नई दिल्ली। मैंने होटल, रेस्टौरेंट व्यवसाय से जुड़े व्यवसायियों, इनमें काम करने वाले साथियों जिनमे शेफ़, प्रबंधक, इस व्यवसाय से जुड़ी वर्कर यूनियनों से बात-चीत की। अगर जल्दी ही लॉकडाउन से निज़ात न मिली तो प्रदेश में बेरोज़गारों की बड़ी भारी फ़ौज खड़ी होने जा रही है। बड़े ग्रुप के यहाँ बहुत ही कम होटल हैं, जो इस धक्के को अधिक से अधिक तीन महीने तक सम्हाल लेंगे, बाक़ी का हाल अभी से बुरा होने लगा है।
बता दें कि अधिकतर होटल स्थानीय उत्तराखंडियों ने लीज़ पर ले रखे हैं, उनकी हालत तो और भी खराब है, उन्हें मालिकों का लीज़ रेंट भी देना है, OYO पहले ही दिवालियेपन की कगार पर है, उस पर होटल/मोटल मालिकों का पहले से ही काफ़ी बकाया है। मई और जून में कश्मीर की स्थिति के कारण यहाँ पर्यटक़ों के आने की सम्भावना थी, क्योंकि उस समय स्कूलों की भी छुट्टियाँ हो जाती हैं, कोरोनो ने उन सम्भावनाओं को ख़त्म कर दिया है। टलों के सामने सबसे बड़ी समस्या इस विश्वास को बरकरार रखने की होगी कि उसमें ठहरने वाले यात्री का जीवन सुरक्षित है, कोरोना, उस विश्वास को तोड़ चुका है।
सबसे अधिक भरोसा धार्मिक यात्रा का था, जो कि ख़तरे में पड़ती दिखाई दे रही है। इस क्षेत्र में काम करने वाले हमारे उत्तराखंडी भाई पूरे विश्व में फैले हैं और आज देश-दुनिया की स्थिति कोई अच्छी नहीं है, अगर वे सब अपने गाँव-घर वापस आ गये तो क्या होगा? राज्य बनने के बाद राज्य में होटलों की बाढ़ सी आ गयी है। अस्थायी राजधानी में 2000 से पहले गिने-चुने होटल/रेस्टोरेंट थे, आज तो बाढ़ आ गयी है। यही हाल पूरे प्रदेश का है। अधिकतर होटल/रेस्टोरेंट व्यवसायियों ने बैंकों से क़र्ज़ ले रखे हैं, नोटबंदी के नुक़सान से वे भरपाई भी नहीं कर पाये थे, नई आफ़त कोरोना लेकर आ गया है।
मेरा सरकार को सुझाव है कि वह केंद्र सरकार से बात करे, बैंकों की ऋण अदायगी पर एक वर्ष की रोक लगाये। राज्य सरकार भी बिजली-पानी व अन्य क़रों को एक वर्ष के लिये स्थगित करे। स्थानीय निकाय भी इसी तरह की सुविधा प्रदान करें। लोकडाउन में सुरक्षा चक्र का ध्यान रखते हुये, सरकार इस व्यवसाय की प्रतिनिधि संगठनों से बात-चीत कर भविष्य का रास्ता तलाश सकती है, इस व्यवसाय से जुड़े कई लोग तो बात-चीत में भयंकर अवसाद में लग रहे हैं। समय पर चेत जायेंगे तो आसन्न संकटों से बच जायेंगे।