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जगदीशपुर दौरे में कुंअर वीर सिंह ने मां गंगा को भेंट की थी अपनी भुजा

कुंअर वीर सिंह जगदीशपुर दौरे में कुंअर वीर सिंह ने मां गंगा को भेंट की थी अपनी भुजा

कुंअर वीर सिंह ने तलवार से अपनी भुजा काट कर यह कहते हुए गंगा मां को समर्पित कर दिया कि ‘हे मां गंगा’ अपने इस पुत्र की ओर से ये तुच्छ उपहार स्वीकार करो।आपको बता दें कि वीर सिंह ने युद्ध में लोगी लगने के कारण घायल हुई भुजा को देर किए बिना तलवार से काट दिया था।कुंअर वीर सिंह ने उस उम्र में जब शायद आज की पीढ़ी चलने के लिए मोहताज हो जाती हैं। यह जानकर सबको हैरानी हती है कि 80 वर्ष की आयु में भी कोई युद्ध में सफलता प्राप्त कर सकता है। लेकिन बीर सिंह नें केवल अंग्रेजों के विरुद्ध युद्ध का बिगुल ही नहीं बजाया बल्कि विभिन्न युद्धों में अंग्रेजों को मात देकर दात भी  खट्टे कर दिए थे।

 

कुंअर वीर सिंह जगदीशपुर दौरे में कुंअर वीर सिंह ने मां गंगा को भेंट की थी अपनी भुजा
जगदीशपुर दौरे में कुंअर वीर सिंह ने मां गंगा को भेंट की थी अपनी भुजा

 

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आपको बता दें कि बिहार के राजा बाबू वीर कुंवर सिंह एक ऐसे राजा हैं। जिनका नाम इतिहास के स्वर्ण पृष्ठों में दर्ज हो गया है। आपको बता दें कि 80 वर्ष की उम्र में वीर सिंह द्वारा दिखाये गये अदम्य साहस के सम्मान लोग आज भी उनको श्रृद्धा से याद करते हैं।

कैसे मात देते थे अपने दुश्मनों को?

मालूम हो कि 1777 ई. में बिहार के शाहाबाद में बाबू बीर सिंह का जन्म हुआ था । ‘बाबू वीर कुंवर सिंह’ के पिता कुंवर साहब राजा साहबजादा सिंह और माता पंचरत्न देवी थी। माना जाता है कि बचपन से ही बच्चे से उम्मीदें की जाने लगी कि वह बड़ा होकर यह करेगा बहादुर और साहस काकाम करेगा।पिता के सपनों के को पूरा करने के लिए कुंवर बड़े हुए।गौरतलब है कि  उनका संबंध परमार राजपूत समुदाय की शाखा उज्जैनी राजपूत कुल से था। इसलिए उन्हें बचपन में किसी परेशानी का सामना नहीं करना पड़ा था।

वीर सिंह की आंखों में अंग्रेजों की क्रूरता की कई तस्वीरें बंद हो रहीं थी

गौरतलब है कि जब देश पर अंग्रेजों का राज था। उन दिनों अंग्रेज तेजी से अपने बिस्तार के लिए हर तरफ प्रयास में रहते थे। वीर सिंह की आंखों में अंग्रेजों की क्रूरता की कई तस्वीरें बंद हो रहीं थी। वह अपने अंदर धधकने वाली आग में अंग्रेजी हुकूमत को जला कर राख कर देना चाहते थे।‘होनहार बिरवान के होत चीकने पात’ वाली कहावत को सत्य करते हुए कुंवर के बागी तेवर बचपन से दिखाई दे गए थे। वह दूसरे बच्चों से अलग स्वभाव के थे।बालकों की तरह बच्चों वाले खेल खेलने के विपरीत अपना समय घुड़सवारी, निशानेबाज, तलवारबाजी सीखने में व्यतीत करते है।

 

शिवाजी महाराज के बाद भारत में वह दूसरे योद्धा थे, जो गोरिल्ला युद्ध नीति के हर भेद को अच्छे से जानते थे

