नई दिल्ली। माता के छठे रूप के तौर पर मां कात्यायनी की पूजा की जाती है। कहा जाता है कि माता कात्यायनी वृहस्पति ग्रह पर अपना प्रभाव रखती है। कथा में आता है कि महर्षि कत के गोत्र में माता का जन्म हुआ था इस वजह से माता गौरी के इस स्वरूप को कात्यायनी का स्वरूप कहा जाता है। माता का यह स्वरूप परम सौन्दर्य से भरा हुआ है। इनका पूरा शरीर स्वर्ण की तरह चमकीला और तेजवान है। शास्त्रों के अनुसार माता अपने इस स्वरूप में चार भुजाएं लिए एक भुजा में कमल तो दूसरी में खड़ग लिए है। इसके साथ ही दांए हाथ में अभय मुद्रा और बांए हाथ में वरदमुद्रा में भक्तों की समस्त मनोकामनाएं पूर्ण करने वाली है।
कहा जाता है कि भगवान श्री कृष्ण को अपने प्रियतम के तौर पर पाने के लिए ब्रज में गोपियों ने यमुना के तट पर माता की आराधना की थी । आज भी कुंवारी लड़कियों के लिए माता की आराधना करना फलदायी होता है। इच्छित वर के लिए माता की पूजा और आराधना से लाभ मिलता है। ब्रज में आज भी माता की पूजा के साथ इनका प्राचीन मंदिर भी मौजूद है। माता का संबंध बृहस्पति गृह से है इस लिए ज्योतिष शास्त्र के अनुसार बृहस्पति ग्रह का संबंध कुंडली के नवम और द्वादश खाने से है। माता कात्यायनी का संबंध भी व्यक्ति के धर्म, भाग्य, इष्ट, हानि-व्यय और मोक्ष से होता है।
वास्तुशास्त्र के अनुसार इसका स्थान उत्तर पूर्व की दिशा में होना चाहिए। माता की पूजा को समय भी शास्त्र में शाम का समय जब दिन और रात की मिलन की बेला हो यानी जिसे गौधूलि की बेला कहा जाता है। इनके पूजन में इनका श्रृंगार हल्की से करना चाहिए इसके साथ ही इनको बेसन के हलवे का भोग लगाना चाहिए। माता की आराधना चंद्रहासोज्ज्वलकरा शार्दूलवरवाहना। कात्यायनी शुभं दद्याद्देवी दानवघातिनी॥ मंत्र से करनी चाहिए।