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….फिर जपने लगे माला, क्या राम जी करेंगे बेड़ा पार ?

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उत्तर प्रदेश की सिय़ासत को राजनीति की पहली क्लास कहा जाता है। ऐसा माना जाता है जो इस क्लास में पास हो गया वो केंद्र की सत्ता पर काबिज होने के काबिल हो जाता है। प्रदेश में विधानसभा चुनाव अब खत्म होने में महज चरण बचे हुए है। 4 चरणों में मतदान खत्म हो गया है, वहीं पांचवे चरण में 27 फरवरी को मतदान होने वाले है। इस चरण में 11 जिलों की 52 सीटों पर मतदान होना है। पांचवें चरण तक कुल 314 सीटों पर मतदान हो चुका होगा।

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जाहिर है 403 विधानसभा वाले उत्तर प्रदेश में पांचवे चरण का मतदान यह तय करने के लिए काफी होगा कि जनता के दिलों में कौन राज करने वाला है। पांचवें चरण का रूझान ही तय कर पाएगा कि आखिरकार सत्ता की कमान दोबारा से समाजवादी पार्टी के हाथों में आएगी या फिर सालों से सत्ता से कोषो दूर भाजपा की मोदी लहर अपना दम दिखाएगी।

सियासी घमासान के बीच पांचवें चरण की एक अहम भूमिका है क्योंकि इस चरण में राम के नाम का काफी गुणगान है। जी हां पांचवे चरण में अयोध्या में भी मतदान होने वाला है। यही वजह है कि पांचवे चरण की कुल 52 सीटों में अयोध्या विधानसभा की ओर सभी की निगाहें टिकी हुई है क्योंकि अयोध्या की सभी सीटें राजनीतिक पार्टियों के लिए काफी तवज्जों रखती है ऐसा इसलिए है क्योंकि साल 2012 में हुए विधानसभा चुनावों में समाजवादी पार्टी ने यहीं से जीत का आगाज करते हुए प्रदेश की सत्ता का सफर तय किया था। इन चुनावों में भाजपा य़ह बात दोहराना चाहती है।

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सपा की रणनीति अपनाने में लगी हुई भाजपा

हालांकि साल 2012 में हुए विधानसभा चुनावों के मुकाबले इस बार के राजनीतिक हालात काफी बदल गए हैं। 2014 में लोकसभा चुनाव में अपना परचम लहराने वाली भाजपा इस बार रामनगरी से प्रचण्ड बहुमत की जीत हासिल करते हुए उत्तर प्रदेश में सुशासन और विकास का रामराज लाने को आतुर हो गई है। लोकसभा में जीत मिलने के बाद इस बार भाजपा राम नाम तो ले ही रही है साथ ही विकास का गाना गा रही है ताकि उस पर लगे आरोपों से वो पल्ला झाड़ सके।

कौन-कौन है मैदान में

पांचवे चरण में एक तरफ सपा ने फिर से अपने जीते हुए प्रत्याशी तेज नारायण पाण्डेय ‘पवन’ पर दोबारा दांव खेला है। वह भाजपा के दिग्गज और 1991, 1993, 1996, 2002 और 2007 में विधायक रह चुके लल्लू सिंह को 2012 में हराकर विधानसभा पहुंचने में कामयाब हुए थे। वहीं भाजपा ने इस बार वेद प्रकाश गुप्ता पर दांव खेला है। साल 2012 में वेद बसपा प्रत्याशी थे और तीसरे स्थान पर आए थे।

किसकी स्थिति मजबूत

पिछले चुनावों का आंकड़ा देखा जाए तो इस चरण के जनपदों में सत्तारूढ़ समाजवादी पार्टी (सपा) मजबूत स्थिति में मानी जा सकती है। यहां उसका 38 सीटों पर कब्जा है, जबकि कांग्रेस 05, भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) 04 और बहुजन समाज पार्टी (बसपा) 03 सीटों पर काबिज है। हालांकि वर्ष 2012 के मुकाबले 2017 का सियासी जमीन पूरी तरह से बदल चुकी है।

नोटबन्दी को लेकर कर रहे हमला

खास बात यह है कि हर चुनाव में अयोध्या में हावी रहने वाला राम मन्दिर का मुद्दा इस बार लोगों के बीच उतना बड़ा विषय नहीं है। केन्द सरकार में होने के बावजूद भाजपा के वरिष्ठ नेता और मंत्री सुशासन विकास के हवाले से वोट मांग कर रहे हैं। एक तरफ भाजपा विकास को लेकर वोट मांग रही है तो दूसरी तरफ बाकि राजनीतिक पार्टियां नोटबंदी को मुद्दा बनाकर रण को जीतना चाहती है।

