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हवाओं में घुल रहा जहर, हर साल हो रहीं 40 लाख से अधिक मौत, सरकार खामोश

air pollution हवाओं में घुल रहा जहर, हर साल हो रहीं 40 लाख से अधिक मौत, सरकार खामोश

नई दिल्ली। भारत में बढ़ता वायु प्रदूषण इस बात की ओर इशारा करता है कि देश में लोगों के सेहत से खिलवाड‍़ किस तरह किया जा रहा है। लेकिन तीन वर्ष की अवधि के समाचार और सोशल मीडिया में वायु प्रदूषण के प्रमुख कारणों और इसके सबसे आशावान समाधानों को लेकर लोगों की कम समझ पर जोर दिया गया है। वैश्विक स्वास्थ्य संगठन वाइटल स्ट्रैटेजीज के एक नए अध्ययन हेजी पर्सेप्शंस में यह बात सामने आई है।
वाइटल स्ट्रैटेजीज में पर्यावरणीय स्वास्थ्य के वरिष्ठ वाइस प्रेसिडेंट डेनियल कास ने कहा, लोगों द्वारा अच्छी गुणवत्ता वाली वायु की मांग किया जाना जरूरी है, लेकिन हमारी रिपोर्ट कहती है कि यह मांग गलत मध्यस्थताओं पर केंद्रित हो सकती है। सरकारों को शुद्ध वायु के लिए नीतियां अपनानी चाहिए और साथ ही उद्योगों को उत्सर्जन कम करना चाहिए।
उन्होंने कहा कि हेजी पर्सेप्शंस यह समझने में हमारी सहायता कर सकता है कि लोगों को स्थायी वायु प्रदूषण और उसके प्रमुख कारणों के बारे में कैसे जागरूक किया जाए, ताकि लोग सही बदलाव की दिशा में बढ़ सकें। इस रिपोर्ट का विश्लेषण प्रगति के मापन के लिए भी महत्वपूर्ण आधार देता है। इस रिपोर्ट के लिए वर्ष 2015 से 2018 तक 11 देशों से समाचारों और सोशल मीडिया के पांच लाख से अधिक दस्तावेज लेकर उनका विश्लेषण किया गया है, जो कि शोध की एक खोजपरक विधि है और इससे वायु प्रदूषण के संबंध में लोगों की गलत धारणाएं उजागर हुई हैं।
स्वास्थ्य को लंबे समय तक होते हैं नुकसान: वायु की खराब गुणवत्ता के कारण स्वास्थ्य को लंबे समय तक होने वाली हानि से लोग अनभिज्ञ हैं। समाचार और सोशल मीडिया पोस्ट स्वास्थ्य पर छोटी अवधि के प्रभाव बताते हैं, जैसे खांसी या आंखों में चुभन, यह क्रॉनिक एक्सपोजर से होने वाले स्वास्थ्य प्रभावों जैसे कैंसर से बहुत दूर है। उन्होंने कहा कि स्वास्थ्य प्राधिकरण सूचना के सबसे प्रभावी स्रेत नहीं हैं। डेनियल कास ने कहा कि सार्वजनिक चर्चा वायु प्रदूषण के महत्वपूर्ण कारकों पर केंद्रित नहीं है। प्रदूषकों के सबसे महत्वपूर्ण स्रोतों, जैसे घरेलू ईधन, पावर प्लांट्स और अपशिष्ट को जलाने पर लोगों को चिंता कम है, वे वाहनों से होने वाले उत्सर्जन पर अधिक केंद्रित हैं। सार्वजनिक चर्चाएं छोटी अवधि के निदानों पर केंद्रित हैं।
छोटी अवधि की व्यक्तिगत सुरक्षा जैसे फेस मास्क पहनने के बारे में चर्चा आम है, जबकि कूड़ा जलाने पर प्रतिबंध जैसे लंबी अवधि के समाधानों पर चर्चा कम है। सितंबर से दिसंबर तक वायु प्रदूषण पर खूब चर्चा होती है, जब सर्दी के मौसम में किसानों द्वारा फसल जलाने से वायु की गुणवत्ता खराब हो जाती है। इस स्थिति में लोगों को वायु प्रदूषण पर प्रभावी नियंत्रण के लिए संलग्न करना चुनौती है, जिसमें वर्ष भर स्थायी उपाय चाहिए।
वायु प्रदूषण से होता है कैंसर : वायु प्रदूषण स्वास्थ्य के लिए एक बड़ी चुनौती है, इससे फेफड़ों और हृदय के रोग, कैंसर, मधुमेह और कॉग्निटिव इम्पैयरमेंट होता है। विश्व स्वास्थ्य संगठन के अनुसार, आउटडोर में वायु प्रदूषण की चपेट में आने से विश्व में प्रतिवर्ष 40 लाख से अधिक लोगों की मौत होती है और इनमें से करीब 40 प्रतिशत मौतें दक्षिण और दक्षिण-पूर्व एशिया में होती हैं।

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