कुंवर जितेन्द्र प्रसाद उर्फ बाबा साहेब। रुहेलखंड की राजनीति में जरा सी भी समझ रखने वाले लोग इस नाम को ठीक से जानते और पहचानते हैं। शाहजहांपुर का यह राजनीतिक परिवार कांग्रेस की राजनीति में खासा दखल रखने के साथ नेहरू-गांधी परिवार के साथ अटूट संबंध भी रखता था।
2004 से 2014 तक केन्द्र में लगातार दो बार कांग्रेस की सरकार बनी। बाबा साहेब के बेटे कुंवर जितिन प्रसाद सरकार में दोनों बार अहम ओहदों पर रहे। वह राहुल गांधी के करीबी लोगों में गिने जाते थे। यानी कांग्रेस के राज में कोई ऐसा काम नहीं था जो उनके लिए असंभव हो। रुहेलखंड में वह अकेले मंत्री थे।
मगर, कहते हैं कि समय के साथ इंसान के विचार भी बदल जाते हैं। 2017 के विधानसभा चुनावों से जितिन प्रसाद और कांग्रेस के बीच चल रही खींचतान का नतीजा सोमवार को राजनीतिक तलाक के रूप में सामने आया। खांटी कांग्रेसी जितिन प्रसाद ने दिल्ली में भगवान ओढ़ा और हाथ का साथ छोड़कर भाजपाई हो गए।
आइए जानते हैं मोहभंग की कहानी
राहुल गांधी और जितिन प्रसाद दोनों ने अपना सक्रिय राजनीतिक कॅरियर 2004 से शुरू किया। वह हमेशा राहुल गांधी के खास दोस्तों में शुमार रहे। दोस्तों की इस मंडली में सचिन पायलट और ज्योतिरादित्य सिंधिया जैसा नाम शामिल थे। इन युवा चेहरों को कांग्रेस का भविष्य भी कहा जाता था।
2014 की हार के बाद शुरू हुआ मनमुटाव
2014 में देश की जनता ने कांग्रेस को सत्ता से बेदखल कर दिया। तब से दोस्तों की इस मंडली में मनमुटाव शुरू हो गया। कांग्रेस की युवा मंडली को सबसे अधिक दर्द इस बात का था कि राहुल उन्हें पार्टी में न सही जगह दिलवा पा रहे थे न सम्मान। लंबे इंतजार के बाद भी कुछ नहीं मिला तो राजनीतिक तलाक की बुनियाद पड़नी शुरू हो गई।
2017 और 2019 के चुनाव में खुलकर सामने आई तकरार
2017 के विधानसभा चुनाव से जितिन और कांग्रेस नेतृत्व के बीच की तल्खी खुलकर सामने आने लगी। जितिन टिकट वितरण से नाराज थे। नाराजगी इस कदर बढ़ गई कि 2019 के चुनाव से पहले उनके भाजपा में जाने की चर्चा थी। मगर, समय पर सकिय हुई कांग्रेस ने मामला संभाल लिया।
रुठों को मना नहीं पाया कांग्रेस नेतृत्व, शुरू हुआ बिखराव
चुनाव के बाद हालात संभले नहीं। युवा टीम को कांग्रेस को जो तरजीह देनी चाहिए थी, राहुल गांधी वह नहीं दिला पाए। नाराजगी बढ़ी तो सबसे पहले ज्योतिरादित्य सिंधिया ने भाजपा का दामन थामा। उसके बाद सचिन पायलट भाजपा में जाते-जाते रहे गए और अब जितिन प्रसाद ने भाजपा का दामन थाम लिया।
रुहेलखंड की 25 विधानसभाओं सीटों पर है बाबा साहेब के परिवार का प्रभाव
रुहेलखंड की 25 से अधिक विधानसभा सीटों पर बाबा साहेब के परिवार का दखल है। यही नहीं, जितिन प्रसाद वेस्ट यूपी की ब्राह्मण राजनीति का चेहरा भी हैं। अब देखना यह है कि भाजपा जितिन प्रसाद को क्या जिम्मेदारी देती है। ऐसे में जब भाजपा के केन्द्रीय और प्रदेश नेतृत्व के बीच खींचतान चल रही है, जितिन की भाजपा से दोस्ती क्या गुल खिलाती है, यह तो आने वाला वक्त ही बताएगा।
राजनीतिक सफर
जितिन प्रसाद के पिता जितेन्द्र प्रसाद (बाबा साहिब) प्रधानमंत्री राजीव गांधी और पीवी नरसिम्हाराव के राजनीतिक सलाहकार थे। वह 1995 में उत्तर प्रदेश कांग्रेस कमेटी के अध्यक्ष रहे। सोनिया गांधी के खिलाफ उन्होंने कांग्रेस अध्यक्ष का चुनाव लड़ा मगर राजनीतिक षडयंत्र के शिकार हो गए। अब बात जितिन प्रसाद की। जितिन प्रसाद ने अपनी पढ़ाई दून स्कूल से शुरू की। दिल्ली यूनिवर्सिटी से ग्रेजुएशन और इसके बाद एमबीए किया।
युवा कांग्रेस के सचिव पद की मिली जिम्मेदारी
जितिन प्रसाद को सबसे पहले युवा कांग्रेस के सचिव पद की जिम्मेदारी मिली। 2004 में वह अपने गृह जनपद शाहजहांपुर की लोकसभा सीट से चुनाव जीते। 2008 में वह केन्द्र में राज्यमंत्री बने। 2009 में वह धौरहरा लोकसभा से रिकॉर्ड मतों से जीते। केन्द्र में सड़क-परिवहन मंत्री, पेट्रोलियम राज्यमंत्री मंत्री, मानव संसाधन विकास राज्यमंत्री रहे। 2014 और 2019 के चुनाव में उन्हें हार का स्वाद चखना पड़ा। 2017 में वह तिलहर विधानसभा से चुनाव लड़े मगर 5000 वोट से हार गए।
अब भाजपा तय करेगी नई जिम्मेदारी
जितिन प्रसाद का राजनैतिक भविष्य क्या होगा, यह भाजपा को तय करना है। भाजपा उन्हें केन्द्र में साथ लेकर चलेगी या यूपी में कहीं फिट करेगी। इसको लेकर कयासों का दौर शुरू हो गया है। सोशल मीडिया पर कुछ लोग उन्हें बधाई दे रहे हैं तो कुछ भाजपा का हाथ थामने के लिए कोस रहे हैं।