नई दिल्ली। चीन पूरी तरह से भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और अमेरिका के राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप के बीच होने वाले रक्षा समझौते पर नज़र गढाए हुए है। चीन की नज़र खास तौर पर सर्विलांस ड्रोन से जुड़ी डील पर है। चीनी विशेषज्ञों का कहना है कि इस डील से हिंद महासागर पर निगाह रखने के लिए भारत की ताकत में कई गुना इजाफा हो जाएगा और उसकी ताकत दो गूनी हो जाएगी। ट्रंप और मोदी के बीच होने वाले रक्षा समझौते का असली मकसद 22 अनआर्म्ड सर्विलांस ड्रोन हैं। साथ ही टाटा और लॉकहीड मार्टिन के बीच एफ-16 लड़ाकू विमानों के साझा निर्माण से जुड़े समझौते पर भी हस्ताक्षर किए जाएंगे।
बता दें कि पीकिंग यूनिवर्सिटी में स्कूल ऑफ इंटरनेशनल स्टडीज की प्रोफेसर और सेंटर फॉर आर्म्स कंट्रोल की डायरेक्टर हान हुआ का कहना है कि चीन में कुछ लोग परेशान है। हालांकि यह अब तक सबसे उन्नत तकनीक नहीं है, जब आप एफ-16 लड़ाकू विमानों के बारे में बात करते हैं. लेकिन रक्षा सहयोग का यह केवल एक मुद्दा है। साथ ही हिंद महासागर में सर्विलांस ड्रोन के ट्रांसफर का मुद्दा है। इससे पूरे हिंद महासागर पर नजर रखने में भारत की क्षमता में बड़ा इजाफा होने जा रहा है। जोकि एफ-16 के संयुक्त उत्पादन से ज्यादा महत्वपूर्ण है।
चीन ने रखी है मोदी के us दौरे पर नजर
साथ ही चीन ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के अमेरिका दौरे पर पूरी नजर रखी है। दिल्ली की तरह ही बीजिंग में भी ट्रंप को लेकर चिंता का भाव है। यद्यपि चीन के राष्ट्रपति शी जिनपिंग का अमेरिका दौरा कई मायनों में शानदार रहा है, जहां उनका ट्रंप के मार-अ-लागो रिसॉर्ट में स्वागत किया गया।
हान हुआ ने कहा कि भारत-अमेरिका संबंधों का प्रभाव चीन-अमेरिका संबंधों पर है। बुश प्रशासन द्वारा भारत के लिए दरवाजे खोलने के बाद चीन के उभार को टक्कर देने के लिए वॉशिंगटन भारत की भूमिका की लगातार बात कर रहा है। खासतौर पर 2005 के परमाणु समझौते के बाद इस ओर काफी चर्चा हुई है। चीनी रणनीतिकारों के लिए वॉशिंगटन और नई दिल्ली की रिलेशनशिप एक चिंता के तौर पर उभर कर सामने आई है।
उन्होंने कहा कि भारत और अमेरिका के बीच न्यूक्लियर डील, केवल एक न्यूक्लियर डील नहीं है। यह दोनों देशों के बीच की रणनीतिक साझेदारी की प्रकृति को दर्शाती है. चीन के लिए यही चिंता का विषय है।