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आइए करें कल्याण सिंह की जेल डायरी की पड़ताल

Kalyan Singh: जो कहा था वह किया, रामलला के लिए मुख्यमंत्री का पद भी दांव पर लगाया

Brij Nandan

लखनऊ। 25 जून 1975 यह तिथि इतिहास के पन्नों में प्रमुखता से दर्ज है। यह वह तिथि थी जब तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने स्वयं के खिलाफ उठ रही आवाज को दबाने के लिए देश में आपातकाल लागू कर दिया था। देशभर में लाखों लोगों की गिरफ्तारियां हुई। सरकार के खिलाफ जिसने भी मुंह खोला, उसे सलाखों के अंदर डाल दिया गया। कल्याण सिंह को मीसा के तहत जेल भेजा गया। कल्याण सिंह 1967 में अतरौली से चुनाव जीतकर विधानसभा पहुँचे थे। वह 1967 से 1980 तक विधानसभा के सदस्य रहे। इस बीच देश में आपातकाल के समय कल्याण सिंह 19757-76 में 21 माह जेल में रहे। इस बीच कल्याण सिंह को अलीगढ़ और वाराणसी की जेल में रखा गया।

देश व समाज के लिए कष्ट सहन करने में कल्याण सिंह को आनंद की अनुभूति होती थी

देश व समाज के लिए कष्ट सहन करने में कल्याण सिंह को आनंद की अनुभूति होती थी। क्योंकि जेल जीवन के दौरान कष्टों का जिक्र उनके किसी पत्र में नहीं मिलता है। उन्होंने जेल से एक पत्र लिखा – ‘‘संघर्ष लम्बा है। अधिक मूल्य चुकाने पड़ेंगे। वातावरण अनिश्चित है। वर्तमान मीसा की अवधि 25 जून 1976 तक है। हो सकता है कि तब तक सुलझाव हो जाये और सभी लोग जेलों से मुक्त हो जायें। परन्तु निश्चयपूर्वक कुछ भी कह पाना कठिन है। लोकसभा चुनाव फिलहाल एक वर्ष के लिए स्थगित कर दिये गये हैं। यदि मीसा की अवधि बढ़ाने का संशोधन पारित हुआ तो कुछ कह पाना कठिन है।

आगे वह लिखते हैं कि मैं स्वाभिमान पूर्वक अपने व्यवहार से एक मान्यतापूर्ण स्थान बनाकर रह रहा हूं। यहां पर विभिन्न जिलों तथा विभिन्न संस्थाओं के कार्यकर्ता हैं। अब कुल मिलाकर तीन बैरकों में 75 राजनैतिक कैदी बन्द हैं। अपनी-अपनी दिनचर्या में सबसे अपने-अपने अनुसार व्यस्त रहते हैं। यूं ही दिन पर दिन व्यतीय हो रहे हैं। मेरी ओर से आप सब निश्चिंत रहें। मैं पूर्णतया स्वस्थ हूं प्रसन्न हूं ठीक हूं, मगन हूं। जीवन की दिनचर्या का क्रमानुसार बड़े व्यवस्थित रूप से चला रहा हूं। वजन 60 किलो पर रोक दिया है। इसी प्रकार लगभग सभी पत्रों में उन्होंने देश व समाज की चिंताएं प्रकट की हैं।

अपने एक पत्र में कल्याण सिंह ने पत्र प्राप्ति में विलंब होने पर लिखा कि जेल की इन दीवारों के बीच आपके पत्र मुझे बहुत सहारा देते हैं। सचमुच अपनों से दूर हों और पत्र का इंतजार हो तो जरा सा भी विलम्ब कष्टकारी लगता है।

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