शख्सियत

कैसे बने सुखदेव क्रातिंकारी-जाने पूरा इतिहास

7 कैसे बने सुखदेव क्रातिंकारी-जाने पूरा इतिहास

नई दिल्ली।  देश के लिए शहादत दो कई लोगो नें दी जिनकी शहदात को हमेशा याद किया जाता हैं पर उन वीरों में से भी कुछ ऐसे वीर थें जिन्होनें पूरे भारत को हिला कर दियया जिन्होनें ब्रिटिश सरकार को नाके चने चवा दिया और अपना शहादत को लौहा पूरे विश्व में मनवा दिया ऐसे ही शूरवीरों में से एक थें सुखदेव…जिनकी शहादत को भारत के साथ साथ पूरा विश्व याद करता हैं जब भी इव वीरों का नाम आता हैं तो इनके सम्मान में आंखे खुद ब खुद नीचे झुक जाती हैं और छाती गर्व से फूल जाती हैं। ऐसे ही महान क्रातिकारी सुखदेव का जन्म 15 मई, 1907, को पंजाब मे ंहुआ था। उनके पिता का नाम रामलाल थापर था, जो अपने व्यवसाय के कारण लायलपुर (वर्तमान फैसलाबाद, पाकिस्तान) में रहते थे। इनकी माता रल्ला देवी धार्मिक विचारों की महिला थीं। दुर्भाग्य से जब सुखदेव तीन वर्ष के थे, तभी इनके पिताजी का देहांत हो गया। इनका लालन-पालन इनके ताऊ लाला अचिन्त राम ने किया। वे आर्य समाज से प्रभावित थे तथा समाज सेवा व देशभक्तिपूर्ण कार्यों में अग्रसर रहते थे। इसका प्रभाव बालक सुखदेव पर भी पड़ा। जब बच्चे गली-मोहल्ले में शाम को खेलते तो सुखदेव अस्पृश्य कहे जाने वाले बच्चों को शिक्षा प्रदान करते थे।

कैसे मिले भगत सिंह और सुखदेव के विचार

भगत सिंह के बारें में तो आप पढ़ ही चुके हैं उनकी शहादत के बारें में अगर आपने नहीं पढ़ा तो आप हमारें पहले वाले ंलेखों में उनके बारे मे ंपढ़ सकते है ंकि भगत सिंह बचपन से भारत को आजाद कराने का स्वपन अपने मन में पाले बैठे थे पर सुखदेव ने अपने विरोध के स्वर तब ऊंचे किए जब सन 1919 में हुए जलियाँवाला बाग़ के भीषण नरसंहार के कारण देश में भय तथा उत्तेजना का वातावरण बन गया था। इस समय सुखदेव 12 वर्ष के थे। पंजाब के प्रमुख नगरों में मार्शल लॉ लगा दिया गया था। स्कूलों तथा कालेजों में तैनात ब्रिटिश अधिकारियों को भारतीय छात्रों को ‘सैल्यूट’ करना पड़ता था। लेकिन सुखदेव ने दृढ़तापूर्वक ऐसा करने से मना कर दिया, जिस कारण उन्हें मार भी खानी पड़ी। लायलपुर के सनातन धर्म हाईस्कूल से मैट्रिक पास कर सुखदेव ने लाहौर के नेशनल कालेज में प्रवेश लिया और यहीं पर दो क्रांतिकारी आपस में मिलें और दोनों के विचार एक जैसे होने के कारण दोनों बहुत ही़ कम समय में दोस्त बन गए। इन दोनों के इतिहास के टीचर ‘जयचन्द्र विद्यालंकार’ थे, जो कि इतिहास को बड़ी देशभक्तिपूर्ण भावना से पढ़ाते थे। विद्यालय के प्रबंधक भाई परमानन्द भी जाने-माने क्रांतिकारी थे। वे भी समय-समय पर विद्यालयों में राष्ट्रीय चेतना जागृत करते थे। यह विद्यालय देश के प्रमुख विद्वानों के एकत्रित होने का केन्द्र था तथा उनके भी यहाँ भाषण होते रहते थे। जो इ दोनों अंदर देशभक्ति की भावना भऱ देते थें।

