6 महीने के इंतजार के बाद दोबारा बाबा केदारनाथ के कपाट खोल दिए गए हैं। कोरोना महामारी के इस दौर में अभी भक्तों को सार्वजनिक तौर पर केदारनाथ आने की अनुमति नहीं है।
बता दें कि मंदिर के कपाट 6 महीने बंद रहते हैं और केवल 6 महीनों के लिए ही खुलते हैं। इस मंदिर से जुड़ी महाभारत के पांडवों की कथा के बारे में आज हम आपको बताएंगे।
मंदिर से जुड़ी पांडव कथा:
केदारनाथ मंदिर निर्माण की कथा महाभारत के 5 पांडवों से जुड़ी हुई है। कथाओं और मान्यता के मुताबिक महाभारत के युद्ध को जीतने के बाद पांडवों को इस बात का दुख था कि उनके द्वारा उन्हीं के भाइयों का वध किया गया है। इस पाप की ग्लानि पांडवों को परेशान कर रही थी। इस पाप से मुक्ति का साधन खोजते हुए पांडव काशी यानि वाराणसी पहुंचे थे।
मान्यता के अनुसार जब पांडवों के आने की जानकारी भोलेनाथ को हुई तो वो उनसे नाराज होकर केदारनाथ चले गए। पाप से मुक्ति पाने के लिए पांडव भी उनके पीछे-पीछे केदारनाथ पहुंच गए। फिर भगवान शिव ने पांडवों से बचने के लिए बैल का रूप धारण कर बैल की झुंड में शामिल हो गए।
ठीक इसी वक्त भीम ने विकराल रूप धारण किया और दोनों पहाड़ों पर पैर रखकर खड़े हो गए। सारे पशु भीम के पैरों के नीचे से निकले लेकिन भगवान शिव अंतर्ध्यान होने से पहले भीम ने भोलेनाथ की पीठ पकड़ ली। पांडवों की इस इच्छाशक्ति को देखकर वो खुश हुए उन्हें दर्शन दिए। इसके बाद पांडव इस पाप से मुक्त हुए।
कहा जाता है कि इसके बाद पांडवों यहां पर केदारनाथ के मंदिर का निर्माण करवाया। जिसमें आज भी बैल के पीठ की आकृति-पिंड के रूप में पूजा की जाती है।
6 महीने होते हैं दर्शन
भगवान केदारनाथ के दर्शन के लिए मंदिर 6 महीने ही खुलता है, 6 महीने बंद रहता है। इस स्थान पर बर्फबारी के कारण ऐसा किया जाता है। यह मंदिर वैशाखी के बाद खोला जाता है और दीपावली के बाद पड़वा {परुवा तिथि} को बंद किया जाता है।
6 महीने जलती है ज्योति
जब 6 महीने का समय पूरा होता है तो मंदिर के पुजारी इस मंदिर में एक दीपक जलाते हैं। जो कि अगले 6 महीने तक जलता रहता है। 6 महीने बाद जब यह मंदिर खोला जाता है तब यह दीपक जलता हुआ मिलता है।
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