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यें थी श्री राम की बड़ी बहन इसलिए त्याग दिया गया था

23 4 यें थी श्री राम की बड़ी बहन इसलिए त्याग दिया गया था

नई दिल्ली। हिंदु धर्म में महाकाव्य रामायण में मर्यादा पुरुषोत्तम श्री राम के जीवन को बहुत करीबी से दिखाया गया हैं। जिसमें उनके जीनव से जुड़ी छोटी से छोटी और बड़ी से बड़ी बात का जिक्र किया गया हैं। लेकिन आज हम आपकों राम से जुड़ी एक ऐसे रहस्य के बारें में बताने जा रहे हैं जो आपने शायद ही कभी किसी से सुना हो…सभी यें बात जानते हैं कि श्री राम चार भाई थे। लक्ष्मण, भरत और शत्रुघन जिसका रामायण में भली भांति जिक्र किया गया हैं। रामायण में राम जी का सीता जी से विवाह और वनवास से लेकर रावण को मृत्यु तक पहुंचाना इन सभी बातों से हम भली भाँती परिचित है।

23 4 यें थी श्री राम की बड़ी बहन इसलिए त्याग दिया गया था

 

किंतु आज भी उनसे जुड़ी कुछ ऐसी बातें हैं जिसे शायद ही आपने सुना या पढ़ा होगा। आज हम आपको प्रभु श्री राम की बहन के बारे में बताने जा रहे हैं जी हां…. बहुत ही कम लोग यह जानते हैं कि राम, लक्ष्मण, भरत और शत्रुघन से बड़ी उनकी एक बहन भी थी। कौन थी श्री राम की बड़ी बहन और क्या हैं श्री राम की बड़ी बहन के जीवन का रहस्य आइये जानते हैं। जैसा कि रामायण में बताया गया हैं कि अयोध्या नरेश दशरथ की तीन पत्नियों हैं कौशल्या, सुमित्रा और कैकेयी।

कौशल्या अयोध्या नरेश दशरथ की वो पत्नि हैं जिन्होनें श्री राम को जन्म दिया था लेकिन क्या आपके पता हैं कि कौशल्या द्रारा श्री राम को जन्म देने से पहले कौशल्या ने श्री राम से पहले एक पुत्री को जन्म दिया था जिसका नाम शांता था। जो अत्यंत सुन्दर और सुशील कन्या थी। इसके अलावा वह वेद, कला तथा शिल्प में पारंगत थीं। कहते हैं राजा दशरथ को अपनी इस होनहार पुत्री पर बहुत गर्व था। फिर ऐसी कौन सी वजह थी कि उन्होंने अपनी सी पुत्री को गोद दे दिया था। एक कथा के अनुसार रानी कौशल्या की बहन रानी वर्षिणी संतानहीन थी और इस बात से वह हमेशा दुखी रखती थी।

एक बार रानी वर्षिणी और उनके पति रोमपद जो अंगदेश के राजा थे अयोध्या आएं। राजा दशरथ और रानी कौशल्या से वर्षिणी और रोमपद का दुःख देखा न गया और उन्होंने निर्णय लिया कि वह शांता को उन्हें गोद दे देंगे। दशरथ के इस फैसले से रोमपद और वर्षिणी की प्रसन्नता का ठिकाना न रहा। कहते हैं उन्होंने शांता की देखभाल बहुत अच्छे तरीके से की और अपनी संतान से भी ज़्यादा स्नेह और मान दिया। इस प्रकार शांता अंगदेश की राजकुमारी बन गयी।

अन्य कथा के अनुसार

शांता को लेकर कई कथाएं प्रचलित है, जिसमें से एक कथा के अनुसार यह माना जाता है कि जब शांता का जन्म हुआ तो अयोध्या में 12 वर्षों तक भारी अकाल पड़ा। राजा दशरथ इस समस्या के समाधान के लिए ऋषि मुनियों के पास गए जहाँ उन्हें यह बताया गया कि उनकी पुत्री शांता के कारण ही यह अकाल पड़ा हुआ है। यह सुनकर राजा बहुत दुखी हुए और उन्होंने नि:संतान वर्षिणी और राज रोमपद को अपनी पुत्री दान में दे दी। कहीं फिर अयोध्या अकालग्रस्त न हो जाये इस भय से उन्होंने दोबारा शांता को कभी वापस नहीं बुलाया।

रावण बना दशरथ और कौशल्या के विवाह का कारण

यूं तो कई कथा आज भी प्रचलित हैं जिसमें कहा जाता हैं कि रामायण में जो कुछ भी हुआ वो सभी पहले से तय था लेकिन दशरथ और कौशल्या के विवाह को लेकर भी एक कथा प्रचलित हैं जिसके अनुसार लंकापति रावण को पहले से ही इस बात का पता चल गया था कि कौशल्या और दशरथ का ज्येष्ठ पुत्र ही उसकी मृत्यु का कारण बनेगा इसलिए उसने कौशल्या के विवाह के पूर्व ही उसकी हत्या करने की साज़िश रची और रावण ने अपने राक्षसों को कौशल्या का वध करने के लिए भेजा।

उन राक्षसों ने उन्हें एक संदूक में बंद करके सरयू नदी में बहा दिया था। संयोगवश राजा दशरथ शिकार कर लौट रहे थे और यह सब उन्होंने देख लिया किन्तु वह यह नहीं जानते थे कि संदूक में कौशल्या है। वह उस संदूक की तलाश में सरयू नदी में कूद गए लेकिन शिकार की वजह से वह पहले ही बहुत थक चुके थे इसलिए खुद भी नदी में डूबने लगे। इतने में जटायु ने आकर उनकी मदद की जिसके पश्चात दोनों ने मिलकर उस संदूक को ढूँढा।

जैसे ही उन्होंने उसे खोला उसमें कौशल्या को मूर्छित अवस्था में देखकर चौंक गए। बाद में देवर्षि नारद ने राजा दशरथ का गन्धर्व विवाह कौशल्या से सम्पन्न करवाया। माना जाता है कि विवाह के उपरान्त उनके यहां पुत्री के रूप में शांता ने जन्म लिया किन्तु वह दिव्यांग थी। राजा ने कई उपचार करवाए पर वह ठीक न हो सकी फिर उन्हें पता चला कि उनका और रानी कौशल्या का गोत्र एक होने के कारण ही ऐसा हुआ है।

ऋषि मुनियों ने इस बात का समाधान निकाला कि अगर कोई शांता को अपनी दत्तक पुत्री बना ले तो वह एकदम स्वस्थ हो जाएगी। इस प्रकार रोमपद और वर्षिणी ने शांता को अपनी पुत्री स्वीकार कर उसे नया जीवन दिया था। बाद में शांता का विवाह विभंडक ऋषि के पुत्र ऋषि ऋंग से सम्पन्न हुआ। कहा जाता है कि उनके माथे पर सींघ जैसा उभार था जिसे संस्कृत में ऋंग कहा जाता है इसी कारण इनका नाम ऋषि ऋंग पड़ा।

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