इमरान खान आज भारत की बड़ाई कर रहे हैं। यह और बात है कि पीएम रहते हुए उन्होंने भारत को फंसाने की हर तिकड़म की। लेकिन, मोदी सरकार की विदेश नीति के आगे उनकी सभी चालें फेल हो गईं।
भारत के लिए जो गड्ढा इमरान खान ने खोदा, अंत में उसी में वह गिर गए। पीएम मोदी की बराबरी करते-करते उनकी खुद की कुर्सी चली गई।
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इमरान खान की ख्वाहिश
एक इंटरव्यू में इमरान खान ने एक ख्वाहिश जाहिर की थी। उन्होंने कहा था कि वह टीवी पर नरेंद्र मोदी के साथ डिबेट करना चाहते हैं। यह उनकी दिली हसरत है। अफसोस! उनकी यह हसरत हसरत ही रह गई। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की बराबरी करते-करते वह अपनी जगह से ही निपट गए।
इमरान ने हिंदुस्तान के खिलाफ जहर उगला
जाते-जाते भले ही इमरान खान भारत और उसकी विदेश नीति का बखान कर रहे हों, लेकिन सच यह है कि अपने कार्यकाल के दौरान वह ज्यादातर समय पीएम मोदी और हिंदुस्तान के खिलाफ जहर उगलते रहे। वह हर साजिश रचते रहे जिससे भारत को नुकसान हो और उन्हें हंसने का मौका मिले। हालांकि, यह नौबत नहीं आई।
भारत को ‘दुश्मन’ देश की तरह ट्रीट किया
इमरान ने भारत को ‘दुश्मन’ देश की तरह ट्रीट किया और उसे फंसाने के लिए जाल बुनते रहे। यह अलग बात है कि अंत में वह अपने ही जाल में फंस गए। यह बात हर क्षेत्र के लिए कही जा सकती है। राजनीतिक, आर्थिक से लेकर रणनीतिक क्षेत्र तक उन्होंने भारत को गड्ढे में गिराने की नाकाम कोशिश की। दुनिया के हर मंच पर उन्होंने भारत को बदनाम करने की तकरीरें कीं। लेकिन, सब की सब सुपर-डुपर फ्लॉप साबित हुईं। वहीं, प्रधानमंत्री मोदी ने बिना इमरान और पाकिस्तान का नाम लिए उन्हें ढेर कर दिया।
भारत से नसीहत लेने की बार-बार सीख दी
‘कप्तान’ के खिलाफ नेशनल असेंबली में अविश्वास प्रस्ताव को हरी झंडी दे दी गई। इसके बाद पाकिस्तान के पीएम पद से उनके जाने का रास्ता भी साफ हो गया। रात को ही उन्होंने प्रधानमंत्री आवास से अपना बोरिया-बिस्तर समेट लिया। जाते-जाते वह अपनी अवाम को भारत से नसीहत लेने की बार-बार सीख भी देते रहे। इमरान ने खुलकर मान लिया कि भारत पाकिस्तान से कहीं अव्वल देश है।
मरान के कबूलनामे का मतलब
पाकिस्तान के पीएम का यह कबूलनामा हर लिहाज से सही भी है। इसको कई कसौटियों पर तौल सकते हैं। शुरुआत उन राजनीतिक स्थितियों से करते हैं जब इमरान ने पाकिस्तान की कमान अपने हाथों में ली थी। वह लोगों को नए पाकिस्तान का सपना दिखाकर पीएम पद की कुर्सी पर बैठे थे। उन्होंने जनता को गरीबी और गुरबत से बाहर निकालने का वादा किया था। देश का कर्ज उतार देने की बात कही थी। आर्थिक अपराधियों को जेल में ठूस देने का दम भरा था।
अच्छे रिश्ते बनाने में कोई गंभीरता नहीं दिखाई
भारत से अच्छे रिश्ते बनाने में उन्होंने कोई गंभीरता नहीं दिखाई। अलबत्ता, पुलवामा के जवाब में बालाकोट के हमले के बाद दोनों देशों के रिश्ते बिगड़ते ही चले गए। पुलवामा हमले के बाद ही भारत ने ठान ली थी कि वह पाकिस्तान को अलग-थलग कर देगा। भारतीय डिप्लोमेसी की जीत का सबूत तो उसी समय मिल गया था जब पाकिस्तान को हमारे शूरवीर अभिनंदन को दो दिनों के भीतर लौटाना पड़ा था।
भारत से दुश्मनी पड़ी भारी
भारत से दुश्मनी बांधकर पाकिस्तान अपनी हर पॉलिसी बनाने लगा। चीन के साथ उसने अपनी दोस्ती बढ़ा ली। उसके सामने पाकिस्तान बिछ गया। रूस से दोस्ती बढ़ाने की कवायद के पीछे भी मंशा भारत को घेरने की ही थी।
बदलती दुनिया को नहीं भांप पाए इमरान
दुनिया बदल चुकी थी। चीन और अमेरिका में ट्रेड वॉर छिड़ चुका था। पाकिस्तान का चीन के लिए इतना लगाव सुपरपावर अमेरिका को अखर रहा था। अफगानिस्तान में इमरान ने जिस तरह की दोगुली पॉलिसी अपनाई उसका भी अमेरिका को एहसास हो चुका था। वहीं, अमेरिका की चीन को एशिया प्रशांत में चेक करने की चाहत भारत को उसके करीब ले गई। दोनों देशों के विचार कई मसलों पर काफी मिलते जुलते थे। चीन के साथ टेंशन ने भी भारत की अमेरिका साथ करीबी को बढ़ाया। अमेरिका को भी साफ दिख गया कि क्षेत्र में अगर कोई चीन को टक्कर दे सकता है तो वह सिर्फ भारत ही है।
भारत को घेरने के चक्कर में खुद घिरा
भारत को घेरने के ही चक्कर में जब रूस के साथ इमरान ने घनिष्ठता बढ़ाने की कोशिश की तो उसी समय यूक्रेन हमला हुआ। इस नाजुक मौके पर भारत ने अपने दोस्त रूस को अकेला नहीं छोड़ा। लेकिन, उसने अमेरिका और पश्चिमी देशों के साथ बने अच्छे रिश्तों को भी ताक पर नहीं रख दिया। वहीं, इमरान खान यहां पूरी तरह फंस गए। चीन और रूस की खातिर उन्होंने अपने बेहद पुराने दोस्त की दुश्मनी मोल ले ली। और तो और इमरान ने अमेरिका के साथ रिश्तों के सुधरने की भी कोई गुंजाइश नहीं छोड़ी।
जिस तरह से उन्होंने अपनी सरकार गिरने के पीछे अमेरिकी साजिश होने की बात कह दी, उससे दोनों देशों के रिश्ते अब शायद ही कभी पुराने जैसे हो पाएं।