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पर्यटकों के लिए तैयार हुआ जानकीसेतु पुल, सीएम त्रिवेंद्र सिंह रावत करेंगे लोकार्पण

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देहरादून। उत्तराखंड की उन्नति के लिए प्रदेश के मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र सिंह रावत द्वारा कई तरह के प्रोजेक्ट तैयार किए जा रहे हैं। जिनके पूरा होने के बाद उत्तराखंड एक मुकाम हासिल करेगा। उत्तराखंड वैसे भी धार्मिक स्थलों की वजह से पूरे विश्व में छाया रहता है। इसके साथ ही अब उत्तराखंड में टिहरी-पौड़ी जिले की सीमा को जोड़ने वाले जानकीसेतु पुल के खुलने का इंतजार खत्म हो गया है। आज दोपहर 12 बजे प्रदेश के मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र सिंह रावत ने जानकीसेतु का लोकार्पण किया। इसके साथ ही लोक निर्माण विभाग निर्माण खंड नरेंद्रनगर के अधिशासी अभियंता मोहम्मद आरिफ खान ने बताया कि पुल के लोकार्पण के लिए विभाग की ओर से समुचित व्यवस्थायें दुरुस्त कर दी गई हैं। पुल के खुलने से पर्यटकों और स्थानीय लोगों को सहूलियत होगी।

इस वजह से हुआ देर में हुआ जानकीसेतु का लोकार्पण-

बता दें कि वर्ष 2014 में मुनिकीरेती पूर्णानंद से स्वर्गाश्रम वेद निकेतन के लिए गंगा के ऊपर लगभग 49 करोड़ की लागत से करीब 346 मीटर लंबे जानकीसेतु का निर्माण हुआ है। जानकीसेतु पुल तीन हिस्सों में बंटा हुआ है। बाएं और दाएं ओर का हिस्सा दोपहिया वाहनों की आवाजाही के लिए बना हुआ है। बीच के हिस्से में पर्यटक और स्थानीय लोग पैदल आवाजाही करेंगे। प्रदेश के मुख्यमंत्री के सामने विभाग की छवि धूमिल न हो इसके लिए बृहस्पतिवार को नगरपालिका मुनिकीरेती, लोनिवि और सिंचाई विभाग समेत विभिन्न विभागीय अधिकारी व्यवस्थाओं को चाकचौबंद करने में जुटे रहे। नगरपालिका प्रशासन की ओर से भी आस्था पथ पर लगी स्ट्रीट लाइटों को दुरुस्त किया गया। सिंचाई विभाग ने भी आस्था पथ और घाटों पर जल रहे निर्माण को दुरुस्त करने में कोई कसर नहीं छोड़ी है। इसके साथ ही कांग्रेसी नेता हिमांशु बिजल्वाण ने बताया कि जानकीसेतु राजनीति की भेंट चढ़ा है। नरेंद्रनगर विधायक और कृषि मंत्री सुबोध उनियाल और यमकेश्वर विधायक रितु खंडूड़ी भूषण के कारण पुल का लोकार्पण नहीं हो रहा था। दोनों विधायक की आपसी खींचतान के कारण पुल के लोकार्पण में इतना समय लगा है।

जानकीसेतु बनने से क्या लाभ- शिवमूर्ति कंडवाल

नगर पालिका मुनिकीरेती के पूर्व अध्यक्ष शिवमूर्ति कंडवाल ने कहा कि पूर्णानंद-वेदनिकेतन पर इस झूला पुल के बनने से कोई लाभ नहीं हैं। कहा तीर्थनगरी में पहले ही लक्ष्मणझूला और रामझूला दो पुल हैं, उसके बाद अब तीसरा झूला पुल बना है, इससे क्षेत्रवासियों को क्या लाभ होगा। क्षेत्रवासी और पर्यटक तो चौपहिया वाहन पुल बनने की बाट देख रहे थे। इसके आगे उन्होंने कहा कि जानकीसेतु का जब आपातकाल में उपयोग में नहीं आना है तो इस पुल का क्या लाभ है। शासन-प्रशासन को इस पुल को चौपहिया वाहन के लिए बनाना था। आपातकाल में पहाड़ी क्षेत्रों से एंबुलेंस सेवा तो इस पर आवाजाही करती। जबकि लोनिवि ने इस पुल को चौपहिया वाहन के लिए सक्षम बताया है। जिस हिसाब से झूला पुल पर करीब 49 करोड़ रुपये खर्च हुए हैं, इसका कोई लाभ नहीं है।

 

 

 

 

 

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