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कोरोनाकाल: घरों में कैद बचपन से छिन रही मासूमियत

कोरोनाकाल: घरों में कैद बचपन से छिन रही मासूमियत
  • कोरोना काल में गुम हो रहा हंसता- खेलता बचपन
  • पिछले एक साल से घरों में नजरबंद बचपन 
  • बच्‍चों के आक्रामक रुख को देख अभिभावक मनोचिकित्सकों से ले रहे परामर्श

लखनऊ। गजल सम्राट जगजीत सिंह की गजल की यह चंद लाइनें ये दौलत भी ले लो, ये शोहरत भी ले लो भले छीन लो मुझसे मेरी जवानी, मगर मुझको लौटा दो बचपन का सावन वो कागज़ की कश्ती, वो बारिश का पानी… कोरोना काल में बच्चों के मर्म पर सटीक बैठती हैं। जो पिछले एक साल से अपने ही घरों में नजरबंद हो चुके हैं। घर में कैद रहने की वजह से उनके व्यवहार में भी बदलाव आने लगा है। या कहें उनका बचपना मुरझा सा गया है। हालांकि, बच्चों में चिड़चिड़ापन, गुस्सा हिंसक प्रवृत्ति को देखते हुए अब पेरेंट्स मनोचिकित्सक से उनकी ऑनलाइन कांउसलिंग और कॉल पर परामर्श ले रहे हैं।

ऑनलाइन हो रही काउंसलिंग

दरअसल, बाल मनोचिकित्सक डॉ. राजेश के मुताबिक, कोरोना काल में बच्चों के स्वभाव में अचानक परिवर्तन देखने को मिला है। कई महीनों से बच्चे घर में बैठे हुए हैं जिस वजह से उनके व्यवहार में गुस्सा, हिंसक प्रवृत्ति और चिड़चिड़ापन पनपने लगा है। बताया कि बच्चों में आ रही समस्याओं को लेकर पेरेंट्स संपर्क कर रहे हैं। ऐसे में बच्चों की ऑनलाइन काउंसलिंग की जा रही है। जिससे उनके स्वभाव में परिवर्तन हो सके।

मोबाइल एड‍िक्‍शन कर रहा खराब 

उन्होंने बताया कि मार्च से अब तक करीब 50 से ज्यादा अभिभावकों ने अपने बच्चों की काउंसलिंग कराई है। सप्ताह भर में करीब 4 से 5 नए बच्चों की काउंसलिंग होती है। जिन के स्वभाव में जिद्दीपन, गुस्सा और पढ़ाई लेकर चिड़चिड़ापन देखने को मिल रहा है। उन्हें बताया कि हद से ज्यादा बच्चे मोबाइल एडिक्शन के शिकार हैं। जिस वजह से अचानक बच्चों के बदलते स्वभाव को लेकर पेरेंट्स भी काफी परेशान है।

खत्म हो रहा अनुशासन

मनोचिकित्सक की माने तो, इस वक्त समय काटने के लिए बच्चे घर पर हद से ज्यादा मोबाइल का इस्तेमाल करते हैं। स्कूल की तरह घर पर बच्चों में धीरे- धीरे पढ़ने-लिखने की आदत और अनुशासन खत्म हो रहा है। इसके अलावा बच्चों के अंदर कंप्टीशन की भावना और स्कूली साथियों के साथ कम्युनिकेशन गैप भी बढ़ने लगा है। जिसके चलते बच्चों का रवैया अचानक बदलने लगा है।

जरा इनकी भी सुनें

बाल विकास कल्याण अधिकारी डॉ. संगीता शर्मा ने बताया क‍ि पैरेन्ट्स को अपना मानसिक स्वभाव भी बदलना चाहिए। इसके साथ ही बच्चो को समय देना भी काफी जरूरी है। यही नहीं पेरेंट्स को बच्चों में परेशानी शेयर करने की आदत डालनी चाहिए। तो वहीं बाल मनो‍चिकित्‍सक डॉ रत्‍नाकर ने बताया कि  आम दिनों में बच्चे स्कूल जाते है। यही उसका रूटीन बना रहता है। जबकि घर में बच्चे कंफर्टेबल महसूस करते हैं। घर पर बच्चे अनुशासन का पालन नहीं करते हैं। जिस वजह से बच्चों में हिंसात्मक रूप देखने को मिल रहा है। पेरेंट्स को भी घर पर बच्चों का रूटीन बना और उन्हें टाइम देना बेहद जरूरी है।

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