भाजपा के स्टार प्रचारक और प्रधानमंत्री नरेन्द मोदी यूपी में अभी तक कांग्रेस, सपा और बसपा के कुशासन का हवाला देते हुए जनता से परिवर्तन की अपील कर रहे हैं। वहीं जनता में भी मन्दिर की कम और पीएम मोदी के बयानों और विरोधी दलों पर उनके हमलों की ज्यादा चर्चा हो रही है। इसका एक असर यह भी देखने को मिल रहा है कि विरोधी दल इस बार भाजपा पर चुनाव में ही राम की याद आने का आरोप नहीं लगा पा रहे हैं।

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गठबंधन का केंद्र पर हमला

अखिलेश यादव से लेकर राहुल गांधी और मायावती नोटबन्दी पर ही भाजपा पर हमलावर हैं। विधानसभा चुनाव होने के बावजूद वह केन्द्र सरकार के कामकाज पर सवाल उठा रहे हैं। कभी विकास के कामों में भागीदारी ना देने का अखिलेश हवाला दे रहे हैं तो कभी किसी और बात का। कई बार तो अखिलेश की बातों को सुनकर यह लग रहा है कि वो विधानसभा चुनावों में लोकसभा चुनावों के लिए प्रचार कर रहे हैं।

भाजपा दिख रही नाकामी का आइना

विरोधियों द्वारा नोटबंदी को मुद्दा बनाए जाने के बाद भाजपा, सपा सरकार की नाकामी को जनता के सामने रखने में लगी हुई है। कभी भाजपा के नेता प्रदेश की कानून व्यवस्था पर सवाल उठा रहे हैं तो कभी केन्द्र की योजनाओं को बेहतर तरीके से लागू नहीं कर पाने पर अखिलेश यादव को कटघरे में खड़े करके सवाल दागने में लगे हुए हैं।

क्या कहता है इतिहास

अयोध्या विधानसभा पर नजर डालें तो आजादी के बाद से आज तक सवर्ण विधायकों का ही वर्चस्व कायम रहा है। वहीं 1991 के बाद हुए पांच चुनाव मे यहां प्रमुख मुकाबला सपा और भाजपा का रहता है। सिर्फ 2002 में एक बार बसपा दूसरे पायदान पर पहुंच पायी थी। उस समय बसपा प्रत्याशी रहे अभय सिंह ने 33429 वोट हासिल किये थे। इस दौरान भाजपा के लल्लू सिंह ने 51289 वोट हासिल कर जीत दर्ज की थी। इस बार भाजपा ने वेदप्रकाश गुप्ता को प्रत्याशी बनाकर उनकी साफ सुथरी छवि के सहारे सवर्ण और ओबीसी मतों को साधने की कोशिश की है। वहीं सपा के तेज नारायण पाण्डेय ब्राह्मण और मुस्लिम मतदाताओं के सहारे फिर विधानसभा पहुंचने की जद्दोजहद में लगे हुए हैं।

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सब पर भारी मोदी

विधानसभा चुनाव में सपा-कांग्रेस गठबन्धन से मुख्यमंत्री अखिलेश यादव एक बार फिर सीएम फेस हैं। वहीं बसपा में इस पद के लिए मायावती ही एकमात्र चेहरा होती हैं, जबकि भाजपा ने मुख्यमंत्री पद का चेहरा घोषित नहीं किया है। हालांकि इसके बाद भी मोदी फैक्टर सबसे ज्यादा हावी है।

इस तरह रामनगरी में भी एक तरफ भाजपा और दूसरी तरफ तमाम विरोधियों की फौज होने का नजारा लोगों के सामने है। सियासी रणनीतिकार इसे भाजपा की सफलता से भी जोड़ रहे हैं। रणनीतिकारों का कहना है कि विरोधी दल जितना भाजपा पर एकजुट होकर हमला करेंगे, उतना ही जनता के बीच मोदी की स्वच्छ छवि बेहतर तरीके से प्रदर्शित होगी। केन्द्र सरकार के अभी तक के कार्यकाल में एक भी भ्रष्टाचार का आरोप नहीं लगना और नोटबन्दी के बाद उड़ीसा पंचायत चुनाव तथा महाराष्ट्र में महानगर पालिकाओं और जिला परिषदों में मिली भारी जीत पार्टी के पक्ष में जनता के समर्थन को बयान कर रही है।

अब कौन जीतेगा और किसके राजनीतिक फॉर्मूले कसौटी पर खरे उतरेंगे इसका पता तो 11 मार्च ही चलेगा।

 ashu das 1 ....फिर जपने लगे माला, क्या राम जी करेंगे बेड़ा पार ? आशु दास

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