कोरोना वायरस से बचने के लिए वैक्सीन लगवाना ही सबसे बड़ा उपाय नजर आ रहा है। बड़े-बड़े विशेषज्ञ, सरकारें और डॉक्टर लगातार अपील कर रहे हैं कि वैक्सीन लगवाएं। हालांकि लोगों के मन में वैक्सीन को लेकर काफी संशय है। कोई कोवैक्सीन को बढ़िया बताता है, तो कोई कोविशील्ड को। तो कुछ लोग विदेशी वैक्सीन आने का इंतजार कर रहे हैं। चलिए बताते हैं की कौन सी वैक्सीन सबसे अधिक बेहतर है।
बनता है मजबूत सुरक्षा तंत्र
एक स्टडी से पता चला है कि देश में उपलब्ध कोविशील्ड और कोवैक्सीन की दो डोज के बाद कोरोना के खिलाफ शरीर में मजबूत सुरक्षा तंत्र बन जाता है। टीके के दोनों डोज लगवा चुके 515 हेल्थवर्कर्स के इम्यून रिस्पांस की जांच के बाद यह दावा किया गया है। इसके मुताबिक दोनों वैक्सीन की एक डोज लेने के बाद भी कोरोना होने पर शरीर में इम्यून रिस्पांस उसी तरह एक्टिव देखा गया जैसा कि दो डोज के बाद होता है।
कोविशील्ड में ज्यादा एंटीबॉडी पैदा करने की क्षमता
रिसर्च के मुताबिक कोविशील्ड में ज्यादा एंटीबॉडी पैदा करने की क्षमता देखी गई है। बता दें ऑक्सफोर्ड एस्ट्रेजेनेका की वैक्सीन को सीरम इंस्टीट्यूट बना रही है। जबकि कोवैक्सीन को भारत बायोटेक बना रहा है। रिसर्च में पता लगा है कि दोनों वैक्सीन अच्छा काम कर रही हैं। कुछ डॉक्टरों के मुताबिक सीरो पॉजिटिविटी रेट और एंटीबॉडी लेवल कोविशील्ड लेने वालों में ज्यादा देखे गए हैं। 515 हेल्थवर्कर्स में से 95% लोगों में सीरो पॉजिटिविटी मिली।
पॉजिटिविटी क्रमशः 98.1% और 80%
वहीं कोविशील्ड लेने वाले 425 लोग और कोवैक्सीन लेने वाले 90 लोगों में सिरो पॉजिटिविटी क्रमशः 98.1% और 80% था। इसका मतलब किसी के अंदर एंटीबॉडी बनने की तादाद से है।जांच में पता चला कि जो लोग कोरोना वायरस से संक्रमित नहीं हुए, उनमें दोनों डोज लेने के बाद के नतीजे की तुलना की गई।
जिसमें पाया गया कि जो लोग दोनों डोज की पहली खुराक के कम से कम 6 हफ्ते पहले कोरोना से ठीक हो गए थे और बाद में दोनों डोज ले ली थी। उसमें सिरो पोजिटिव दर 100 प्रतिशत रही, और दूसरे की तुलना में उनमें एंटीबॉडी का ज्यादा स्तर था।
इसके अलावा 60 साल या इससे कम वालों में सिरो पॉजिटिविटी भी ज्यादा थी, बजाय 60 पार करने वालों के। वहीं टाइप 2 डायबीटीज वालों में भी यह दर कम देखी गई।