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लोकतंत्र के चौथे स्तंभ पर माफियाओं का काला बादल, पत्रकारों की सुरक्षा क्यों नहीं?

लोकतंत्र के चौथे स्तंभ पर माफियाओं का काला बादल, पत्रकारों की सुरक्षा क्यों नहीं?

लखनऊ: प्रदेश में किसी भी सरकार ने पत्रकारों की सुरक्षा को लेकर ठोस कदम नही उठाया है। सरकारें आती-जाती रहीं लेकिन पत्रकारों की सुरक्षा की ओर किसी ने भी ध्यान नही दिया। कमाल की बात है कि जबतक राजनीतिक पार्टियां विपक्ष में रहेंगी तब तक उन्हें पत्रकारों की बड़ी चिंता रहती है, लेकिन सरकार बनते ही पत्रकारों को दूध में गिरी मक्खी की तरह निकाल दिया जाता है।

हालांकि योगी सरकार ने इस बार पत्रकारिता दिवस में दुर्घटना में दिवंगत पत्रकारों को सम्मान राशि भेंट की। इन सबके बीच माफिया पत्रकारों की जान के साथ खेल रहे हैं। कभी पुलिस हीलाहवाली करती है तो कभी सरकार मुकदमा दर्ज कर देती है। इसके बाद भी तमाम घटनाओं के बीच पत्रकार अपना काम करता रहेगा।

प्रत्रकारों की स्थिति

प्रदेश में पत्रकारों की क्या स्थिति है यह किसी से छिपा नही है और यह स्थिति कोई आज से नही हुई बल्कि हमेशा ही पत्रकार निशाने पर रहा है। वह चाहे किसी की भी सरकार क्यों न रही हो। यही कारण है कि पत्रकार यदि सरकार के खिलाफ लिखे तो एफआईआर, अपराधी के खिलाफ लिखे तो हत्या और न लिखे तो बिकाऊ। पत्रकारों की सुरक्षा के लिए न तो कोई कानून है और न ही इनकी आवाज उठाने के लिए संगठन। खुद को पत्रकारिता का महामहिम बताने वाले चंद लोग शायद ही कभी पत्रकारों के हित में कोई बात कही हो। वो तो भला हो गैर मान्यता प्राप्त पत्रकारों का जो रह-रह कर आवाज उठाते रहते हैं।

ऐसे में अब माननीय न्यायपालिका से ही उम्मीद है कि वह कोई आदेश जारी करें, नहीं तो ऐसे ही पत्रकारों की हत्या और पत्रकारों पर फर्जी मुकदमें होते रहेंगे। कोई बड़ी बात नही कि इसमें अगला नाम किसी और पत्रकार का हो! इतना ही नही जिन संस्थानों में पत्रकार नौकरी करता है, शायद ही वह कभी पत्रकार की पीड़ा के लिए आगे आया हो। यही सब कारण है कि आज पत्रकार कहीं से भी सुरक्षित नही है। उसके साथ कभी भी और कहीं भी कुछ भी हो सकता है।

कहने के लिए तो पत्रकारिता लोकतंत्र का चौथा स्तम्भ है। लेकिन यह अन्य तीनों स्तंभों व्यवस्थापिका, कार्यपालिका और न्यायपालिका के सापेक्ष कितना सुरक्षित है इसे आप पत्रकारों पर हुए हमलों से समझ सकते हैं। चौथा स्तम्भ कहा जाने वाला पत्रकार किस सुरक्षा में है यह बताने की जरूरत नही।

सुलभ की हत्या कोई पहला मामला नहीं

ताजा मामला प्रतापगढ़ में सुलभ श्रीवास्तव का है। वह अपने साथ होने वाली अनहोनी को लेकर सशंकित थे। उन्हें शराब माफिया से अपनी जान को खतरा था। एडीजी प्रयागराज और कप्तान को पत्र भी लिखा लेकिन सब ढाक के तीन पात…। इसी बीच रविवार की देर रात उनका शव सड़क पर मिला। संभावना जताई जा रही है कि माफियाओं ने ही उनकी हत्या की है। पोस्टमार्टम रिपोर्ट के मुताबिक शरीर पर चोट के निशान थे।

पत्रकारों के खिलाफ हुए महत्वपूर्ण घटनाक्रम
  • बीते साल पत्रकारों पर हुए हमलों की बात की जाए तो बलिया के दिवंगत पत्रकार रतन कुमार सिंह को भूला नहीं जा सकता है।
  • 19 जून को कानपुर के पत्रकार शुभम मणि त्रिपाठी की उन्नाव जिले में हत्या कर दी गई। वह खनन माफिया के खिलाफ आवाज बुलंद किए हुए थे।
  • साल 2019 के अक्टूबर में कुशीनगर जिले में हाटा कोतवाली क्षेत्र के सिकटिया गांव में रहने वाले स्थानीय पत्रकार राधेश्याम शर्मा की गला रेतकर हत्या कर दी गई थी।
  • साल 2019 के अगस्त महीने में सहारनपुर के एक पत्रकार और उसके भाई को कुछ अज्ञात लोगों ने गोली मार कर हत्या कर दी।
  • वाराणसी में संपादक सुप्रिया शर्मा और वेबसाइट की मुख्य संपादक के खिलाफ एफआईआर दर्ज हुई।
  • न्यूज वेबसाइट ‘द वायर’ के संपादक सिद्धार्थ वरदराजन पर भी उत्तर प्रदेश के अयोध्या में दो मुकदमें हुए। उन पर आरोप लगा, उन्होंने लॉकडाउन के बावजूद अयोध्या में होने वाले कार्यक्रम में सीएम योगी के शामिल होने खबर छापकर अफवाह फैलाई।
  • फतेहपुर जिले के पत्रकार अजय भदौरिया पर स्थानीय प्रशासन ने FIR दर्ज करा दी। बताया जाता है कि अजय भदौरिया ने एक नेत्रहीन दंपत्ति को लॉकडाउन में राशन से संबंधित समस्याओं का उल्लेख करते हुए जिले में चल रहे Community Kitchen पर सवाल उठाए थे।
  • वर्ष 2019 मिर्जापुर में मिड डे मील में धांधली पर समाचार लिखने वाले पत्रकार पर भी FIR दर्ज हुई।
प्रेस स्वतंत्रता में भारत की स्थिति

दुनिया भर में प्रेस की स्वतंत्रता के मामले में भारत का स्थान पहले भी काफी नीचे था, जो अब और तेजी से लगातार नीचे गिरता ही जा रहा है। 2009 में प्रेस फ्रीडम इंडेक्स में 180 देशों की सूची में भारत 105वें स्थान पर था। 2019 में यह गिर कर 142वें स्थान पर पहुंच चुका है। दुनिया भर के पत्रकारों और पत्रकारिता पर होने वाले हमलों पर नजर रखने वाले और उनके खिलाफ आवाज उठाने वाले पेरिस स्थित Reports Without Borders ने भारत के पत्रकारों को लेकर एक रिपोर्ट जारी की थी।

जिसमें उसने कहा, देश में न सिर्फ लगातार प्रेस की आजादी का उल्लंघन हुआ, बल्कि पत्रकारों के विरुद्ध पुलिस ने भी हिंसात्मक कार्रवाई की। इसके वार्षिक विश्लेषण के अनुसार World Press Freedom Index में 180 देशों में भारत 142वें स्थान पर है।

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