उम्र बढ़ने के साथ-साथ उनकी युद्ध कलाओं को सीखने की रूचि भी बढ़ने लगी। उन्होंने मार्शल आर्ट जैसी कठिन विद्या भी सीखी थी।माना जाता है कि छत्रपति शिवाजी महाराज के बाद भारत में वह दूसरे योद्धा थे, जो गोरिल्ला युद्ध नीति के हर भेद को अच्छे से जानते थे। इसका फायदा उन्होंने अंग्रेजों को शिकस्त करने में मिला।उनकी ख्याति कितनी दूर-दूर तक इसको इस बात से ही समझा जा सकता है, कि गया जिले के जमीदार और पराक्रमी योद्धा महाराणा प्रताप के वंशज राजा फतेह नारियां सिंह ने अपनी सुपुत्री के लिए उनको विवाह का प्रस्ताव भेजा था।

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1857 की क्रांति में वीरसिंह की भूमिका

बाबू कुंवर सिंह बहुत पहले से ही अंग्रेजी शासन के खिलाफ युद्ध छेड़ने का मन बना रहे थे। लेकिन अकेले के लिए यह बात बहुत दुर्लभ थी। वह काफी समय अंग्रेजों से सीधी लड़ाई से अपने को रोकते रहे। हालांकि उनके अंदर अंग्रजों को रोकने की क्षमता थी। उनके युद्ध के कौशल को देखते हुए 25 जुलाई 1857 ई. को दानापुर छावनी के कुछ क्रन्तिकारियों ने उनसे आग्रह किया कि वह संग्राम में भाग लें।बस तभी से कुंवर ने उन्हें निराश नहीं किया और अंग्रेजों से सीधी लड़ाई लड़ना शुरू करल दिया।कुंवर साहब को अपने क्षेत्र के विद्रोही सैनिकों का नेता घोषित कर दिया गया। इस समय उनकी आयु लगभग 80 वर्ष थी। अच्छी बात थी कि इस उम्र में भी कुंवर साहब का जज्बा किसी युवा बीर से कम नहीं था। देश भक्ति उनके अंदर कूट-कूट कर भरी थी।

वीरसिंह की की सैन्य ताक़त अंग्रेजों के मुकाबले बहुत कम थी

हालांकि कि वीरसिंह की की सैन्य ताक़त अंग्रेजों के मुकाबले बहुत कम थी। मगर उन्होंने हार नहीं मानी। मजबूती से डटकर उन्होंने मोर्चा संभाला और अग्रेज़ों के ठिकानों पर आक्रमण किया।इस हमले से अंग्रेजों को भारी नुकसान हुआ। और उन्हें भारी क्षति का सामना करना पड़ा।आंदोलन को और मजबूत करने के लिए कुंवर साहब ने मिर्जापुर, बनारस, अयोध्या, लखनऊ, फैजाबाद, रीवा, बांदा, कालपी, गाजीपुर, बांसडीह, सिकंदरपुर, मनियर और बलिया समेत कई अन्य जगहों का दौरा किया।वहां राजा ने नए साथियों को संगठित किया और उन्हें अंग्रेजों का सामना करने के लिए उकसाया।

अंग्रेजों के ठिकानों पर छापेमारी तेज हो गयी,अंग्रेज़ पूरी तरह बौखला चुके थे

अब यह संगठन सक्रिय होने लगे थे। तभी अंग्रेजों के ठिकानों पर छापेमारी तेज हो गयी। अंग्रेज़ पूरी तरह बौखला चुके थे। इसी कारण उन्होंने इंग्लैंड से अतिरिक्त सहायता मंगवा ली, ताकि कुंवर साहब के मोर्चे को खत्म किया जा सके। यही नहीं, इसमें उन्होंने कुछ गद्दार राजाओं को भी अपनी तरह मिला लिया। इन गद्दारों ने सियासत को बचाने के लाभ में अंग्रेजों का साथ देना शुरू कर दिया।अपको बता दें कि आंदोलन को हिंदुस्तान के कुछ राजाओं नें अंग्रेजों के साथ होकर वीर सिंह के आंदोलन को कमजोर कर दिया था। उससे भी ज्याद भयानक परिणाम था कि वह राजा जो रियासत बचाने के लोभ में अंग्रेजों की मदद कर रहे थे। उन्होंनें सैनिकों को पकड़वाकर फांसी तक पहुंचाने में अंग्रेजो की मदद की।इसी दौरान अंग्रेजों ने राजा के महल में भी आग लगा दी थी।

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कानपुर में अंग्रेजों के खिलाफ लड़ने गये और युद्ध में अंग्रेजों को पराजय कर दिया

