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माफियाओं के कारण बढ़ रहा भूस्खलन, आम जीवन व जीवों को धकेल रहे दुश्वारियों की ओर

jan jivan fishes माफियाओं के कारण बढ़ रहा भूस्खलन, आम जीवन व जीवों को धकेल रहे दुश्वारियों की ओर

देहरादून। यूके में खनन माफियाओं की करगुजारी से आम जीवन को तबाही की ओर ले जाया जा रहा है और इसे नियंत्रित करने में सरकारें नाकाम हो रहीं हैं। सबसे बड़ी बात यह है कि इस ओर देश के उन नेताओं का ध्यान नहीं जा रहा है जो बड़े-बड़े वादे कर जनता की सुरक्षा का गुहार लगाते हैं।

खनन से न केवल जन जीवन बल्कि जीवों पर भी इसका असर देखने को मिलता है। सुनहरी माहसीर या हिमालयी माहसीर, असेला ट्राउट, कुमाऊँ ट्राउट, पत्थर चट्टा, कलौंछ, लटिया, छगुनी, भारतीय ट्राउट, हैमिल्टन बेरिल, बरना बेरिल, नीमेकिलस बोटिया, निमेकिलस भिवानी, नीमेकिलस रूपिकोला, बोटिया अल्मोडी, पथूरा आदि नाम उत्तराखंड में पाई जाने वाली स्थानीय मछलियों के हैं।

आज इनमें से आधी मछलियाँ भी उत्तराखंड की नदी झीलों में देखने को नहीं मिलती और जो देखने को मिलती हैं, वह भी अपने मूल स्वरूप में नहीं मिलती। राज्य के पर्वतीय जलस्रोतों से 83 मत्स्य प्रजातियों की उपलब्धता का पता चलता है, जिसमें से 70 प्रजातियाँ पूर्णतः स्थानीय एवं पर्वतीय हैं। 20वीं शताब्दी के मध्य तक यहाँ की बड़ी नदियों तथा झीलों में से 23 से 28 किग्रा. तक भार की सुनहरी माहसीर पकड़े जाने के प्रमाण मिलते हैं अब इन जलस्रोतों से 5-10 किग्रा तक आकार की सुनहरी माहसीर भी मुश्किल से देखने को मिलती है। नैनीताल झील में पाई जाने वली सुनहरी माहसीर तथा असेला पूर्णतः लुप्त हो चुकी है।

किसी भी नदी या झील में मछलियों का होना इस बात का सूचक है कि वहां का पानी कितना साफ़ है। पहाड़ों में लगातार खनन और भूस्खलन होने से नदियों की पारिस्थिकी बिगड़ रही है। नदियां अपने साथ भारी गाद लाती हैं जो मछलियों के खाने को और उनके अण्डों को समाप्त कर देता है। एक सर्वेक्षण के अनुसार हिमालयी क्षेत्र में एक किमी सड़क का निर्माण करने पर 40-80 हजार घन मीटर भूमि का अपरदन होता है तथा कुमाऊँ मण्डल में भूमि कटाव की अनुमानित दर 1 मिमी प्रतिवर्ष आँकी गई है। इस प्रकार अपरदित मिट्टी कंकड, पत्थर आदि जलस्रोतों की तलहटी में एकत्रित हो जाते हैं जिससे झीलों तथा जलाशयों में जल संग्रहण सीमा कम हो जाती है।

नये कस्बों में ड्रेनेज सिस्टम न होने से इसका कचरा सीधा नदियों में आ रहा है, जिससे मछलियां समाप्त हो रही हैं। उत्तराखंड के सभी जलस्त्रोतों में अभी मछलियों की कुल 258 प्रजातियां पायी जाती हैं। जिसमें स्थानीय विदेशी सभी शामिल हैं। बुरी ख़बर यह है कि यहां की स्थानीय मछलियों की संख्या और गुणवत्ता दोनों गिर रही है। भूस्खलन और खनन के कारण सरयू, कोसी, गौला, पौड़ी गढ़वाल की नयार नदी के गंभीर हाल हैं। इनसे महाशीर, असेला, गारा, गूंज, बरेलियस बहुत कम मात्रा में मिल रही हैं, जो मिल रही हैं वह पूरी विकसित नहीं हैं।

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