पावन नगरी है। ये विश्व की सबसे प्राचीन शहरों में शामिल है। भगवान शंकर औघड़दानी हैं। उनकी हर अदा निराली है। जब भोले भंडारी का चरित्र निराला है तो स्वाभाविक रूप से उनकी नगरी में होली खेलने का अंदाज भी एकदम निराला होगा।
काशी की होली को देखने के लिए चाहिए ‘जिगर’
भगवान नीलकंठ के शहर बनारस में अबीर-गुलाल, फूल और रंग से तो बाद में पहले चिता की भस्म से होली खेली जाती है। चिता की भस्म से खेली जाने वाली इस होली को हर कोई नहीं देख पाता है। इस होली को देखने के लिए बड़ा जिगर चाहिए।
ये होली कृष्ण जी की मथुरा नगरी में खेली जाने वाली होली की ही तरह मशहूर है। इस होली को देखने के लिए दूर-दूर से भक्त और पर्यटक आते हैं। वहीं, विदेशी सैलानियों में तो इसका खास आकर्षण रहता है।
मणिकर्णिका घाट पर होता है आयोजन
पौराणिक नगरी काशी में भस्म होली खेलने के लिए लोग सबसे पहले वाराणसी के मणिकर्णिका घाट पहुंचते हैं। इसके बाद इस दिन यहां जलाई जा रही चिताओं की भस्म को एक-दूसरे पर उड़ाकर होली खेली जाती है। साथ ही लोग एक-दूसरे को टीका भी लगाते हैं और आपस में गले मिलते हैं।
इस दौरान यहां शिवजी को खुश करने के लिए मंगल गीत भी गाये जाते हैं। यही नहीं हर-हर महादेव और डमरुओं की आवाज से यहां का नजारा अद्भुत हो जाता है। मान्यता है कि इस दिन भगवान शंकर स्वयं अपनी नगरी काशी आते हैं और भक्तों के साथ होली खेलते हैं।
भोलेबाबा ने माता पार्वती का कराया था गौना
हिंदू धर्म में वर्णित मान्यताओं के अनुसार फाल्गुन मास की एकादशी के दिन भोले बाबा ने पार्वती जी का गौना कराकर अपने दरबार में प्रवेश किया था। इसके बाद अपनी सत्ता संभाली थी।
इसी बात पर खुशी व्यक्त करते हुए बनारस के लोग जुलूस के रूप में शिवजी की भव्य पालकी निकालते हैं। इस दौरान चारों ओर रंग ही रंग बिखरा होता है। लोग रंग उड़ाकर खुशी मनाते हैं। इसके अगले दिन चिता की भस्म से होली खेली जाती है। इस होली का रूप बेहद खौफनाक होता है।
चिताओं को तारक मंत्र देकर शिवजी देते हैं मुक्ति
स्थानीय लोगों ने बताया कि पौराणिक मान्यताओं के हिसाब से चिता भस्म से होली खेलने की ये परंपरा पीढ़ी-दर-पीढ़ी चली आ रही है। लोगों ने कहा कि भोलेबाबा इस दिन स्वयं काशी में होते हैं और होली खेलते हैं। इस दिन भोलेबाबा मणिकर्णिका घाट पर आई हुई चिताओं को तारक मंत्र देकर मुक्ति प्रदान करते हैं।
रहस्यों को समेटे है भोलेनाथ की नगरी
पुरानी मान्यताओं के अनुसार काशी में देह त्यागने वाले को मोक्ष की प्राप्ति होती है, इसलिए कई लोग बुजुर्ग होने पर काशी चले जाते हैं। जिससे उनके मोक्ष का मार्ग प्रशस्त हो सके। बनारस की चिता भस्म होली मणिकर्णिका घाट स्थित महाशमशान पर मनाई जाती है।
मान्यता है कि महाश्मशान वो स्थान है, जहां शिवजी ने श्री हरि विष्णु को कड़ी तपस्या के बाद सृष्टि के संचालन का वरदान दिया था। बनारस के इसी घाट पर शिवजी ने धरती वासियों को मोक्ष प्रदान करने का वचन दिया था। तभी से यहां पर चिता की राख से होली खेलने की परंपरा शुरू हो गई। चिता भस्म की होली से काशीवासी अपने आराध्य शिवजी को खुश करने का प्रयास करते हैं।