अपना महल जलता देखकर कुंवर साहब मौत बनकर अंग्रजों के ऊपर टूट पड़े। वहां अंग्रेजों को मात देने के बाद वह तांत्या टोपे और नाना साहेब के साथ कानपुर में अंग्रेजों के खिलाफ लड़ने गये और युद्ध में अंग्रेजों को पराजय कर दिया। इस युद्ध में कुंवर साहब की वीरता ने सबको प्रभावित कर दिया था।कुंवर साहब ने कानपुर के बाद आजमगढ़ में भी अंग्रेजों को नाकों चने चबवा दिए थे। गौरतलब है कि हर बार विजय मिलने के बाद अंग्रेज़ी हुकूमत दोबारा अपनी पूरी ताकत से हमला कर के अपना कब्जा  वापिस ले लेती थी। बावजूद इसके वह कुंवर साहब से पूरी तरह डरे रहते थे।

22 अप्रैल 1958 को नदी के मार्ग से जगदीशपुर के लिए रवाना हो गये

आजमगढ़ के युद्ध के बाद बाबू कुंवर सिंह 20 अप्रैल 1958 को गाजीपुर के मन्नोहर गांव पहुंचे। वहां से वह आगे बढ़ते हुए  22 अप्रैल को नदी के मार्ग से जगदीशपुर के लिए रवाना हो गये। इस सफर में उनके साथ कुछ साथी भी थे। इसकी खबर किसी गद्दार ने अंग्रेजों को दी।इस कारण अंग्रेजों ने पूरी ताकत के साथ उन्हें नदी में ही घेर लिया। अंग्रेजों की तुलना में कुंवर साहब के पास संख्या में बहुत कम साथी थे। फिर भी उन्होंने आगे बढ़कर अंग्रेजों से दो-दो हाथ किये और आगे बढ़ते रहे। वह लगभग अंग्रेजों को पूरी तरह पीछे धकेलने में कामयाब हो गये थे।तभी किसी अंग्रेज ने छिपकर उन पर गोली चला दी।

तलवार से अपनी भुजा काट कर यह कहते हुए गंगा मां को समर्पित कर दिया

वार में उनका दाहिना हाथ बुरी तरह जख्मी हो गया था। जितनी तेजी से उनका खून बह रहा था। उतनी ही तेजी से उनकी तलवार चल रही थी।थोड़ी ही देर में गोली के ज़हर ने शरीर में फैलना शुरु कर दिया। कुंवर साहब को अंदाजा हो चला था कि थोड़ी और देरी की गई तो यह गोली का जहर उनके पूरे शरीर में फैल जायेगा। इसलिए उन्होंने देरी किए बिना तलवार से अपनी भुजा काट कर यह कहते हुए गंगा मां को समर्पित कर दिया कि ‘हे मां गंगा! अपने इस पुत्र की ओर से ये तुच्छ उपहार स्वीकार करो।”

बड़ी जीत के बाद भी जगदीशपुर और साथ के इलाकों में शोक का माहौल छा गया

दाहिनी भुजा कट जाने के उपरांत भी कुंवर साहब अंग्रेजों से लड़ते रहे और अंत में जगदीशपुर पहुंचने गए।गोली का फैल चुका जहर और खून के लगातार रिसाव के कारण कुंवर साहब की स्थिति नाजुक होती जा रही थी। उन्हें सलाह दी गई कि उन्हें कुछ दिन युद्ध से दूर रहना चाहिए।वह मुस्कुराते हुए आग बढ़े और कैप्टन ली ग्रैंड के नेतृत्व वाली अंग्रेजी सेना से लड़ाई लड़ी।कुंवर साहब की सेना की वीरता के आगे अंग्रेजों ने हाथ खड़े कर दिए और जगदीशपुर पर कुंवर साहब का दुबारा अधिकार हो गया था।  इतनी बड़ी जीत के बाद भी जगदीशपुर और साथ के इलाकों में शोक का माहौल छा गया।बता दें कि इस युद्ध में कुंवर साहब की हालत बिगड़ती चली जा रही थी। अपनी मातृभूमि को अंग्रेजों के कब्जे से आजाद कराने के तीन दिन बाद 26 अप्रैल 1858 को कुंवर बीरगति प्राप्त हुई।

महेश कुमार यदुवंशी 

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