श्रीलंका की इकोनॉमी इन दिनों बेहद बुरे दौर से गुजर रही है। हालात इतने खराब हो चुके हैं कि खाने पीने की जरूरी चीजों की भी किल्लत हो चुकी है।
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पेट्रोल डीजल को लेकर भी यही हाल है। यहां तक कि श्रीलंका सरकार के सामने आर्थिक आपातकाल लगाने के साथ-साथ नौबत यहां तक आ गई है कि खाने पीने की चीजें और जरूरी सामान बांटने के लिए सेना को लगाया गया है। इसके साथ-साथ श्रीलंका का विदेशी मुद्रा भंडार भी खत्म होने की कगार पर है।
चीनी के मकड़जाल में श्रीलंका हो गया बर्बाद
आइए आपको 5 पॉइंट में समझाते हैं कि श्रीलंका इतने बुरे संकट में कैसे फंस गया। दुनिया भर के विशेषज्ञ जब चीन की कर्ज जाल नीति के बारे में बताते हैं, तो श्रीलंका को उसमें नजीर के तौर पर शामिल किया जाता है। श्रीलंका ने चीन से 5 बिलियन से भी ज्यादा का कर्ज लिया हुआ है। इसके अलावा श्रीलंका ने भारत और जापान जैसे देशों के अलावा आईएमएफ जैसे संस्थानों से भी कर लिया हुआ है। श्रीलंका के ऊपर अप्रैल 2021 तक कुल 35 बिलीयन डॉलर का विदेशी कर्ज था।
टूरिज्म सेक्टर हो गया तबाह
श्रीलंका की इकोनॉमी में टूरिज्म सेक्टर अहम रोल अदा करता है। आंकड़ों के मुताबिक श्रीलंका की जीडीपी में टूरिज्म सेक्टर 10 प्रतिशत का योगदान देता है। कोविड महामारी की शुरुआत के बाद लगभग 2 साल से यह सेक्टर पूरा तबाह है। श्रीलंका में भारत, ब्रिटेन और रूस से सबसे ज्यादा लोग घूमने आते हैं। महामारी के चलते पाबंदियों की वजह से इनकी आमद बंद हो गई। अभी बिगड़े हालात में कई देश ने अपने नागरिकों को श्रीलंका की यात्रा नहीं करने की सलाह देने लगे हैं।
गिरता विदेशी मुद्रा भंडार
3 साल पहले श्रीलंका के पास 7.5 बिलियन डॉलर का विदेशी मुद्रा भंडार था। जब वहां नई सरकार बनी थी। श्रीलंका की मुद्रा भंडार में तेज गिरावट आई और जुलाई 2021 में यह महज 2.8 बिलियन डॉलर रह गया था। पिछले वर्ष नवंबर तक गिरकर यह 1.58 बिलियन डॉलर तक आ गया था। हालात यह हैं कि अब श्रीलंका के पास विदेशी कर्ज की किश्त चुकाने लायक भी फॉरेक्स रिजर्व नहीं बचा है। हाल ही में आईएमएफ ने कहा है कि श्रीलंका की अर्थव्यवस्था दिवालिया होने की कगार पर है।
श्रीलंका सरकार ने जैविक खेती पर दिया जोर
श्रीलंका की सरकार ने उर्वरक और कीटनाशकों के इंपोर्ट पर बैन लगा दिया था और किसानों को 100 प्रतिशत जैविक खेती करने का फैसला लागू कर दिया। अचानक हुई इस तब्दीली ने ही श्रीलंका के एग्रीकल्चर सेक्टर को पूरी तरह बर्बाद कर दिया। एक अनुमान के मुताबिक सरकार के इस फैसले के चलते एग्रीकल्चरल प्रोडक्शन आधा हो गया है। हालात यह है कि देश में चावल और चीनी की भी कमी हो गई है। इन सबके ऊपर अनाज की जमाखोरी से परेशानी और बढ़ गई है।
श्रीलंका अनाज के लिए भी आयात पर निर्भर है
श्रीलंका की परेशानी जो इतनी गंभीर बनी उसमें एक कारण यह भी है कि श्रीलंका आयात पर बहुत ज्यादा निर्भर है। चीनी, दाल, अनाज जैसी जरूरी चीजों के लिए भी श्रीलंका आयात पर निर्भर है। फर्टिलाइजर बैन ने इसे और गंभीर बनाने में योगदान दिया।
श्रीलंका की चुनौतियां रूस और यूक्रेन के बीच चल रहे युद्ध ने भी बढ़ाई क्योंकि वह चीनी, दाल और अनाज आदि के मामले में दो देशों पर निर्भर है। जंग शुरू होने के बाद इनकी कीमतें भी आसमान छू रही हैं। दूसरी तरफ श्रीलंका के पास आयात की गई चीजों का बिल भरने के लिए भी जरूरी मुद्रा भंडार बचा नहीं बचा है।