कैसे बने क्रांतिकारी

भगत सिंह और सुखदेव हमेशा ही देशसेवा के स्वपन को पाल बैठे थे बस जरुरत थो उस सपने को उड़ान देने की उस सपने को उड़न भी मिली जब  असहयोग आंदोलन सफल नहीं हुआ। वर्ष 1926 में लाहौर में ‘नौजवान भारत सभा’ का गठन हुआ। इसके मुख्य योजक सुखदेव, भगत सिंह, यशपाल, भगवती चरण व जयचन्द्र विद्यालंकार थे लोगों की ओर इसका ध्यान तब गया जब ‘असहयोग आन्दोलन’ हो गया और ब्रिटिश राज का जुल्म और तेज हो गया और नौजवान सभा का गठन हुआ जिसका मकसद था ज्यादा से ज्यादा नौजवानों को अपने साथ जोड़ना जो देश के लिए हस्ते हस्ते अपने प्राण त्याग दें।

लाला लाजपत राय की हत्या का बदला

इन शूर वीरो ंके द्रारा ही लाला लाजपत राय की हत्या का बदला लिया गया। भारत मे जब साइमन कमीशन आया तो हर जगह उसका विरोध हो रहा था जिसके विरोध मे ंमुख्य भूमिका निभा रहे थें लाला लाजपत राय जिसको लेकर लाला जी की ओर से एक विशाल जुलूस निकाला गया। इस जुलूस को रोकने के लिए अंग्रेजों की ओर से लाठियां बरसाई गई जिसमें लाला जी गंभीर रुप से घायल हो गए और कुछ समय बाद उनकी मौंत हो गई जिसका बदला भगत सिंह और सुखवेद द्रारा लिया गया। उनके शोक में जगह जगह  पर सभाओं का आयोजन किया गया था। सुखदेव और भगत सिंह ने एक शोक सभा में बदला लेने का निश्चय किया। एक महीने बाद ही स्कार्ट को मारने की योजना थी, परन्तु गलती से उसकी जगह सांडर्स मारा गया। इस सारी योजना के सूत्रधार सुखदेव ही थे। वस्तुत: सांडर्स की हत्या चितरंजन दास की विधवा बसन्ती देवी के कथन का सीधा उत्तर था, जिसमें उन्होंने कहा था, “क्या देश में कोई युवक नहीं रहा?” सांडर्स की हत्या के अगले ही दिन अंग्रेज़ी में एक पत्रक बांटा गया, जिसका भाव था “लाला लाजपत राय की हत्या का बदला ले किया गया।

कैसे हुई गिरफ्तारी

सुखदेव और उनके साथियों की ओऱ से अपनी गूंज को ब्रिटिश सरकार तक पहुंचाने के लिए इनकी ओर से 8 अप्रैल, 1929 को दिल्ली के केन्द्रीय असेम्बली में बम फेंका गया और धमाके किए गए जिसका मकसद ब्रिटिश सरकार को डर का अहसास कराना था जिसको लेकर ब्रिटिश सरकार द्रारा इनकी गिरफ्तारी की सूचना दी गई और एक बम बनाने वाली फैक्ट्री पकड़ी गई और उसके बाद इन्हें ब्रिटिश सरकार द्रारा पकड़ लिया गया। ब्रिटिश सरकार ने सुखदेव, भगत सिंह और राजगुरु पर मुकदमे का नाटक रचा। 23 मार्च, 1931 को उन्हें ‘लाहौर सेंट्रल जेल’ में फाँसी दे दी गई। देशव्यापी रोष के भय से जेल के नियमों को तोड़कर शाम को साढ़े सात बजे इन तीनों क्रांतिकारियों को फाँसी पर लटकाया गया। भगत सिंह और सुखदेव दोनों एक ही सन में पैदा हुए और एक साथ ही शहीद हो गए।

Related posts

अमित शाह को योगी समेत कई राजनेताओं ने दी जन्मदिन की बधाई

Rani Naqvi

जन्मदिन खास: इस काम के लिए छोड़ी थी करिश्मा ने 6 क्लास की पढ़ाई

Rani Naqvi

यतीन्द्रनाथ: मेरे अनशन का अर्थ ‘विजय या मृत्यु’

bharatkhabar