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क्या मुख्यमंत्री के जनता दरबार की कोई गरिमा नहीं, उत्तरा का व्यवहार जायज था बड़ा सवाल ?

UTTARA क्या मुख्यमंत्री के जनता दरबार की कोई गरिमा नहीं, उत्तरा का व्यवहार जायज था बड़ा सवाल ?

देहरादून। सूबे में बीते 28 तारीख को सीएम त्रिवेन्द्र सिंह रावत के जनता दरबार में घमासान हुआ। पहली बार सूबे में किसी मुख्यमंत्री के दरबार में एक आम नागरिक की हैसियत से दाखिल हुई शिक्षिका ने उसकी तकलीफ सुन रहे मुख्यमंत्री के सवाल पर पहले तो जबाव ऐसा दिया जिसको सुनकर मुख्यमंत्री भी दंग रह गए।

UTTARA क्या मुख्यमंत्री के जनता दरबार की कोई गरिमा नहीं, उत्तरा का व्यवहार जायज था बड़ा सवाल ?

क्या यही जबाव था मुख्यमंत्री के प्रश्न का?

मोहतरमा अपनी आपबीती बताए हुए, बेटी बचाओ बेटी पढ़ाओ अभियान का जिक्र करने लगी। अपने-आपको गया गुजारा बताने से नहीं चूकीं। जब उनसे सवाल पूछा गया कि आपने अपनी नियुक्त के समय बांड भरा था। तब नहीं देखा था, कि आपकी नियुक्त कहां और क्या है। जो जबाव ने उत्तरा ने कहा कि बांड भरा था, लेकिन वनवास के लिए नहीं।

अब एक मुख्यमंत्री जो कि प्रदेश का मुखिया है। उससे इस लहजे में बात करना कितना उचित है। वो भी जनता दरबार में लिहाजा पहले सीएम ने उनको शालीनता का पाठ पढाया फिर उन्होने जबाव में तुरंत ही कहा कि उनको शिक्षक का धर्म और कर्तव्य मालूम है।

जनता दरबार में सीएम को अपशब्दों से सम्बोधित करना जायज?

अब भरे जनता दरबार में आखिर उत्तरा ने सीएम त्रिवेन्द्र सिंह रावत पर अपशब्दों का प्रयोग भी किया। लिहाजा संवैधानिक दायरे में जो कार्रवाई होनी थी, वो की गई। उत्तरा के इस प्रकरण को लेकर विपक्ष के निशाने पर सरकार और भाजपा आ गई। लेकिन किसी ने ये नहीं सोचा कि उत्तरा का व्यवहार कैसा था। विपक्ष का कहना था कि सरकार के रवैय के चलते व्यवहार ऐसा था।

एक बार है साल 2012 मार्च से 2017 मार्च सूबे में कांग्रेस की सरकार थी। उस वक्त उत्तरा का आगमन हरीश रावत के सामने हुआ था। समस्या उसी वक्त खत्म की जा सकती थी। लेकिन इस प्रकरण को कांग्रेस की सरकार ने आश्वासन का पुलिंदा देकर जीवित रखा।

उत्तरा की समस्या की जड़ है कई वर्षों और की सरकारों से बनी हुई

अगर उत्तरा की समस्या सुने तो साल 2015 में उसके पति की मौत हो गई। मतलब साफ है, कि उत्तरा के सामने परिवार देखने की समस्या साल 2015 से ही आ गई। लेकिन इस वक्त आज के विपक्ष जो सरकार में थे उनका ध्यान ना गया। आज उत्तरा को लेकर सड़क पर उतर रही कांग्रेस की देने तो नहीं उत्तरा की ये समस्या। दूसरा इस प्रकरण में मुख्यमंत्री या फिर प्रशासन भी उत्तरा की मदद नहीं कर सकता, वजह साफ है। उत्तरा की नियुक्त ही उत्तरकाशी कॉडर में है, मतलब अगर तबादला होगा तो वह उत्तरकाशी में ही किया जा सकता है। लेकिन उत्तरा चाहती हैं, कि उनका ट्रॉस्फर देहरादून में किया जाए। जिसके लिए नियमों को ताक पर रखना होगा। इससे आने वाले भविष्य में गंभीर समस्या पैदा हो सकती है।

पहले भी कर चुकी हैं ऐसा ही कारनामा

उत्तरा का ये प्रकरण कोई नया नहीं है। वो इससे पहले रमेश पोखरियाल निशंक और हरीश रावत के समय में भी इसी तरह का उत्पात कर चुकी हैं। निशंक के समय में भी उत्तरा इसी अभद्रता के चलते निलंबित भी की गई थी। हऱीश रावत ने मौके की नजाकत को भांप लिया था। तो उत्तरा को संवेदना और आश्वासन का पुलिंदा देकर शांत कर दिया था।

मतलब साफ है इस मामले में मुख्यमंत्री त्रिवेन्द्र सिंह रावत को ही जिम्मेदार मानता सही ना होगा। क्योंकि इस कांड के वास्तविक कर्णधार तो कई बड़े लोग और दूसरे हैं। बस उत्तरा को लेकर अब विपक्ष के साथ दूसरे भी सीएम त्रिवेन्द्र सिंह रावत पर निशाना साधने में लगे हैं। लेकिन हकीकत से सभी अलग-अलग हैं।

 

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