बिहार चुनाव में देखने को मिलेगा दिलचस्प मोड़, पूर्व मुख्यमंत्री जीतनराम माझी के एनडीए में शामिल होने पर क्या असर पड़ेगा यह तो भविष्य के गर्भ में है।
- भारत खबर || पटना
बिहार की राजनीति में एक नया घटनाक्रम देखने को मिला है और यह बड़ा दिलचस्प है और अपने आप में अनोखा भी लालू प्रसाद यादव की राजद को तिलांजलि देकर बिहार के पूर्व मुख्यमंत्री जीतन राम मांझी ने एनडीए का हाथ थामा है। आपको बता दें कि पूर्व मुख्यमंत्री जीतन राम मांझी की पार्टी हिंदुस्तान आवाम मोर्चा इस साल होने वाले विधानसभा चुनाव में राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन यानी एनडीए के साथ चुनाव लड़ने का ऐलान कर चुकी है।
इसके बाद से राष्ट्रीय जनता दल में काफी निराशा हाथ लगी है। चूंकि बिहार में दलितों के सबसे बड़े चेहरा के रूप में पूर्व मुख्यमंत्री जीतन राम मांझी नजर आ रहे थे लेकिन महागठबंधन का साथ छोड़ते हुए या यूं कहें पीछा छुड़ाते हुए जीतन राम मांझी एनडीए का हिस्सा होने का ऐलान कर चुके हैं।
‘हम’ इससे पहले भी एनडीए के साथ थी, लेकिन बाद में आरजेडी नेतृत्व वाले महागठबंधन का हिस्सा बन गई थी। बिहार की सियासत में खुद को दलित नेता के रूप में पेश करने वाले जीतन राम मांझी ने 2018 में एनडीए को छोड़कर महागठबंधन का दामन थाम लिया था और अब महागठबंधन से अलग हो चुके हैं।
पार्टी के प्रवक्ता दानिश रिजवान ने कहा है कि विकास के लिए वह एनडीए का हिस्सा बन रहे हैं और यह बिना शर्त गठबंधन है यानी किसी भी सीट के लिए कोई मुद्दा नहीं है। हमारे लिए विकास ही मुख्य मुद्दा होगा और हम के किसी भी पार्टी में विलय के प्रश्नों को पूरी तरह से निराधार कहा जा सकता है, हम स्वतंत्र रूप से गठबंधन कर चुनाव लड़ेंगे।
पिछली मुलाकात से अटकलें हो गईं थी तेज
आपको बता दें कि पिछले दिनों वर्तमान मुख्यमंत्री नीतीश कुमार से पूर्व मुख्यमंत्री जीतन राम मांझी ने मुलाकात की थी दोनों के बीच लंबी बातचीत हुई थी। हालाकि उस वक्त माझी ने अपने पत्ते नहीं खोले थे, लेकिन इतना तय माना जा रहा था कि पूर्व मुख्यमंत्री और वर्तमान मुख्यमंत्री की जोड़ी हिट हो सकती है। अब हुआ भी वही, हालाकि बिहार चुनाव में मुख्य भूमिका निभाने वाले जन अधिकार पार्टी के नेता पप्पू यादव से भी जीतन राम मांझी की नज़दीकियां चर्चा का विषय बनी हुई थी।
विरोधाभास पर छोड़नी पड़ी थी कुर्सी
आपको बता दें कि जिस वक्त जीतन राम मांझी बिहार के मुख्यमंत्री थे उस समय एनडीए का हिस्सा रहते हुए नीतीश कुमार से उनकी बनी नहीं थी और वह नीतीश कुमार से अलग हो गए थे। इस दौरान उन्हें इस्तीफा भी देना पड़ा था मुख्यमंत्री के पद से। इसके बाद वह लगातार लालू प्रसाद यादव की पार्टी यानी महागठबंधन के साथ राजनीतिक चुनाव में दांव आजमा रहे थे, लेकिन हर ओर से खाली हाथ होने पर एक बार फिर से एनडीए का रुख किया है। देखना यह है कि आने वाले चुनाव में बिहार में किस तरह के समीकरण बनते हैं? क्या जीतन राम मांझी को इसका कोई लाभ मिल पाता है या नहीं।
राजद नेता तेजस्वी यादव ने हालांकि इस पर किसी तरह का कोई विचार नहीं व्यक्त किया है और ना ही किसी अन्य पार्टी की तरफ से कोई गंभीर प्रतिक्रिया आई है। माना जा रहा है कि चुनावी समीकरण में जीतन राम मांझी बहुत ज्यादा हस्तक्षेप ना होना इस बात को इंगित करता है कि बिहार चुनाव इस बार विकास की राजनीति पर होगा।